कोल्हू

छप्पर

अस्यो छै

अपनों घर...

च्यारु आड़ी

आंगणा आंगणा

अर खुल्यो असमान

असी दी

बैमाता नै ठाम

गंगा की नांई

धरती का झैल्या

अस्या जा म्हा

गार्या छां गीत

कोई बांटें कै बांटे

म्हां तो

बांटर्या छा

प्रीत।

स्रोत
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी