समझ में नीं आवै

के' आदमी

जानवर नैं जानवर क्यूं केवै,

बो नैं हीण क्यूं समझेर

बी सूं घिरणां क्यूं करै?

ठीक है कै

बीकै बुद्धि नीं व्है

लाज सरम नीं व्है,

खाणां-पीणां को

मान-मर्यादा को

अर भला-बुरा को

बीनैं ग्यान नीं व्है;

पण,

आदमी री ज्यूं

विश्वासघात तो नीं करै

मुंडे बड़ाई'र

पोठ लारू

बुराई तो नीं करै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : गिरधारीसिंह राजावत ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा