मंगता

चालता छोकरा ईं टोक्यौ

कटोरौ अगाड़ी कर’र

मारग रोक्यौ

बोल्यौ—बेटा!

पुन्न की जड़ सदा हरी

दाता की तिजौरी रैवै

भरी की भरी

अेक रुपियौ दे दे

तन्नैं अेक लाख मिळैगा

ईं गरीब मंगता का

वचन तन्नै फळैगा

छोकरा आपणौ

हाथ उठी बढ़ायौ

भीख का कटोरा में

आंख्यां ईं गडायौ

कटोरा सूं अेक सिक्कौ

रुपिया को उठायौ

फेर भाख्यौ

लो थांनैं लखपति बणायौ

बाबाजी!

म्हूं तो जीं हाल में हूं सुखी हूं

पण थे भीख मांगौ

या देख’र दुखी हूं

थांका पुन्न करमां की

सूखी जड़ हरी हो

दाता क’ लेई या

लाखां की लोटरी हो

दान सीस धारयौ

कै’र रुपियौ ले’र फूट्ग्यौ

मंगतौ आपणी चालाकी सूं लुटग्यौ।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : श्रीनंदन चतुर्वेदी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन