भैया जी बणावें बैठा माल पूआ।

आखा घर में धुंआ ही धुंआ॥

कहत कबीर सुणो भाई साधो, कोई नै धुंआड़ो मिलै कोई नै पुआ।

सूखा लाडू फोड़ां-सांधा, गळी जेवड़ी नार्‌‌‌‌या-बांधा।

कांधा पकड़ एक दूजा रा, हाथी देखण चाल्या आंधा॥

नागा नाचै, धमका होवै, गाय हींजड़ा ‘हुआ हुआ’।

मिनख हो गया मुड़दा खाऊ, इण बस्ती हर चीज बिकाऊ।

बाण पटक के अर्जुंन ऊभा, सगला कौरव काका, ताऊ॥

ऊंदा पड़ै साँचरा पासा, इब जिनगाणी हुई जुआ।

बंट री अठै नींद री गोळ्यां, मैली गाद्यां, उजळी खोळ्यां।

लजवंती बेसरमी बाई, लांबा घूंघट, खुल्ली चोळ्यां।

मिजमाना तीं खीर-चूरमा, घर रा भूखा हंसें तुआ।

आपाधापी धक्कम-धक्का, जीबो जाणै सिरफ उचक्का।

धोरारम, गोधम, अंधारा, मार रह्या है चोका छक्का॥

कुड़सी किसन कन्हाई, मोड्या भजन सुणावै नुवा नुवा।

ऊपर नीचै खींचा ताणी, भलां भलां रो उतर् ‌ओ पाणी।

देखो, सुणो, बांचल्यो चावे, लरड्यां हांक रह्या सैलाणी॥

राज रोग सूं देश दुखी है, एक लागी दवा-दुआ।

दोष मंढै दुजां रै माथै, शीश सेवरा बांधै हाथें।

बैंगण खावै, बुरा बतावै, टेर मिलावे माध्या साथै॥

‘जीजा’ जीबो दोरो होग्यो, माखी, माछर जुआं ही जुआं।

करम करम री बात कबीरा कोई नै धुंआड़ो मिले कोई ने पुआ॥

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : त्रिलोक गोयल ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर