नदी नी पैली तेड़ै

वगड़ा वन मएं

रमी रयु है

अपण्णं नु टौरू

एक दाड़ौ

एक पांस वर नी जुवणियात

कुंवारी सौरी

केड़ै केड़ै नदी नु पाणी

पार करी

तणाव नै सीरती

कादव, पाणी, पाणां, कांटा करती

पूगी गई वन मएं।

कईक सानी वात

रहस्य ना

हाद पाड़ता बौलारा मएं दबी

ऊबी ऊबी विशारै कै

मन मोई लेवा वारं

अण्णं रोकाई रएं

नै मुं एणनै हाई लऊं

एणनै रमाडूँ

लाड़ करूं

नै कुइये करी नाकूं:

प्रेम नी तन्नाटी मएं दौडी पड़ी

नै अण्णं नु टौरू नाई ग्यू

खोवाइग्यू आंकं ना ऊजवारा मएं।

आणी अभागी असफलता ऊपर

आत मौरे नै विशार करै कै

आणी जीवणी नी हेत्तीए सीजे

जे मन नै गमी जएं

पाय जातं मएं

सब अण्णं थई नै सौकड़ी मारी जएं।

ग्यं एणं अण्णं नै हातै

सौकड़ी मारी ग्या है।

मखमली विशार

नै रई ग्यू है

लुई भर्यु वेदना संसार।

तोय मन्छा नै विश्वानु भर्यु

एनु मन

दौड्यू अण्णं नै वएं वएं

एणीस् गति थकी सौकड़ी मारतु।

कोत अवै अण्णं

कईयाक तरप नै कनारै

जंगल मएं रमी र्यं ऊंहें

कोत, थाकी नै बोपर गारवा

कइयाक संकड़ा तरै आराम करी रयं ऊंहें

पण ना

अण्णं आजे सौकड़ी मारी र्यं हैं।

अण्णं नी गति नो माप

एनै आज़े सौकड़ी मटावै

नै लई ज़ाय

सपाट रेगिस्तानी

भविष्य दर्शन नो

सिनिमा जोवा।

अंदारा थकी वना वैर नु

मन लई

वन वगडं मएं

वेगरै

अजी वेगरै

आज़े सौकड़ी मारी र्यं हैं

अण्णं नै ऽऽऽऽ

एणनै पसाड़ी

जौवणियात मन नं अण्णं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : ज्योतिपुंज ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण