करसो सूतो हू’र नचीतो

अड़वो खेत रुखाळै।

इयां बैम स्यूं दिन दोपारां

फट बिसवास ठगीजै,

आंख्यां देखी इसी साच के

कोनी झूठ कहीजै?

संसो मारै भूख एक नै

तो दूजै नै पाळै।

करसो सूतो हू’र नचीतो

अड़वो खेत रूखाळै।

हांडी लकड़ी पूर बणायो

मिनखां रो उणियारो,

झूठ साच तो खेल अकल रो

मूरख पकड्यो लारो,

हिया फूट बै जका बापड़ा

बंधी लीक पर चालै,

करसो सूतो हू’र नचीतो

अड़वो खेत रुखाळै।

समझदार बो जको ढांचै

रै डांचै में पड़सी,

मार कांकरो जड़ चेतण रो

झट पितवाणो करसी,

काढ़ै नूंई कळा, चाळै

बो घाल्योड़ै ढ़ाळै।

करसो सूतो हू’र नचीतो

अड़वो खेत रुखाळै।

स्रोत
  • पोथी : कन्हैयालाल सेठिया समग्र ,
  • सिरजक : कन्हैया लाल सेठिया ,
  • संस्करण : प्रथम