बखत री बात, बै बातां गी बीत

नदियां रा पाट, अे बाळू री भींत।

मुरधर मजूर, रेत रै रुजगार

दिनुंगै दिनांथ, लाग्यौ व्है नचींत।

लूआं रो बिणज, हरिया खेजड़ै हेठ

कत्ती बदळगी, यां रूंखां री रीत।

सूरज रै पूठ, दिन रो चितराम

मांडै रात, नितकी मन चींत।

दाझ्या रै देस, मुळकां री आण

अैकर व्है फेर, जिन्दगी री जीत।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सवाईसिंह शेखावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन