डील तो फिरै म्हारौ

डोलतौ अठी-उठी

पण आत्मा री उडांण

सफा न्यारी

नूंवी बींदणी रा

बळ खाया मारग

चालती जावै

कीं जेज धुंवाड़ै में

पाछी बावड़ै तो भीज्योड़ी

ज्यां समंदर पार कर आयी

कै पसीना घाण हुयौड़ी

जियां देख आयी हुवै

म्हारौ भविस

बैठ जावै

अेक खूणै

अबोली।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वाज़िद अली ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ