म्हें

उमर भर

सूरज दाई तपियो

पण थारै कनै

उजाळौ कोनी पूग्यौ

म्हैं

जीवण भर

सावण दाई गळ्यो

पण थारौ हिवड़ो

नी भीज्यौ

तो

म्हारी प्रीत ओछी रही

म्हारो जीणौ अकारथ गयो

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : मदनमोहन पड़िहार ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा