बंतळ हुंवती

अणजाण सूं मोकळी

नानी रो मूंडो

नीं रैवतो हो

मुरझायेड़ो

कैवतो हो

दरखत

लोक री गाथा

जोबन मुळकतो

बटावू नै निरखतो

अब बगत बीतग्यो

मिनखपणो रीतग्यो

बंतळ तो हुवै आज

पण फेसबुक अर वाट्स अप माथै

फेस टू फेस

बैठणै री

कुण पाळै हूंस।

स्रोत
  • सिरजक : ओमप्रकाश सरगरा 'अंकुर' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी