आकास रौ रंग

फीकौ अर उदास दीखै

आकास रौ रंग

आसमानी अर निरास दीखै

आकास रौ रंग

काळौ स्याह, बुझ्योड़ौ अर हतास दीखै

पण आकास रा असली रंग

अै सब नीं व्है

क्यूं के आकास रौ पेट घणौ मोटौ है।

अेकलौ धूमकेतु

आकास में चानणै री चीख भर दै

अेकलौ सूरज

आकास में हजारूं-हजार रंग बिखेर दे

अेकलौ भतूळ

आकास में आंधी-तूफान मचाय दै।

आकास

अेक छळ भरयौ प्रदेस है, भाई

उणरौ पेट घणौ मोटौ है।

आकास रौ रंग दीखै वो कोनीं

आकास रौ ढंग दीखै वो कोनीं।

जन-बळ इणी तरै छळ भरयौ पोटौ है

उणरौ पेट यूं तौ घणौ मोटौ है।

पण आवै जद इणनै गुस्सौ-अणूंतौ खोटौ है।

पून झकोरा नै बांधैला

कद तांई थूं?

थर-थर करण लागी है

दिस-दिस री फुरणी

तिरसी धरती री

नस-नस में अबै तेड़ा

हाडक तिड़के है।

मिनखां रै जीव रा बैरी

किण खूणा में थूं लुकैला ?

आंख्यां मींच

भलांई देख

च्यारूं खूंट पळापळ करती

बीजळ्यां कड़कै है....।

थूं रोक नीं सकै

म्हनै वै गीत गातां

जिका म्हारी रगां में

रगत रै साथै फड़कै है

थूं रोक नीं सकै

म्हनै वै गीत गुणगुणावतां

जिका म्हारै

काळजै रै माय धड़कै है॥

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : बी. आर. प्रजापति ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी