राजस्थानी लोक साहित्य भंडार अनेक रत्नाकरों से भरा हुआ है। इसी भंडार की एक उज्जवल मणि के जैसे ही इसके लोक गीत हैं। लोक गीतों की विषयवस्तु के अनुरूप उसके अनेक वर्गीकरण किए गए हैं जिनमें से एक स्वरूप 'कथा-गीतों' का भी है। जिन गीतों में किसी कथा का छोटा या बड़ा कथा-सूत्र मिलता है, उन्हें कथा-गीत कहा जाता है। ये सामान्य लोकगीतों की तुलना में दीर्घाकार होते हैं। इनमें कथा-तत्व पर आधारित काव्यरस के साथ संगीत-रस भी समाहित होता है। इनका गेय रूप लोकहृदय को रस-सरोवर में निमग्न कर देता है। विषयवस्तु के आधार पर राजस्थानी कथा-गीतों को पौराणिक, ऐतिहासिक और कल्पित कथा-गीतों में विभाजित किया जा सकता है। कथा-गीतों में पुरुषों की अपेक्षा महिला वर्ग द्वारा गाए जाने वाले गीतों की संख्या अधिक है। पौराणिक कथा-गीतों में श्रीकृष्ण-चरित्र, श्रीराम-चरित्र, शिव-पार्वती, ध्रुव-चरित्र आदि प्रमुख हैं। ऐतिहासिक कथा-गीतों में मीरांबाई, रूपांदे, तोळांदे, मरवण, सजनां, उमांदे, बैनांबाई, जैतलदे, लाछां, हंजर, जसमल, चंद्रावळी आदि प्रमुख हैं। कल्पित कथा-गीतों में पणिहारी, बिणजारो, पपैयो, होळी, घूघरी आदि लोकप्रिय हैं। वस्तुत: कथा-गीत लोकस्वर, संगीत और कथा का ऐसा सम्मिलित सुरीला रूप है जिसके माध्यम से कथानक सरस तरीके से हृदयंगम हो जाता है। राजस्थानी लोकगीतों के स्वरूपों में से एक कथा-गीतों का भी लोकसाहित्य में विशिष्ट स्थान है।