कथानक : डूंगरसिंह (डूंगजी) और जवाहरसिंह (जवाहरजी) शेखावाटी अंचल के जागीरदार थे और रिश्ते में चाचा-भतीजे थे। ऐतिहासिक दृष्टि से इनका समय अट्ठाहरवीं सदी के अवसान और उन्नीसवीं सदी शुरू होने का रहा। उस समय राजस्थान के अधिकांश राजघराने आंग्ल सत्ता के सामने नतमस्तक हो चुके थे पर कुछेक छोटे ठिकानेदार अंग्रेजों की निरंकुशता का लगातार प्रतिरोध कर रहे थे। ऐसे ही प्रतिरोधियों में डूंगजी-जवाहरजी शामिल थे। उन्होंने अंग्रेजी शासन के अधीनस्थ सीकर ठिकाने के राजकोष को लूटने के अलावा अनेक जगह अंग्रेजों को आर्थिक क्षति पहुंचाई। उनकी लूटपाट से तंग आकर तत्कालीन सरकार ने इन दोनों को बंदी बनाने का निश्चय किया और डूंगरसिंह (डूंगजी) को धोखे से कैद करके आगरा के किले में भिजवा दिया। इसके बाद कुछ समय बीतने पर उनके भतीजे जवाहरसिंह (जवाहरजी) ने आगरा के किले में चतुराई से सेंध लगाकर चाचा डूंगजी और दूसरे सेनानियों को मुक्त करवा लिया। इस साहसिक कार्य में जवाहरजी का खास सहयोग लोटिया जाट और करणा मीणा (करणिया मीणा) ने किया जिन्हें इस कथा-गीत में प्रमुख पात्रों की भांति स्थान दिया गया है।

डूंगजी-जवारजी लोक हितों के कामों के चलते बड़े लोकप्रिय थे और दानी स्वभाव के कारण जनता के बीच इनकी छवि 'रॉबिन हुड' जैसी थी। इनकी बहादुरी से भरे कारनामें और दानशीलता के किस्से लोक में गीतों की भांति गाए जाने लगे। इन दोनों ऐतिहासिक चरित्रों की जीवन को केन्द्र में रखते हुए लोकगाथा जैसे कई कथा-गीत रचे गए हैं। इन्हीं में से एक 'डूंगजी-जवारजी री छावळी' बेहद लोकप्रिय है। इस गीति-काव्य में उक्त दोनों पात्रों का जीवन-वृतांत लोकगाथा की भांति आज भी गाया जाता है।

'डूंगजी-जवारजी री छावळी' राजस्थानी की सबसे नवीन लोकगाथा अथवा 'कथा-काव्य' कहा जा सकता है। यह काव्य सरस शैली में रचा गया है और गेयता के गुण से भरपूर है। यहां इस कथा-काव्य का राजस्थानी पाठ निम्नानुसार है

डूंगजी-जवाहरजी री छावळी

सिंवरू देवी सारदासने तनैरै जोगणी ध्यावां जी।

यां मरदां री जुड़ी छावळी भली भांत सूं गावां जी॥

सीकर नगरी घराणो बठोठ घर को गांव जी।

गढ़ बठोठ में ढळी जाजमां जुड़ बैठा सरदार जी॥

बैठा मद पीवै बै गहरी उड़ै मतवाळ जी।

कुंण तो अपणो खेत खड़ैला कुंण भरैलो डांण जी।

कोठी लूटां अंगरेज री करां वो मुलक में नांव जी॥

अेक बिरामण असो बोलियो भरी सभा रै मांय जी।

बोलै बिरामण कह्या सुणा छत्री मेरी बात जी।

मोटी मोटी रैयत लूटीयां नहीं रंघड़ को नांव जी।

बांमण बाणियां घणा लूटीया ना छत्री को नांव जी।

क्या बिरामणा का लूटणास बै तागा-बरणी जातजी।

क्या बणिया का लूटणा बो लूण बेच कर खाय जी।

जाट गूजर का क्या लूटणा खड़ै नैं खेती खाय जी।

दो दो राखै डांगरास बो रखै राम की आस जी।

कोठी लूटा अंगरेज री जद बंकोई सिरदार जी॥

माता बरजै मेड़तियाणी मती छावणी जाय जी।

थांनै जरणी बरजै रंगमहल में कंवर कचेड़ी मांय जी।

छावणियां में तपै फिरंगी धरै कैद कै मांय जी।

पकड़ धरैला कैद में थांनै काळै पाणी लेजाय जी।

काळै पाणी लेजाय सेर रो माथो लेसी काट जी।

फेरूं तो नहीं देखो घर को बैसणों जी।

रंघड़ बोल्या डूंगसींघजी सुण म्हारी जरणी बात जी।

काची काया रो बण्यो मांनखो पेट दूख मर जाय जी।

जैसी चूड़ी काच की वा जैसी नर री देह जी।

जतन किया तो जावसी पछै हर भज लावौ लेस जी।

जीबा से मरबो भलो फिर रहै छत्री को नांव जी।

मरियां पाछै हुवै देवळी भाटे को सैनाण जी।

अेक बार मैं लुटूं छांवणी करूं रै मुलक में नांव जी।

छत्री बोल्या डूंगसिंहजी सुंणो जंवारसींघ बात जी।

देखो रांघड़ बोलै दौड़ो डूंगसींघ सुंणो भतीजा बात जी।

हींमत व्है घोड़ै पर चढ़ ज्या नींतर ढाबो खेत जी।

कै खड़ खाज्यो जंवारसींघ पड़्या भर पेट जी।

बड़कै बोल्यो जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी॥

जोर जरब रो कांम नहीं उठै है अंगरेजी राज जी।

अमल गाळवां गाळलोस अब रती राखो खोट जी।

साधू भाई बण नीसरां ऊजड़ करां बठोठ जी।

तासूं जावां किले आगरै नहीं जीबा की आस जी॥

घोड़ां नांखों घासिया ऊंटां पर करौ पिलांणजी।

अगड़ बंब क्या घुर्‌या नगारां पड़ी नौवतां ठोर जी।

घोड़ा नै दपटाय धाड़वी ग्या झड़वासै गांव जी।

घाटै ढळता दुड़ै धाड़वी मूंगां भरी कतार जी।

सीकर लूट फतैपुर लूटी मारी रामगढ़ फेट जी।

घाटै ढळतां लूट धाड़वी मूंगा भरी कतार जी।

घाल कतारां नीसरेस बो गयो मंडावै सहर जी।

मंडावै में मूंगां करिया अेक'र सेर दोपहर जी।

मंडावै सूं कूच बोलिया किया डेरा छांवणी मांय जी।

छांवणी रै हवाबाग में दिया पागड़ा छांट जी।

खड़ खड़ रोपै खूंटियास तंबुवां कै लागै डोर जी।

सूरा पूरा बैठ गया रंघड़ जाजम ढाळ जी।

मोर झड़ी को दारू मंगावै असल फूल की जात जी।

मदवा बैठा मद पीवै वा गहरी उडै मतवाळ जी।

भरी सभा में बोलै धाड़वी सुणै लोटिया जाट जी।

कुंण जावै जी किले आगरै कुंण हेरैला माल जी।

आगरै रा नांव लेवतां घणां नैं चढ़ियो ताव जी।

घणां री छूटी नौकरी वै भागा घरां नैं जाय जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

मैं जाऊंला किले आगरै मैं हेरूंला माल जी।

लोट्यो जाट सांवतो मीणो अकल वडो उस्ताद जी।

लांबा लांबा लिया बांसड़ा करै नटां रा भेस जी।

ओछी ओछी पै'र धोतड़ी किया नटां रा भेस जी।

डावी बगल में झेल ढोलकी माल हेरवाई जाय जी।

आडो आडो फिरै मेणाको सिरै बजारां जाट जी।

हाटां बैठा दीठा बांणियां वे जळ भरती पणिहार जी।

साहिब रै बंगलै कै आगै बांस दिया रोपाय जी।

नवलख झीझां बाज रया खूब मांडियो ख्याल जी।

साहिब नै तो राजी करनै बड़िया बंगला मांय जी।

देखै पूरबिया बंगला के मांहिलो माल जी।

माल दरब तो खूब देखियो अंगरेज रै पास जी।

सोनै री पूतळियां देखी हीरां तणो वौपार जी।

चवदै तो चपरासी देख्या पंदरा चौकीदार जी।

नंगी तलवार्‌या पौहरा लागै हवाबाग रै पास जी।

सांझ पड़ै दिन आथमेस लोट्यो डेरा के मांय जी।

बड़कै बोलै डूंगसींघजी कहवो चौधरी बात जी।

तम तो ग्या था किले आगरे कहवो माल री बात जी।

क्या कहूं मेरे रावजी सन कह्यौ म्हांसूं जाय जी।

माल द्रब तो खूब देखियो अंगरेज रै पास जी।

सोने री पुतळियां देखी हीरां तणो बोपार जी।

चवदै तो चपरासी देख्या पंदरा चौकीदार जी।

भागै है तो भाग डूंगजी बड़ अजमेरा मांय जी।

दोय पगां नै ठोड़ नहीं फिरंगी चढ़सी लार जी।

घणै कोड सूं आया लोटिया पाछा चढ़िया जाय जी।

घणै कोड सूं आया छावणी पाछा चढ़िया जाय जी।

आधी रैण पौ'र के तड़कै दियौ पागड़ै पांवजी।

पोळ भांग दरवाजा भांग्या, भांग्या लाल किवाड़ जी।

चौवदा तो चपरासी काट्या पंद्रह चौकीदार जी।

राठा रीठौ असौ मांडियौ सेर छांवणी मांय जी।

मानवीयां की मूंडी टूटी बहै रगतां रा खाळ जी।

धरती माता असी बणी जांणै खंडी गुलाल जी।

बडी छांवणी लूट लई आधी ने दीवी जळाय जी।

नव गोरां का नाक काटिया बंगला दीन्हा बाळ जी।

साठ ऊंट माया सूं भरिया कपड़ां भरी कतार जी।

घाल कतारां नीसरास वे पोखरजी न्हाबा जाय जी।

रात दिन रा कर्‌या मामला ग्या पोखरजी घाट जी।

पोखरजी रे गऊघाट पर गहरा किया सिनांन जी।

पोखरजी री लाल पेड़ियां बैठा जाजम ढाळ जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

म्हां तो वासी मारवाड़ रा नीं माया सूं काम जी।

म्हां तो वासी मारवाड़ रा खायो मुलक रो माल जी।

धन रा व्हेला कोयला माया व्हैला धूड़ जी।

आ'ज माया छत्री डूंगजी दो परजा नै बांट जी।

गरीब तो गुरब नै चौधरी हेलो जल्दी पाड़ जी।

नौ नौ रुपिया गरीबां मोहरां चारण भाट जी।

साधां नै चादर कपड़ा भाटां नै सिरपाव जी।

गळी गळी में मोहरां करदी धाड़ै डूंग सरदार जी।

गरीबां रा घर किया लांठा नै दिया रुळाय जी।

सोळै पूतळी दी सोने री अमर जुड़ायो नांव जी।

साठ ऊंट रो माल धाड़वी पोखर दियो खिंडाय जी।

पोखर जी सूं कूच बोलियो डेरा भरतपुर सहर जी।

भरतपुर सूं कूच बोलियो ढळ झड़वासै गांव जी।

झड़वासै का भैरसींघजी आडा फिरिया आण जी।

झड़वासै का गौड़ भैरजी आडा फिरिया आण जी।

म्हैं तो थांरे सग्गा साळा गोठ जीम घर जाण जी।

मांनी थांरी गोठ गूघरी सिर पर ये मनवार जी।

अम तो ग्याछा किले आगरै घणौ कमायो कांम जी।

कोठी लूटी अंगरेज री हींमत व्हैं तो ढाब जी।

भल कर धाया डूंगसींघजी थे भलो कमायो कांम जी।

राम धरम ने पीठ दिया नै बीच कनैयालाल जी।

स्री जमना गंगा सांमळ खाधा रीझ गया सिरदार जी।

झड़वासै के भेरूसींघजी दगो धर्‌यौ मन मांय जी।

पकड़ाऊंला डूंगसींघ नै गांव मिळै दो च्यार जी।

छांनै कागद मोकळेस वै अंगरेज रै पास जी।

अंगरेज परवाणां भेजीया बड़ै साहब रै पास जी।

बडा सा'ब थे पल में आइज्यो डूंग देवां पकड़ाय जी।

बड़ै साब तो हांची मांनी पलटण चढ़गी च्यार जी।

घोड़ां नै रपटाय फिरंगी ग्या झड़वासै सहर जी।

झड़वासै रै औळी-दौळी घेरो दीन्हों घाल जी।

पै'ली लूटां किला कोट थारा जपती कर द्यूं गांव जी।

कयां लूटै म्हांरै किला कोट नै क्यूं झड़वासो सहर जी।

रांघड़ बैठो डोडियांस बो माल परायो खाय जी।

पकड़ायो जावै डूंगजी कांकड़ वाळो सेर जी।

पकड़ाणां रौ तो नांव लेवतां माथा लेसी काट जी।

पकड़ायौ नहीं जावै सेर ने निजरां देऊं बताय जी।

झड़वासै कै भैरूसींघजी गया डूंगजी पास जी।

गोडै सूं तो गोडो जोड़ नै की तन री बात जी।

बड़ा सा'ब तो चढ़नै आया लाया छै सिरपाव जी।

कड़ा किलंगी हसती-मोती पांचों ही सिरपाव जी।

बाय'र चालो छत्री डूंग थे धरम भाई होय जाय जी।

भूल्या भरोसै रामरेस रै बै झट अंगरेजां पास जी।

राम धरम नै बीच दियां नै बीच में ली तलवार जी।

दो पड़दा री सीसी मंगावै जिण में घाल्यो जे'र जी।

औरां नै तो मद रा प्याला सेखावत ने जै'र जी।

तीन पियाला भर्‌या जै'र का पड़्या जाजमा बीच जी।

हाथ में हथकड़ी राळ दी पांवन में पग-बेड़ी जी।

तोख जंजीरां जड़्या कमर में गळै पड़ी सुरनाय जी।

बा'रै मण री सांकळ गै'री डावै पांव रै मांय जी।

नव जागां सूं बांध्या सेर नै धर्‌यो पींजरै मांय जी।

झटका लागा सांकळां रा नै भड़कै उडगी नींद जी।

रांड्या ठाकर भैरूं सींघ थे करी दगै री बात जी।

धरम डूबगो हिंदू लोग रो करी दगै री बात जी।

कांकड़ वाळो सेर हतो थे दगै दियौ पकड़ाय जी।

बंधा मरावो बाकरा बै छूटा लड़ै सिरदार जी।

हाथन की हथकड़ी झाड़ म्हांरी पांवन की पगबेड़ी जी।

हेक घड़ी री छूटी दे तूं देख सेर का हाथ जी।

लोट्या जाट सांवतिया मीणां घरे जावौ सिधाय जी।

कंवरां माथै हाथ फैर म्हांरी माता दे सीलाम जी।

कंवरां रा तो नांव लेवतां नैणां ढळकियौ नीर जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

कायर दौड़ा डूंगसींघ जी थे मती कायरी आण जी।

किवतो थांरी बेड़ी काट द्यूं क्यूं रहजाऊं थांरै साथ जी।

ईगनबोट में बैठो धाड़वी चल्यौ आगरे जाय जी।

रात दिन रा किया मामला गया आगरे सहर जी।

आगरै रै जेलखांने में न्हार लियौ बैठांण जी।

नागपुर रौ नागो सांमी अकलाणै को सेठ जी।

सुरत बंबइया कंवर पड़िया पग सोने री मेख जी।

बड़ा बड़ा तो सेठ पकड़्या नै बडा बडा अमराव जी।

बावन बंधवा पड़्यौ कैद में सेर पींजरे मांय जी।

पड़ती गुड़ती बातां गई वो राणीवास रै पास जी।

पड़ती गुड़ती बात गई अै गी महलां रै मांय जी।

राणी बोले डूंगसी री सुणो जेठूता बात जी।

काकोजी तो पड़्या कैद में दारू नै धुरकार जी।

काकोजी तो पड़्या कैद में क्यूं बाजो रजपूत जी।

न्हार मुखा थें कड़ा न्हांख दो हाथां चूड़ी पै'र जी।

धोळी धोती दूर राळ दै, नील घाघरो पे'र जी।

नैणां सुरमों सार रांडिया ओढ़ो दिखणीचीर जी।

कड़ियां चाटू बांध रांडिया मन्नै सूंप तरवार जी।

आगरे में आग लगाद्यूं तो तिरिया री जात जी।

म्हारै खांवंद री बेड़ी काट मैं साबत ल्यासूं काढ जी।

काकी मौसी बोलियो वा ऊठी तन में झाळ जी।

अेडी की झळ ऊपड़ लग चोटी ने जाय जी।

पाघ दुसाला मेलियास अंगोछा लीन्हा बांध जी।

काकोजी री बेड़ी काट नै जद बांधू सिर पाघ जी।

गांव-गांव परवाणां भेजिया भाई बंध लिया बुलाय जी।

पांच पान रो बिड़ो बणायौ मेले सोवणै थाळ जी।

भरी सभा में बिड़ो फेरियो किंणी घाल्यो हाथ जी।

आगरे रा नांव लेवता घणां नै चढ़ियो ताव जी।

घणां री छूटी नौकरी वै भागा घरां नै जाय जी।

फिरतै तो बीड़ै नै ठाकरां लेवै लोटियो जाट जी।

बीड़ो ले गोडा पर धरियो फेर मूंछ पर हाथ जी।

नहीं चाइअै म्हारै अमर पटौ नहीं चाइअै मेरे गांव जी।

पाघ बंधा दो थारै हाथ री खबरां ल्यासूं जाय जी।

लोट्यो जाट सांवतो मीणो अकल बड़ा उस्ताद जी।

गरूं गाळै गाळवां पीतांबर किया रुमाल जी।

झोळी पकड़ तूंबड़ी पकड़ी कर खाकी रा भेख जी।

कर खाकी रा भेख लोटियो चलै आगरे जाय जी।

अस्सी कोस का गैला करगो सवा पौ'र के मांय जी।

आगरै रै माणक चौवटे बैठा धूंणां धूकाय जी।

आगरो तो भुखो धापियो किंणी बूझी सार जी।

पड़ती-गुड़ती बात गई है अंगरेज रै पास जी।

कूंण देस सूं आया सांमी कूंण देस नै जाय जी।

आबूराज से आया सांमी गंगा नहावण जाय जी।

पांच पचीसों लेवों भेट रा चादर कपड़ा त्यार जी।

बड़े साब रो हुकम नांही थे कूच करो परभात जी।

क्या किया करूं थांरै रूपियां नै म्हारै कियांन घर नै बार जी।

साधू भूखा भजन भाव रा नीं माया सूं काम जी।

डूंगरसींघ कंठी को चेलो जिसका दरसण पावां जी।

खाई खाई री बोल्यो फिरंगी नहीं साम्यां सूं जोर जी।

सांमी रै नहीं छूरी कटारी नहीं बरछी तरवार जी।

दरवाजा तो मंगळ कराद्यो खिड़की दे दौ खोल जी।

खिड़की दे दो खोल डूंग नै निजरां दौ बताय जी।

सुरत पिछाणी जाट री सनै धिनै लोटियो जाट जी।

धन रे तेरी मात पिता नै भलो जाटणी जायो जी।

मरबा री तो बखत बाजगी मेळो भलो दिरायौ जी।

छै महनां री बोली बोली दिन रहग्या छह सात जी।

दिन सात में डूंगरेस नै काळै पाणी ले जाय जी।

काळे-पाणी ले जाय सेर रो माथो लेसी बाढ़ जी।

फेरूं तो मिलांला दरगा रांम री मांय जी।

भाई बंध नै मुजरो कहजै मुजरो सगळै साथ जी।

कंवरां माथै हाथ फैर म्हांरी माता नै सिल्लाम जी।

जंवारसींघ नै ईयां कैवणी जै'र खाय मर जाय जी।

छै महनां री बोली बोली दिन रहग्या छै सात जी।

करणी व्है जो करो लोटिया सात रोज केइ मांय जी।

आगरे रै गौरवेस बढ़ बहै जमनां री तीर जी।

भगवां कपड़ा जमनां राळयां तूंबा दिया तिराय जी।

कर जाट रा भेख लोटियां चल्यो बठोठ जाय जी।

अस्सी कोस का गैला करगो, सवा पौर के मांय जी।

आमां-सांमां फिरै जुवारसी मुजरो करियो जाय जी।

धन रै तेरी माता-पिता नै भलो जाटणी जायो जी।

तम तो ग्या था किले आगरे कौ काकैजी बात जी।

क्या कहऊं मेरै रावजी मो सूं कह्यौ जाय जी।

आमां-सांमा खीला ठोकीया दौरौ कैद रो काम जी।

पाव चीणां मिळ जाय सेर नै आठ पौ'र कै मांय जी।

छै महीनां री बोली बोली दिन रहग्या छै सात जी।

दिन सातवैं ऊगतेस में वांनै काळै पाणी ले जाय जी।

करणी व्है जो करो जंवारसींघ सात रोज रैइ मांय जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

जोर जबर रौ काम नहीं उठै है अंगरेजी राज जी।

झूठा बांधौं कांकड़ डोरड़ा सिर सोनै रो मौड़ जी।

दूजा तो जानी बणज्यो बींद बणौ भोपाळ जी।

जोधपुर री जान बिणायौ रूवां परणीजण जाय जी।

रात दिन रा किया मामला गया आगरे सहर जी।

आगरे रै तीस कोस पर अेवड़ चरतौ जाय जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

जोर जरब रो काम नहीं अठै है अंगरेजी राज जी।

गूजर नै तो राजी करनै मींढ़ौ ल्यावौ मोल जी।

गूजरां रा तूं डावड़ा तूं कह मींढै रौ मोल जी।

क्या मींढै रा माजनास बो खड़ दोखै मरजाय जी।

थे परदेसी आदमी थे मुलागात ले जाय जी।

गूजर नै तो राजी करने मींढौं ल्याया मोल जी।

झूरै बटका किया मींढै नै दीन्हौ मार जी।

खाल बाळ तो बार उडादी मुड़दा लिया बणाय जी।

आडी टेढ़ी लकड़ी धर नै दीवी समेती जोड़ जी।

आबर बाबर भदर कराया लिया सोग रा नांव जी।

च्यार जणां रै कांधे धरिया संख बोलता जाय जी।

अंगरेज रै निजर बाग रो चन्नण दियौ कटाय जी।

पीरां वाळी कबरां में मींढा नै दियौ दाग जी।

सवा मण रो घीरत होमियौ नारैळां रो दाग जी।

गंगाराम पूरबीयो आयौ जानियां कै पास जी।

कूंण देस री जान कहीजै कूंण देस नै जाय जी।

जोधपुर रा भाई नै बेटा रूवां परणीजण जाय जी।

पीरां वाळी कबरां में हींदू नै दीन्हौ दाग जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुणै तुरकड़ा बात जी।

मुड़दो मुड़दो मती करी म्हांरै सगळां रो सिरदार जी।

मुड़दा मुड़दा कहवतां मूंढां पर पड़सी हाथ जी।

मुड़दा मुड़दा कहवतां कोई रंघड़ मरै दो च्यार जी।

सागै बींद रा मामा मरग्या मींढसींघ सिरदार जी।

तीन दिन्न रा करां तीसरा दिन बाहरै री बाटी जी।

दिन्न तेरहवैं सूरज पूज घोड़ां पर करल्यो काठी जी।

चौवदै दिन री छूटी लीन्ही भली करै भगवान जी।

हींदू धोकै होळी दीवाळी मुसळमान कै ईद जी।

हींदू कै आखातीज नै मुसळमान बकरीद जी।

दिन तो तीजै ऊगतै नै दिन ताबूतां बा'र जी।

तुरक तुरक सिधायो ताजियां सोही देखबा दाय जी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

मिलणो व्है तो चढ़ो धाड़वी अब चढ़वा रो डाव जी।

चढ़णौ व्है तो चढ़ो धाड़वी अब चढ़वा रो डाव जी।

नीसरणी लगाय लोटियो कूद पड़ै गढ़ मांय जी।

कहवै तो बोलौ डूंग थारै हाजर ऊभो जाट जी।

डूंगसींघजी बोलै आकरौ जांणै हाकरै न्हार जी।

डूंगसींघ बोलै पींजरै घणै होकर सेर जी।

बड़कै बोलै डूंगसींघ जी सुणो भतीजा बात जी।

म्हांरी बेड़ी कांई काटणी देवै लुगाई काट जी।

म्हांरी बेड़ी नहीं काटियां नीं निकळैगा नांव जी।

बावन बंधवा पड़्या कैद में यांरौ कांई हवाल जी।

बावन बंधवा पड़्या कैद में यांरी बेड़ी काट जी।

किण री कळपै भैण भाणजी किणरी तिरिया नार जी।

काग उडावै कामणी सबै बौ'रा जोवै बाट जी।

बां बंधवां री बेड़ी काट थांरी भली करै भगवान जी।

जवारसींघ जी बोलै आकरा सुण काकाजी बात जी।

जोर जरब रो काम नहीं अठै है अंगरेजी राज जी।

पौराई अघ भौम कहीजै लोहार कठांती लाऊंजी।

बड़कै बोलै जाट लोटियो सुण सेखावत बात जी।

कुहाड़ी सूंपो मेरे हाथ में देखो जाट रा हाथ जी।

कुहाड़ी चालै जोधपुर री बेंरी सांकळ रा बरणांट जी।

बावन बंधवा री बेड़ी काट दी सवा पौ'र रै मांय जी।

बावन बंधवा री बेड़ी काट दी किया सभा के मांय जी।

कै तो पड़्या कैद में ज्यांरा सूजगा पांव जी।

जूनी पाळ रा घोड़ा डकाया दौ बंधवां नै चाढ जी।

तम तमारै घरै सिधावौ म्हांरो है भगवान जी।

बावन बंधवां री बेड़ी काट नै गया पींजरे पास जी।

डूंगसींघ री बेड़ी काट नै किया घोड़ै असवार जी।

डूंगसींघ लीली चढ़िया कांधै धर ली बरछी जी।

लागरया छत्री का टल्ला धूजण लागी धरती जी।

सवा पौ'र तो सूरज कंपीयो थरहर धूजी धरती जी।

काकै भतीज री जोड़ी तुलगी भली करै भगवान जी॥

कै झड़वासा का भैरूसींघजी जीवो कतरी रात जी।

पकड़ायौ थे डूंगसींघ नै जीवो कतरी रात जी।

घोड़ां नै दबटाय धाड़वी ग्या झड़वासै सहर जी।

झड़वासै कै ओळी दौळी घेरो दीन्हों घाल जी।

भरी सभा में भैरूसींघ रो माथो लीन्हों बाढ़ जी।

भरी सभा में भैरूसींघ रो माथो लीन्हों बाढ़ जी।

घोड़े रै तो हाने धरिया गांव बठोठ जाय जी।

अस्सी कोस का गैला करग्या सवा पौ'र कै मांय जी।

जवार सींघ जी बोलै आकरौ सुण काकी जी बात जी।

मोतीड़ां सूं थाळ भरौ थांरौ खांवद ल्यौ बधाय जी।

पहलां बधावौ लोट्या जाट ने पछै घर रौ सांम जी।

पहलां बधावौ लोट्या जाट नै पछै घर रौ सांम जी।

ठाकुर तन्नै बेटो देज्यो रहज्यौ अमर नांव जी।

खारै वाळी मेड़तयाणी भलो डूंग नर जायो जी।

आगरै रौ किलो तोड़नै नीकळ साबत आयो।

डूंगसींघ नै लेगा जोधपुर जवार बीकानेर जी।

काकै भतीजै रै मन में रहगी लूटण री अजमेर जी।

झड़गा तो फूलड़ला अमर बां री बासना जी।

स्रोत
  • पोथी : डूंगजी-जवाहरजी री छावली ,
  • संपादक : डॉ. किरण नाहटा, डॉ. गजादान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास, बीकनेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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