घणो अचंभो होयो

जद रोंवतां देख्या

भाखर सा ठाडा मिनख नैं।

हेत री बातां सुण

उण रा मूंडा सूं

समझ आयो,

होवै है मन भाखर रै बी

ऊण रो भी पसीजै है मन,

फूटै हैं प्रेम री कळी

उण रा भी हिया मैं।

स्यात हेत बिना

एकलो मिनख हुई ज्यावै

भाखर ज्यूं।

चावै ऊनै भी जळ

अपणायत रो।

उग्यावै रूंख,

अर खिल पड़ै कळियां

उण रा हिया मैं।

स्रोत
  • सिरजक : सुनीता बिश्नोलिया
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