एक दफा मैं नैरू जी ने तार दियो

मेरे कमरे की खिड़की सैं दिन उगताई

सूरज को सीदो पलको मेरी दोन्यू आख्यां पे आवै

जीं सैं मन्ने छक नींदा में चांणचकै चेतो होज्यावै!

प्रसंग में मैं थानें या याद दिवाद्यूं

भारत का परधान मंतरी, बणनै सैं पैल्यां

थे या घोसणां करी थी

जद भारत आजाद हुवैगो

जणां देस का सभी जणां सुख सैं खाकै सुख सैं सोवैगा

मेरै सुख सैं सोणैं की तो थे सुण ही ली

इब सुख सैं खाणैं की सुणल्यो

मेरै घर में एक बिलाई ऐयां की हीली है

थानें कियां बताऊं

मेरै नहीं समझ में आवै बींकी घाली क्यांमें जाऊं

वें मरज्यांणी सैं मैं कैयां पिंड छुटाऊं!

मैं थाळी में घला रोटड़ी,

पैंडै में पाणी को लोटो भरबा जाऊं

पाछो आऊ तो थाळी में थाळी पाऊ!

बोलो इब मैं मेरो सिर सुख से खाऊ' कैं बींको खाऊ?

ऐंयां मैं सुख सैं सोणैं खाणैं की दोन्यूं हीं तकलीफां

तार भेजकै थानें याद दियाणूं चावूं (क्यूंक)

भारत का परधान मंतरी बणनै सैं पैल्यां

थे या घोषणां करी थी

( इब) के तो सूरजकै आगै डोळी करवाकै

और केन्द्र की पुलिस भेज, मेरै घर की बिल्ली मरवाकै

दस दिन के भीतर भीतर परबंद कर दियो

और नहीं तो मैं अनसन ग्रामरण करूंगा!

के तो मेरी दोन्यूं मांगां

दस दिन के भीतर भीतर मंजूर कर लियो

और नहीं तो मैं डरूंगा, सोच लियो थे

मैं कोई मंदर में जाकै इब अनसन आमरण करूंगा

एक बात मैं और बताद्यूं

मैं कोई ऐरो गैरो नत्थू खैरो कोनी हूँ

मेरे पीछे हज्जारां हीं फोलोवर है

जींसें कूं हूँ मैं डरूंगा

मैं अनसन आमरण करूंगा!

तार भेजकै मैं मन में यूँ सोचरण लाग्यो

तार बांचतां हीं नेरू जी घबरा ज्यासी

जीं दिन अखबारां में

मेरी मांगां कै सागै मेरी फोटू छपज्यासी

बीं दिन सैं हीं रोज मिलणियैं लोगां को तांतो बंधज्यासी

कोई बीच बचाव करण दिल्ली सै आसी!

मनैं भुळा चुपळा समजासी

राजाजी की सुबकामनां तार सैं आसी!

प्रेस प्रतिनिधि मेरो भाषण जा अखबारों में छपवासी

बजन लेणनैं आप डाकदर बिनां बुलाये घर में आसी

और जिलै का सगळा नेता सै ओफीसर मनैं मनासी

(अर) मैं मन्दर में सुत्यो सूत्यो सब कहूँगा-

मैं कोन्यां मानूं भाया मैं कोन्यां मानूं

मैं मेरे बचनां सैं पाछो नहीं फिरूंगा

मैं अनसन आमरण करूंगा!

आखिर बै दस दिन भी बीत्या

पण दिल्ली सैं नेरूजी को

हां नां को जुबाब नहीं आयो

जद दसवें दिन मनें चौगणूं गुस्सो आयो

पण अनसन के खातर कोई

मंदर मांग्यों नहीं मिल्यो जद मैं घबरायो

क्हैयां जैयां नरसिंगजी के मंदर के महंत नैं पटायो

बठे जा' माचलो बिछायो दियो

और गांव में दो रिपिया देकर सारै डूंडी पिटवाकै

बडा बडा परचा बंटवाकै

मैं बस आंख मींचकै अनसन सुरू कर दियो

आठ बजे सी मेरी चा को टेम हुई जद मनमें सोची

आज आज तो आपांनै कुछ घरां कलेवो करके थोड़ो

चा'पाणी करके पाछै आणूं चाये थो

पण मंदर के चक्कर चक्कर में—

या निरणांबासी ही आकर कै जमगा

ऐयां कैंया पार पड़ेगी?

पण देखी जासी राम हुवालै!

बैठ्यां बैठ्यां ग्यारा बजगा

मगर एक भी जणूं मिलने कोनीं आयो

मंदर का म्हंतजी दाळ के छूंक लगायो

मोटा मोटा रोट सेककै

कूट ऊॅंखळी में - ' मिलाकै खांड,

आरती कर भुगान कै भोग लगायो

जींम एकला जद ढकार ली

जद मेरो काळजो बठे कंठा में आयो!

सोचण लाग्यो

आपां भी जे आज घरां होता तो इब्बी

दैड़ां को चूरमूं कुटाकै पंचमेळ की दाळ छुंकाता

यो तो सूकट ही खारयो है

पण आपां घी का भीज्या पींडिया बंधाता

और बैठ पींडिया च्यार कम से कम खाता

और पेट पे हाथ फेरता तुरत पान खावरण नैं जाता!

यो सूका रोटा चूर्या है जीमें यो मोदो होर् यो है!

आपानें तो आकर टोकार या ही कोनीं

ऐंया मैं इबसैं अनसन नां कर राख्यो है

कुण सो कै 'तां हों मैं के गळै पड़ै थो?

पण कम से कम नैं तो कैणूं चाये थो

अनसन तोड्यां पीछे आपां सैं सैं पैल्यां

दाळ -चुरमै की हो एक गोठ करवास्यां

पण देखो कैंया के टूटै!'

ओज्यूं सोची

ऐंयां बैठयां बैठयां तो दिन दोरो कटसी

थोड़ा आडा ही होज्यावां' इयां सोचकै आडो होगो

आडो होता हीं बस मेरी आँख लागगी

कैबत भी है भूखो बामण सोवै ज्यादा

जातो संज्या चेत हुयो जद बठे घड़ी में प्यार बज्या था

मैं पसवाड़ी फेर यो अर उठणै की सोची

पण लागी जाणैं उठतां हीं चक्कर आसी

जणां खाटपै पड़ यो पड़ यो मैं बठे म्हंत ने हेलो मारयो

बाबाजी, मेरै सैं मिलबा खातर कुण कुण आया था? बाबाजी बिजिया राणी के

लोडी को सल्डको लगाता ही यूँ बोल्या

म्हांने तो कोई भी कोनी आयो दीख्यो!

मैं सोचै थो इबताणी तो-

आसपास के गांवां में भी खबर फैलगी होगी सारै

और मोटरा लियां लोगड़ा आरया होसी

पण आपणैं गांव का भी कोई नहीं पाया

अखवारों में खबर निकाळ्यां छै दिन होगा

ओर आज डूंडी पिटवा, परचा बंटवाया

पीछै भी इवतागी कोई नहीं मिलण नैं आया

ना हीं कोई बीच बचाव करणियां आया इब के होसी

पैले दिन हीं इयां काळजो

कटर कटर कर रयो है तो आगै के होसी?

संज्या होगी!

'लोग ताल में बैठ्या बैठ्या खारया होसी बड़ा पकोड़ी

कदे चाट में दही गिराकै, कदे दही में चाट गिराकै!

में सोच ही थो इतणैं में

एक जणूं मंदर कै स्हारै हाळी ही छातपै खड्यो यूँ

बठे लुटारयो थो चीलां ने बड़ा-पकोड़ी (अर)

चील चील बड़ो ले कांजी को कड़ो ले

मन्नें पड्यो सुणाई

मैं सोची आपणै से तो ये चीलां भी बड़भागरण है

(जो) बुला बुलाकै लोग लुटावै बड़ा पकोड़ी

चांणचकै ही मेरी निजर स्यामनैं दौड़ी

एक बड़ो जो नहीं चील के पंज्यै में आयो थो-

बो मंदर कै चोक में पड़यो थो

जद मेरे में चांणचकै ही अंगद को सो बळ आयो

अर में उठकर देखभाळ कै च्यारूं कानी

झटसी बड़ो उठा'र सावतो मूँ में घाल्यो

अर मुड़कर पाछो माचै कानीं चाल्यो!

दिन छिपगो जद एक दोस्त पूछणनै आयो

चुपकै सी बैठयो बोल्यो- क्यू के सल्ला है?

मैं बोल्यो क्यांकी सल्ला है?

एयां तो दो दिन में हीं मेरा कड़तू भेळा होज्यासी

तेरी काळी गाय क्हैंयां तू मनें जिवादे

के तो तूं मन्ने चुपकै सी पेड़ा ल्यादे

के तूं ल्याकर एक दूध को लोटो प्यादे!

तेरी काळी गाय कि्हयाँ तू मनें जिवादे!

यूं सुणतां हीं उठकै पाछी जूती पैरी

अर बांकी बां पगां ताल में जा चुप सी

एक दूध को लोटो ल्यायो

लोटो लेकर मैं होठां कै जणां लगायो

इतणैं में हीं दरवाजे पै-

पुरब जलम को बैरी जाणें कुरण टपक्यायो

बो खोलो खोलो करतो ही सीदो छाती पै चढ़ आयो

जीं पैल्यां हीं मैं लोटैंने मांचै कै नीचे सरकायो!

वो कोई यूं फ्रंट पारटी को सो थो

वार्तां करतो करतो म्हांटो हाल्यो ही कोनी

जारौं कोई जासूसी करवा आयो थो!

मैं बीनें कमसे कम दस वर बोल्यो होसी

मेह अधेरी रात होयगी

टाबर टीकर घरां एकला डरता होसी

तू जा क्यूं ना?

आजकलै तो चोर-चकोरां को भी क्यूं जोरो होर् यो है

थे इब दोन्यूं हीं चालो मैं ठीक ठाक हूँ

दिन में तो हालत बिगड़ी थी

पण इबतो हिम्मत बांधगी है!

बडी मुसकिला से मैं बां दोन्यां नैं काडया

तो इतणैं में महंत मर् यो!

बोल्यो ठाकुर जी पोढ़ै है

थे सारो दिन ईं माचै पर ही काढ्यो है

इब सोता तो ठाकुरजी का दरसण करल्यो

उठो और आरती कराद्यो

जाणैं मेरै में जद के खोटो दिन बड़गो

मैं कैतां हीं सभामंड कै कानी होगो

कहैंयाँ जैयां करा आरती पाछो आयो

और महंत कै सोयां पाछै जरणां चावसें लोटो ठायो

तो इतणी जल्दी उठगो ज्यूं कागज को हो

रीतो लोटो देख मनें भूंटेरी आई

आँख तिरमिराई अर मैं माथैं में खाई

वारै रांड बिलाई अठे भी आगै पाई!

ठाकुरजी का दरसण करणैं की मैं के परसादी पाई

अरे राम! इब आस आस में क्हैयां जैयां दिन तो कडगो

पण या पांच प्हैर की कैयां रात कटैगी?

मन्नें मेरै पै ही इतर गुस्सो आयो

भूख नहीं निकलै थी तो मैं

क्यू एयां को फैदो ठायो?

और आज दिनगे भी थोड़ी गळती करगा

कई लुगायां कबूतरां के खातर-

मोठ घणां हीं गेर् या था-

बांमें से ही कुछ पाव- आदपा सोर-सार कै—

धरलेता तो पड़ी भिड़ी में आडा आता!

एक बिचारी सिवजी पै भी

गुड़ की एक डळी घरगी थी

बा ही ठा लेता तो क्यूं तो स्हारो होतो!

चांणाचकै ही मेरै याद आई म्हंत जी-

ठाकुरजी के भोग लगाकै

चुटकी और मखाणां को डब्बो ठाकुरजी-

कै स्हारै हाळै आळै में हीं मेल्यो है!

मैं उठके धीरै सी मंदर का पट खोल्या

और अंधेरे में हीं अटकळ सैं टिटोळ कै, डब्बो ठाकै दाख-मखाणां चुटकी खाकै

रीतो डब्बो ठाकुरजी की सेवामें पाछो मेल्यायो

मन्नैं ठाकुरजी भूखां मारयो है तो मैं भी यूं-

ठाकुरजी नैं इब भूखां मारूंगा

देखूंगा भूखै बामण को दूध दुळाकै

ठाकुरजी भी किसाक चुटकी दाख मखाणां भोग करेगा'

पण परसादी सैं क्यांकी छुदा मिटै थी!

क्हैयां जैयां तड़फ तड़फकै तारा गिणकै पेट पकड़कै-

मैं बा एक रात तो काडी

दिन उगतां हीं छोरै नैं साग लेकर कै

मंदर में मेरी घरहाळी झखती आई

आतां हीं बोली- वो कुण बापकोम्हुगावणूं

थानें भूखा मरणैं की या सीख सिखाई

के तो कोई नहीं कर सकै कदे कमाई

के घरहाळी सैं राखैं रोज की लड़ाई

बो मंदर में आकै बैठे

घर गिरस्त हाळा मंदर में आकै बैठैं!

थानें थोड़ी लोक ल्हयाज भी कोनी आई!

उठो खडया होवो, घरां चालो इब सागै सदगी थारी

मैं सुन्न होयोड़ो सो बोल्यो, 'चालू' तो गा

पण दिन दिन में ठरक आज रातनैं आस्यूं!

बा बोली- चोखो कोनी सदगी होसी

पण इब नैं रात आवैगी? मैं इब लेकै जास्यूं!”

यूं सुण मे मूडो लटकायो

धीरै सी चादरो समेट' माचो ठायो

दाब कांख में मैं सीदो घरकानीं आयो!

एक जणू फोटोग्राफर कै सागै आतो सामैं मिलगो

बोल्यो हैं? मैं के देखू हूँ अनसन यूं हीं तोड़ दियो के?

मैं तो फोटू तारणनैं नै ल्यायो हूँ

पण इब्बी तो एक पोज लेणू हीं चाये

मैं बोल्यो इब बाळ कैमरे नैं तूं काल कठे मरगो थो

मेरी सुकेड़ी करवादी!

कड़तू भेळा होगा मेरा रात रात में

इब मन्नैं कोनी कोई फोटू उतराणी

मेरी तो उतरयोड़ी ही है!

स्रोत
  • सिरजक : विश्वनाथ शर्मा विमलेश ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी