काळ

फेरूं-बाळण जोगो काळ

पसरग्यो चौफेर

खैं खैं कर चढ़गी

रेत-फकत रेत

आभै दर आभै,

मैड़ी दर-मैड़ी

ऊंची

उण सूं ऊंची

मिनख-दर-मिनख

पोर-दर-पोर

आचमन-दर-आचमन

आखै मानखै रो आचमन।

उथळ-पुथळ

च्यूरूं कूंट,

घर-बेघर

टापरा-फूस

फकत घास-फूस!

पोथी-पानड़ा

जमीं-आभै

बायर-कांमेतण संग

पाछै

फकत अहसास,

कविता कथण री बळत

टापरै री हुळस।

चौफेर

खेजड़ा खेजड़ा

ठूंठ!

फकत ठूंठ!!

कागडोड री कूक

गांठदार ऊंट

बापड़ो हिरणियो

फाटयोड़ी आँख,

ऊपर सूं-

खैं खैं

झफीड़ा मारती

फकत रेत

अर म्हैं!

खेजड़ै हेठै

माथो पकड़’र

म्हैं

सेवट

म्हैं!!

फाटै हो माथो

म्हारा कान

चीख री पीड़

पीड़ री चीख

कामणी री कूख सूं

ऊपर सूं बाळणजोगी लू

अर

झफीड़ा!

होठ तरड़ावै हा

घेंटुवै बीच जीभ

पीड़ आंख्यां बीच

आंख्यां बीच पीड़

गोडा बांथां भींच

समचो साध’र डील

ताकतो रैयो म्हैं...

ऊंचो

मोकळी ताळ

खेजड़ी, डाळ!

भळको! अहसास...

हरास

चीन्हो’क

अेक

फकत अेक

हरी पत्ती री!

बांधां री पकड़

कलम हुयगी,

आंख री पीड़

काजळ हुयगी,

कूख री चीख

सिरजण हुयगी

म्हैं लाग्यो

लिखण कविता

नूंवी हरियळ पत्ती माथै

अणजलमी कूंपळयां सारू।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली 52 ,
  • सिरजक : भंवर भादानी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति
जुड़्योड़ा विसै