खड़’र आग्या
आतंकवाद का मंगर-माछळा
पाणी कै बारै
जै बैठ्या छै मुंडो फाड़’र
दबा लेगा पाप की लंबी डाढां में
उगसबा न्ह देगा
खोदर बैठ्या छै
स्वारथ की सुरंगां पाणी में
बाट नाळर्या छै
कद मौको लागै
तहस-नहस करबा की
फाड़ घालैगा भाईचारा का गबुल्या
तोड़ घालैगा धरम अर संस्कृति
की दावण्या नैं
पीज्यागा खून भला मनख्या को
जिणसूं बच’र पांव धरणा छै
रैणो छै चौकस
बता देणी छै ताकत
आबा ई न्ह देणा छै
पाणी सूं बार
कान काई उटंग
बरबादी लेखै न्ह कर सकै
कोई नैं भी तंग
सुख चैन देबाळी ई
धरती पे।