म्हैं जोवूं वो गैलो

जिण सूं होय

म्हैं निकळ जावूं उण पार

आपरी मजळ कानीं

पण दीखै नीं म्हनैं वो

नीं निसरयो होवै

कोई बेईमान

कोई परलोटौ

कोई झूठौ

कोई हत्यारौ

कोई पापी

नीं...

नीं मिळै म्हनैं वो गैलो

तो फेर पकड़ूं

वो इज गैलो

जिणसूं निसरै फगत ढोर डांगर

जिकौ अबोट है, अछूतौ है

अजै

झूठ-कपट, छळ-छंद अर

पाप री छियां सूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वाज़िद अली ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ