अणपढ अेकलव्य सूं

फगत

अंगूठो ईज नीं मांग्यो हो

गुरु द्रोण!

अंगूठो लेवण सूं पैलां

कर्या हा कौल-वचन

कै उण री अणपढ पीढ्यां

नीं मांगैली हक-हकूक...

अर उण करार-पानै माथै

लगायनै अंगूठो

कटाय लियो हो अेकलव्य

आपरो ईज नीं,

आवणवाळी पीढ्यां रो ईज

हक-हकूक!

तद ईज तो

कट्या अंगूठा रै जंगळ में

भटक रैया है उणरा वंसज...

कटा रैया हर बार अंगूठा!

लगा रैया हर बार अंगूठा!!

अर

देख रैया हर बार अंगूठा!!!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी