कोई वार यूं लखावै

जांणै पंखेरू

रूंखा माथै नीं

म्हारै मांय किलोळां करै

मांय रौ मांय बैवै

एक धीमौ-मधुरौ बायरौ

मुळकै भांत-भांत रा फूल

निरत करै किरणां

रूंखां पर झूमती-

अणगिणत अचपळी लहरां

पांखड़ियां ज्यूं उडतौ म्हारौ मन

मांवौ-मांय निरमळ व्हेतौ तन।

उण बगत यूं लखावै-

नीं तौ म्हैं कोई सांचौ हूं

नीं कोई री घड़ियोड़ी ढळगत,

म्हैं एक अरूप लय हूं

कुदरत रै इकतारै नेगम रुणकती

संगीत री एक मरम-सुरीली तांन

बगत री अणबोली अणगूंज

के म्हारै मांय बिगसै जीवण-राग

अणमिख रास करै सपना-

सिरजण री ऊरमा

पसवाड़ा फेरै

एक आखौ अरूप संसार म्हारै माय।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : सुमन बिस्सा ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम