हांडी सूं निसर

गयो धरती री कूख

पाळया सुपना

फळीजण रा अलेखूं

हळवां-हळवां पांगर्‌यो

काढ्या पानका

फूल काढ हांस्यो

खिड़ खिड़

खेत में

धोरी रै हेत में

लू रै नीं जंची

बाळ-सुका

रळा दियो रेत में।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’