कोरे कागद माथै

मांड लीना

इण जूण रा चितराम

चालता रैया

सांस रौ पुणचौ पकड़ियां

अर सामी आयगी

अेक अणचीती अंधारी पीड़।

रंगीजग्या कागदिया

भरीजगी केई

पोथियां री पोथियां

पण बींधग्यौ

मांय रौ मांय

उण पीड़ रौ पसराव,

जूण रै चितरामां सूं

छानै-सीक झांकतौ

आयग्या सांमी

माळीपानां रै लारला

रीस सूं भरिया

बिमरियोड़ा, भरमियोड़ा

बिरथा गुमान करता सगळा चैरा।

घणौ दोरौ होवै

इण अजाणी

लाय में बळ जावणौ

धुखणौ आखी उमर तांई,

जद तांई ढकियोड़ी रैवै

मिनख री पीड़

बणियौ रैवै अेक भरोसौ

सांचौ कै कूडौ

पण जद मंड जावै

मायंली पीड़ रा चितराम

कोरै कागदां माथै

वा अणचीती पीड़

तोड़ नांखै मोह रा सगळा जाळ।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : सत्यदेव संवितेन्द्र ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी