गोरी, थारौ रूप,

निरख नै चकरावै किरतार,

तिरस, तन री मांगै रसधार,

नैण सूं, पीबणं दै दिन च्यार।

लागै चार दिवस रुत प्यासी,

फुरकै, रग रग पीड़ कंवारी,

रातां मांगै नेग उमर रौ,

तन तिरसौ हिबड़ौ हद भारी।

फिरैला कद तक कोमल नार,

उंचायां जोबन हंदो भार,

तनै करणौ पड़सी बौपार।

दो दिन खेल कूद मन भरलै,

मन सूं मन री बातां करलै,

मनवारां मूंगी मत पड़ घण,

तन रौ ताप, बाथ बंध हरलै।

होण दै सुपनां नै साकार,

निमट नखरा सूं, डील उबार,

देह दूणी लागी तकरार।

मतना तोड़ हियै रौ दरपण,

देह मिल्यां, टूटै सै बंधण,

पुळ पुळ तिरस बधै जीवण री,

बळ बुध मांगै देह समरपण।

उभरिया नस नस में अंगार,

पछै मत काढै चूक चकार,

बावळौ व्है जोबन रौ ज्वार।

सयानां मत मनवारां भार,

लाज री किण विध तोडू कार,

अंगिया फाड़ उलड़ियौ जोबन,

चूक किण में काढूं भरतार।

निसरग्यौ मिळतां नैण करार,

डील मांगै कसणां कसदार,

लाज नैणां मैं, तन तकरार॥

स्रोत
  • पोथी : हंस करै निगराणी ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी