लियो बासो
एक दिन
आ’र
वनवासी पांडुआं रै
आसरम में
गेलै बगता
अणमींत पांवणा,
हुग्यो मन में सोच
जुधिस्टर रै
जिमा स्यूं कांई आं नै?
बुला’र धण नै
कही सगळी बात,
बोली धण
मे’ल दियो मैं तो
धो’धुआ’र
सूरज रै दियोड़ो
अन्नपूर्णा पात्र,
कयो जुधिस्टर
कर कीं उपाव?
करयो किसना
चीत किसन नै
प्रगट्या प्रभु
बोल्या
जाणग्यो थारै मन री बात
मत कर चिंता
ल्या दै मनै बो पात्र
हैं चिप्योड़ो बीं में
एक चावळ रो दाणो,
उठा’र में लातां’ ही
जीभ पर बा जूंठ
भरीजग्यो पात्र पाछो,
फेर बचाई आप
म्हारी लाज दूजी बार
टपक्यो एक आंसू
गळगळी हुयोड़ी दरोपती रो
किसन रै पग पर,
कयो जा’र
जुधिस्टर नै
बैठावो पांवणा नै
पंगत में,
धापग्या जीम जीम’र
पण कोनी निवड़यो
बो पात्र
पढ’र आ कथा
हुई मन में व्यथा
बणावै निरदई मिनख
अणुबम
जे हुवै संवेदण
तो सिरजै
फेर इस्यो पात्र
जकै स्यूं
भाज ज्या
आखी दुनियां री भूख,
बण ज्यावै
विज्ञान
सैंदेही
विधाता।