नीं ओळख्या?
हर गांव,
गळी, गुवाड़ मांय
आखै बास रो
कूड़ो-करकट, बांस्योड़ो
छूंतका, गंद-पिल्ल
सैंग कीं राखूं।
आपरै फैंक्योड़ै थूक सूं लेय’र
कुत्तै रै मूतण तांई...
का सा'रै ईज बगतै नाळै,
का कादै मांय
मुंडो मारतै सूअर नैं
बैठण री जिग्यां देवण तांई
सैंग म्हैं हूं।
म्हैं
आपरी अकूरड़ी हूं!
लंघता-टिपतां
ध्यान नीं आई थारै...
आपरो घर साफ रैय सकै
इण खातर
म्हैं सांवट ल्यूं
सो-कीं...
राम, सलीम
बलविंदर का जोसफ रो
फरक करै बिनां।
कदै-कदास
आपरा टाबर
खेलतै थकां
गिंडी का गुल्ली लेवण आवै
तो म्हैं उचक’र
बंतळ करणी चावूं
पण टाबर तो टाबर ईज हुवै।
लुगाइयां-पताइयां
कचरो नाखै
तो चे'रो अर कूड़ो-करकट देख'र
म्हैं आपरी रिजक
अर मनगत समझ ल्यूं-
म्हैं मांय ई मांय!