अेक

पेड़ कटग्या
गरमी बधगी 
परदूसण है भारी 
जण कुरळावै-
अब के आवैगी बरसात
पण सारी निरासावां नै 
टोसो दिखा’र  
आय ई गी धपाऊ री बरसात 
साची...
इयां के मरणद्यै
आ कुदरत आपां नै 
आपां इयां ई 
छोड़द्यां धीजो।


दो 

मानां कै छेकड़
बरसग्या बादळ
पण 
इण स्यूं पैली 
कितणी ई आंख्यां
बरस’र धापगी।


तीन

बिरखा आवै ई कियां
बिरखा नै बुलावणियां
मोरियां नै तो आपां 
रैवण नीं दिया।
स्रोत
  • पोथी : आसोज मांय मेह ,
  • सिरजक : निशान्त ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन