(दोहा)
अेक दिन राजा भरथरी, खेलण गया शिकार।
गुरु गोरख जब आ मिला, मारी ज्ञान कटार।
(उठत)
ले लिया भरथरी जोग ने, दुख सुख भी करम से मिलता जी।
(सिधांत)
राजा भरथरी जान, बड़ा बलवान राव बलकारी।
अेक दिन करने शिकार, सजी असवारी।
बन में गया सरदार, मृगों की डार, निरख अती भारी।
अेक काला था मृग, बाण टनकारी।
(मधचोक)
राजा ने बाण समाया, मिरगी ने बचन सुनाया।
मत हतीये मिरग की काया, सबका सरदार बताया।
(सेर)
सत्तर मिरगी के बीच में, अेक मिरग सरदार है।
हे राजा मारै मति, यह दुख की भरी पुकार है।
जो मनसा है शिकार की, मिरगी मार दो और च्यार है।
काला मिरगा मारै मति, यो सत्तर का भरतार है।
(जोगिया)
मतना भी मारै काळै मृग नै हो राजन, मिरगी करती पुकार जी।
सत्तर भी मिरग्यां में मिरगो अेक है जी राजन, सबको है भरतारजी।
मतना भी छोड़ै थारै तीर नै हो राजन, लिजे जी धर्म बिचार जी।
मिरग मारै से मरज्या मिरगली हो राजन, कहती होय लाचारजी।
(संगीत)
मतना मारै काळै मिरग नै, बचन हमारा दिल में धार।
मिरग मार के पाप करेगा, जल्दी जायेगा यम के द्वार।
सतवादी राजा सुरज्ञानी, मत कर घात जरा धर्म बिचार।
जो तूं इस मिरग को मारै, राव डूब जायेगा मझधार।
मिरग मारने से सुन राजा, मिरगी श्राप देवै ततकार।
राजा हो अधर्म नहीं करता, सदा धर्म का करना सारजी।
(उठत)
फेर भोगै नरक के भोगने, पड़ा नरक बीच हिलता जी।
ले लिया भरथरी जोग ने, दुख सुख भी करम से मिलता जी।
(सिधांत)
मन में करके घात, राव कहे बात, मिरग मारूंगा।
मिरग मारना, धर्म नहीं हारूंगा।
कर में शस्त्र धार, मीरग नै मार, कारज सारूंगा।
काळै मिरग को मार, भव से तारूंगा।
(मधचोक)
राजा ने बाण टंकारा, सिर खैंच मिरग कै मारा।
पड़ा धरणी बीच चिल्लारा, मिरग्यां हा हा कार पुकारा।
(सेर)
लग्या राव का बाण, मिरग नै जब मारग्या।
सिर की पैनी धार थी, मिरगै का कलेजा फारग्या।
ख़ोटी घड़ी थी राव की, राजा भी कुबद बिचारग्या।
मरती समय में मिरग नै जब, हरी का नाम उचारग्या।
(जोगिया)
मिरगा भी मरग्या हंसला उड गया रे कोई, मिरगी भी भई लाचार जी।
पापी तूं मारा काळै मिरग नै हो राजन, दिन्या भी जुलम गुजारजी।
अेक दिन रोवै राणी पिंगला हो राजन, नैणा में आंसु भी डार जी।
सतर भी मिरग्यां कुरळा रही हो राजन, रो-रो भी करती पुकारजी।
(संगीत)
सुनके रूदन सत्तर मिरग्यां का, राजा दिल में किया विचार।
बन में रोवै पंछी सारा, राजा देख दिल मानी हार।
गुरु गोरख जब आगै पहुंचा, राजा से यूं कही ललकार।
क्यों मारा यह मिरग काळेरा, लगे पाप जाये यम के द्वार।
राजा भरथरी हाथ जोड़ के, पड़ा चरण में बारम्बार।
कै सरजीवन मिरगो कर दे, नहीं गुरु मेरे मार कटारजी।
(उठत)
गुरु काट मेरे भव रोग नै मैं दुख अग्नि में जलता जी।
ले लिया भरथरी जोग ने, दुख सुख भी करम से मिलता जी।
(सिधांत)
सुन मिरगा दिया जीवाय, मिरगी हर्षाय, बड़ा गुरु ज्ञानी।
धन-धन गुरु महाराज, बची ज़िन्दगानी।
योगाभ्यास का ज्ञान, ज्ञान का मान, सत्य हम जानी।
करामाती हो आप, रही ना छानी।
(मधचोक)
गुरु हमनै करल्यो चेला, झुठा है जग का मेला।
नहीं चाहिये राज झमेला, पल भर ना रहूं अकेला।
(सेर)
गोरख जब कहने लगा, बुरी ज्ञान की मार है।
लगे कलेजे चोट राजा, आर है उस पार है।
कठिन योग की साधना, छूरी की पैनी धार है।
ज्ञानी बन के योग साधै, भव से बेड़ा पार है।
(जोगिया)
बस में तूं करले मन आपणो हो राजा, दस ईन्द्रियां ने मार जी।
तज दे अमीरी, फकीरी धारले हो राजन, माता कहो थे घर की नारजी।
इस विध साधो प्यारे जोग ने हो राजन, भव से तो होज्या बेड़ा पार जी।
भीख ले आओ घर की नार से हो राजन, तज तिरीया से प्यार जी।
माता भी कहोरे घर की नार नै हो राजन, सब तिरीया अेक सार जी।
कर में कटारी गुरुजी धार के जी कोई, दिना है कान जब फाड़ जी।
मंत्र सुणाया जब कान में हो गुरुजी, ओम जो शब्द उचार जी।
(संगीत)
गयो महल जहां पिंगला राणी, मात पिंगला भीख दे घाल।
तूं माता मैं पुत्र तुम्हारो, अरज करे जोगी को लाल।
ले के भीख जब राणी चाली, जोगी पे पहुंची तत्काल।ट
गळै में सैली तन पर भस्मी, ओढ़ रखी मिरगों की खाल।
बन कर जोगी वो मतवाळो, कानां में मुदरा ली घाल।
राणी पिंगला जान गई है, राजा भरथरी का कौन हवाल।
थर-थर धूजण लागी राणी, छूट पड़्यो सुबरण को थाळ।
पड़ी चरण में रोंवण लागी, खुला जो कर के सिर का बाळ।
राजा भरथरी खड़ो पोल पर, राणी रूप नै देख्यो सम्भाल।
(उठत)
पति किस विध त्यागै भोग ने, नहीं देख कळेजा खिलता जी।
ले लिया भरथरी जोग ने, दुख सुख भी करम से मिलता जी।
(सिधांत)
सुण मेरा सिर का श्याम, कहने लगी बाम, जोग क्यों लिया
बिना पति के नार, धरक है जीया।
तुम बिन सुना राज, शीश का ताज, उतार क्यों दिया।
हम तड़फ-तड़फ मरजाय, झुर रहा हिया।
(मधचोक)
तिरीया ने मात बताई, पति जरा शर्म ना आई।
मुख पर छाई जरदाई, ना आंसु झड़ी लगाई।
(सेर)
मैं राजा, जब तूं नार थी, मैं जोगी, तूं मेरी माता है।
राणी मैं जोगी बन गया, अब कुण हमारी जात है।
राणी तूं भिक्षा घाल दे, और कुछ ना बात है।
सुण वचन तब राव का, राणी का धूज्या गात है।
(जोगिया)
राजा तूं जोगी बण चल्योरे पीव मेरा, फीका भी कर गयो देश जी।
काजल भी फीको मेरै नैण को रे पीव मेरा, बिरंगा भी लागे सब भेस जी।
रोवण लागी राणी पिंगला रे बा तो, खुला भी कर लिया केश जी।
रह घर रहजा राजा भरथरी हो पीव मेरा, जीव नै भी होता कलेश जी।
करोड़ बिधी समझालियो रे बालम, मानो भी हो दुरवेश जी।
के अवगुण त्यागन करी हो बालम, रहती मैं संग हमेश जी।
(संगीत)
राणी पींगला रोवण लागी, नैणा बहती जल की धार।
जिस तिरीया को बालम तज दे, जीना नार का है बेकार।
लेके भीख जब राणी चाली, सुबरण को सजवायो थार।
मणी माणक और हीरा मोती, अणगिणती का पन्ना जुहार।
ले जोगी तनै भीख घालदूं, होय अमर रटो कृष्ण मुरार।
पुत्र भावना समझ के राणी, भीख दई झोली में डार।
राज भोग तज राणी पींगला, जोगी बण्यो लगा के छार।
लेके भीख जब गयो गुरु पै, झूक्यो चरण में बारम्बार।
इस विध जोग भरथरी लीन्यो, अमर भयो रट के ओंकार।
राजा भरथरी अमर जगत में, भजन करे रटता करतार।
पीथाराम जी गुरु हमारा, कविता का बतलाया सार।
अणतुराम प्रेम से गावै, हरि चरणों का ताबैदार।
(उठत)
नित देख करम संयोग नै, प्रेमी से प्रेम सजीला जी।
ले लिया भरथरी जोग ने, दुख सुख भी करम से मिलता जी।