अेक बणी-बणाई दुनिया ही उणरी
कीं जरूरी जुगत में जूंझती जीवारी
सजती सुळझ्योड़ी पिछांण-
सूनै आभै में झबूकता कीं तारा
जिका आई सिंझ्या अंधारौ घिरियां
आप मतै ऊगै अर दिनूगै पैली
अदीठ व्है जावै आपरै ठायै-ठिकांणै
औ ई कुदरत रौ धारौ है।
जिणरी आस में बरतावै
आखौ दिन आखी रात
नींद नै बिलमावै कंवळा सपना
अर आंख उघड़ियां वै ई खाली हाथ
अडोळौ आंगणौ।
कैवत री मै'मा है-
मिनख रौ पिरथमी माथै जीवणौ
मालक री मरजी रौ परसाद-
देव री इंछा परबारै कांई कर लै मांनखौ?
नीं उणनै इण बडबोली कैवत सूं इतराज
नीं खुद री मन-मरजी ई साजणी,
इंछा फघत इत्ती-सी रैवै
कै जिनगाणी में सोरी लिरीजै सांस
चार मिनखां में बणियोड़ी रैवै साख
तौ घर बैठां गंगाजी-न्हावण व्है जावै।
अे च्यारूंमेर बीगड़ता
बेकाबू हालात-
आंरै सांम्ही कांई तौ कर लै आदमी?
जलम सूं लेय ओजूं तांई
जित्तौ की जांण्यौ-पिछांण्यौ जीयौ
उणरौ अणभव सूं उल्टौ ढाळौ है
थरप्या जिकांनै मोभी आगीवांण
सरायौ भाग-
दीखता कारज वांरा उत्ता ई खोटा
मोकळा नेम बतावणहार
ऊजळा संत-सनेही खुद री नीयत रै समचै
वां परवांणै उत्ता ई ओछा
इण जुग री आही अजब लाचारी है।
यूं बरसां रै अणभव रौ अंतौ सार
वौ पण इणी नतीजै पूग्यौ-
भाग रौ भरम फगत आपै सा'रौ व्है
मन नै धीजावण सारू माईतां री सीख
अेक भौळौ विस्वास सुख री कामना।
आगै ढळियोड़ौ मीठौ मानवी बैवार
अंतस में दबियोड़ी ऊंडी वेदना।
औ सांच जांणतां थकां कै
मिनख रौ भाग
मुलक सूं न्यारौ कोनी व्है
नीं सरीखा रैवै हरमेस दोजखी रा दिन
जिका उतारै पिरथमी रौ भार
वै आभै सूं कोनी अवतरै
नीं जमीं नै फोड़ ऊगै सिरजणहार
जमीं सूं बांध्योड़ी राखै आस
मैणत नै ऊंचौ मांण देवै मरदमी।