दूर सूं उड़तो

एक अणमणो पानको

आय परो

म्हारा खांधां माथै बैठग्यो

म्हें पूछ्यो-

कठै सूं आयो भाया

इण भांत अणमणो सो?

बो गळगळो होग्यो

निरास होय बोल्यो

सै’र सूं आयो हूं

डाळी सूं अळगो होय

नीं चांवतां थकां

रूंख सूं बिछड़ परो।

सै'र मैं

अब म्हारो जीव नीं लागै

दम घुटै

धुंएं में ऊभ्यै रूंख माथै

चीड़ी-कीड़ी

कोयल-कागला

कोई नी रैवै

म्हैं किया रैऊं?

म्हनै

म्हारा भाई

आपरै खांधां बिठा

आपरै साथै राख

ले चाल

सै'र सूं दूर

किणी नदी री पाळ

किणी खेत में

धोरां री रेत में

चावै छोटै सै गांव में

म्हनै ले चाल, बस।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : नरेश मोहन ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन