कई बार लागै है-कै
अेक आग है
ज्यो च्यारूं मेर बलै है
पण नी समझ सक्यी हूं
आज लग—कै
आ आग कैवे काईं है?
म्हारो ठण्ड सूं सिक्ड़योडो डील
अर फकत आग
दोनूं मिल’र जीवै है—पण
अेक आग मायलां में भी बलै है
कास! मैं बी नै बारै नै देखती।
अबार अबार अेक
बलतो दिवलो बुझयो है
मन अेक अजाणी पीड़ सूं
कुलण लाग्यो है
अर अबै लागै है—कै
म्हारै मायलां में धधकती आग
राख नी हो जावै?
बा आग बुझै
इण सूं पैली सोचूं हूं कै
म्हारी आधी कविता रो
अेक छन्द तो पूरो कर लेवूं
जिण सूं आग
कविता रै सागै तो जीवती रैवे?