दिवलां री जोत सूं

कर सूं

समूळो घर सैंचनण

कियां पण करूंला

मनड़ै में उजास

जठै पसरयोड़ो है

अंतहीण अंधारो

थारै ताण!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : अजय कुमार सोनी