लिख जावै है

सिंझ्या राणी

अेक नाम अनाम।

लिपयोड़ी

अर पुतयोड़ी

बसती रो भोतां नै

छळै है

'मोर पंखिया' मौसम

हंस के

धीरे धीरे

बैठ्यो बैठ्यो

पनघट बूढो

सन्नाटां री माळा पोवै

बेर बेर मं

गांव रो बूढ़ो।

चिलम धुआं सै

घुट घुट खांसै,

पीपळ रो पान

धीरै धीरै बात करै

अर दूर कठै बोलै कोचरी

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : पूरन सरमा ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा