सुण मन!

म्हारी बातड़ली

उडीक राखणी पड़सी

पसरियोड़ो काळजै नैं

मारग भटक्योड़ै आभे खातर

चिड़कलियां बूझण लागी

ठूंठां-पेड़ां रै असवाड़ै-पसवाड़ै

ऊंटां री चाल चित्कारां मारै

कुत्तां री भूंकण नीं निकळै

धोरा दुबक्या पड्या है

मारग भटक्योड़ै आभै खातर

खेजड़ियां री सांगरी

नीम री निंबोळी

बोरटी रा बोरिया अर पाळो

कदेई उडाण भरिया

आभै री उडीक मांय

मुळकतो मिनख

घुळती आंख्यां

तिस्सौ मन

सूखती चामड़ी

कांकड़ भेळो

सूंपै मन आभै नैं साधण।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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