उण बगत
जद कै
थे
प्रीत रै ऊंचै
आसण सूं
गुड़कण लागौ
फाट्यौड़ी अैड्यां
जोर-जोर सूं रगड़ौ
नागे डील माथै
तद
थे
छोल देवौ
छितरका दांई
ठेठ बारै सूं
मांयै तांई।
ठीक उणी बगत
रोमांस रै माटी रंग
दोलड़िजियोड़ौ
बासीपण रो पौधौ
पसवाड़ा फोरतो
खंखारै
चिड़चिड़ैपण रै
गमलै में
अर फैलावै
आपरै होवण री
खाटी-खाटी बांस।
सोचूं—
सुवारथ
बै’म है
नाक रो
आंख्यां री दीठ
पारखै
थे बे ईज
म्हैं बों ईज
सेज अर सुपनां बै ईज
पण क्यूं
पसरै
तर-तर
ओ सेवण घास
कठैई इण में
मरदानगी री मैं
कै
तन री रूप लालसा
लोभी मन री मनसा
तो नीं?