आवो भागां

उंतावळा भागां

पण भागबो अपणा मन सूं कोनी हो सकै

रामजी लिख्यो कै

दौड़बो तो आपणी मरजी सूं

पण

भागबो और की मरजी सूं

जियां भागबो चोर रो।

तो औरां री मरजी सूं क्यूं भागां

आपणी मरजी सूं, आपणा मन सूं दौड़ां

जोर लगा’र दौड़ां,

वां कबूतरां री जियां

जका सिकारी रा जाळ नैं

आपरी पगथळयां में ले उडग्या

दौड़ता, पांखड़यां में बायरा नैं तोलता

फेर पछै

जाळ फाड़ता

उडग्या आभै में।

तो भागबो छोड दौड़ां

आपणी मरजी सूं

आपणा मन सूं दौड़ां।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : मनोज शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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