भीड़
दिनो-दिन बधती भीड़
रोजीनां,
इण भीड़ मांय बध जावै
सैंकड़ूं नवा चै'रा
पण फेरूं ई
खुद नै इण भीड़ बिचाळै
घणो अेकलो समझूं
रोजीना करूं म्हैं कोसिस
खुद नैं इण भीड़ सूं न्यारो करण री
अर इण भीड़ स्यूं न्यारो होय
पांख्यां पसार आभै में उडण री
पण—
हर बार,
अेक वजनदार हाथ रै जोरदार धक्कै सूं
म्हैं फेरूं इण भीड़ भेळो कर दियो जावूं
तद देखूं कै—
भीड़ फेरूं कीं बधगी है।
अर आगै निकळ गिया फेरूं की लांठा लोग
अर म्हैं पूगग्यो पैली सूं भी लारै, घणो लारै।
पण
बार-बार, हर बार
उण धक्को देवणियै हाथ नैं म्हैं कैवूं कै
नीं चाहीजै म्हनैं उडण सारू
लंबो-चौड़ो आकास
बस म्हनैं देय द्यो इत्तो ई
जिण में लेय सकूँ सांस
राखो ओ थारो पूरो आभौ
अर राखो पग पसारण सारू
आ सगळी उपजाऊ धरती
म्हारै सारूं
म्हें खुद जोय लेवूला
म्हारो
बैंत भर आकास।