दिहाड़ी वाळो जद घर सूं निसरै,
खुद रा,माईता रा सपना सागै
आखै दिन सुरजी तळै तपै
परिवार सुख री आस मांय
सैंस मिनखां री बात सुणै
जण जा'र आ दिहाड़ी मिळै
पण जगत रा अधकिचरा धनी
मजूर री मजूरी री तौहीण करै
रिस्तेदार बी रिस्तेदारी छोडो
बतळावै तो लिलाड़ सळ भरै
मजदूर च्यारां कानी सूं दबेल है
अमीरां री अमीरी रो खेल है
गरीब नै कुण कद साख देवै
दिहाड़ियो हमेस पिसतो रेवै
मिनखां री आ मानसिकतां
समाज मांय दो भांत भर देवै
मजूरियो हमेस ऄकलो रेवै।