सिंझ्या-सुवारै सिमरै
ठाकुर जी रो नांव!
भूखी-तिस्सी रैय’र
करै दिन पाधरा...
सोचै-
कदै तो दिन
होसी सवायो,
कदै तो आसी
सांतरो बगत!
कदै तो कण पीवता
आसी मण,
कदै तो सुधरसी
म्हांरो जमारो!
इण आस में करै
दिवलै में जोत,
सूरज-चांद नै देवै अरग...
पण चौखट सूं बारै
पेट नै देवै भरतार,
बोतल रो अरग।