म्हैं फगत मजूरियौ ई
को हूं नी,
घणो मोटो चितेरौ हूं।
थूं हांस्या ना करै म्हारी
इण हालत माथै,
कदै डूब, दरियाव सूं गैरौ हूं॥
म्हैं कोर्यां सड़कां माथै,
म्हारी बेबस कुंची सूं
लोई रंग मांय घणा चितराम,
म्हारै सूं मूंघा बतावै
म्हारा अे चितराम अर
‘आं माथै लिख्यौड़ी कवितावां,
म्हैं वां री मोटी पोथ्या रै
कवर रो चितराम हूं
वी मांय मांडैड़ी
अलंकृत अर छंदबद्ध
कवितावां रो भाव हूं,
पण म्हैं किण रै ई
भावां मांय क्यूं नी,
वै कविता सुणता
आंसूड़ा टळकांवता बतावैं
तो वां रै हिवड़ै मांय
म्हारा आंसूड़ा री
कदर क्यू नी?
म्हारा आंसूड़ा माथै
वै कलम सामै
आं नै पूंछण बिरत
हाथ को उठावै नी,
पण वै क्यूं धोवैं
म्हारी बेबसी रौ मैल,
इण मुजब ई म्हैं वां री
ख्यात रौ डेरौ हूं
म्हैं फगत मजूरियौ ई
को हूं नी,
घणो मोटो चितेरौ हूं।