गारा में आका हाथ वारौ

परेवा थकी लथपथ

मुंडा वारौ

मेलं नै फाटं फाट सेतरं वारौ

काम करतो आदमी

असल लागे है

भले वू नती जाणतौ

के टाडौ वायरौ, केनै कै हैं

घोरं भक सेतरं हरते पेरैं हैं

नै तरम तर खावा नु केवु होवै है

पर भूखं नी भीड़

बे नवरं ना नकरा थकी वेगरौ

बेवकत रोटला खातो आदमी

असल लागै है

रात दाड़ी काम करतो आदमी

असल लागै है।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : मणि बावरा ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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