छाती फाटै जैडी चीख कानां मां पड़ी तो म्हांरी आंख चडाक करती खुलगी!

आधी रात रो समो। जाड़ा रा दिन। पोवरा मावटा है बदळां सूं भरियोड़ो आभो। पाळो पडै तो बैथाक। कोई पार नई। ऊंडां गूदड़ा मां घुसियां, आडा बन्द कियां ‘ई हाडका मां सर्द जमै।

म्हूं उठियो। चीख कांनां मां पड़ी काळजो हाल गयो। विचारीयो चीख कठा सूं? फैर बारी खोल’र हेलो मारियो-काकोसा काकोसा! कोई बोलियो नीं जदै दूजो नाम ले’र फेर हेलो मारियो ‘गणपत गणपत !’ कोई नीं बोलियो जदै धम-धम करतो नीचे उतरियो। कनै री गळी मां घुस’र दरवाजो खटखटायो। फैर आड़ा भचीड़िया। ‘सन्नौ भौजी.. सन्नौ भौजी, मुरली, मुरली।’

म्हारौ बदन थर-थर कांपै। दांत बाजै। घबराट सूं पसीनौ न्यारौ आग्यौ। खूब आड़ा भचीड़िया। गळो फाड़-फाड़ आवाज दी। कुण बोले, मोहला मां तो सापो पड़ियो।

म्हूं भागो-भागो पाछो घरां आयो।

इणं मोहला मां घणां सा घर एक दूजा सूं चिपता है। ऊपरवाडा सूं आवणो-जावणो होय सकै। धम-धम करतो म्हूं नाळ चढ’र ऊपर गयो। ऊपर खैं खैं डाफर बाजै। बादळांई आज बैर साजियो। अंधारो गुप्प। आंख आगली चीज कोयनी सूझै। फैर बायरा रा झपाटा—सण—सण-उडियो उडियो जाऊं। घणो दोरो म्हूं खुद ने संभाळ ठोकरां खावतो एक डागळो डाकियो, दूजो डागळो डाकियो अर तीजै डागळा री छोटी-सी बिरंडी कूद’र लारलै मकान री छत माथै आयो।

‘मुरली मुरली’ हेलो मारतो म्हूं उणं घर री नाळ उतरी। ‘सन्नौ भौजी सन्नौ भौजी अरे कोई बोलो तो सही! कठीनी हो? कांई हुयो? चीख कठा सूं आई?’ हाका करतो अंधारा मां पड़तो-गुड़तो म्हूं मुरली रै कमरा कानी गयो।

कमरा रो आडो सपाटियोडो हो। मांयने बत्ती रो चांदणो दीखतो हो। म्हूं धक्को दे’र आडो खोलियौ अर झट करतो मांय घुसियो।

कांई देखूं—मुरली उगाडे बदन पड़ियो है। उणं री आँखियां खुली हैं। पुतलियां जमगी है। अर उंण री छाती माथै पछाड़ खा’र सन्नौ भौजी गुमसुम पड़ी है।

देखियो तो आँखियां फाटी रै गई। पळका पाछी झपी ‘ई नीं। आँखियां आगै ईधांरी गई। पग चिपग्या। सांस बारै हो जिको बारे’र मांय हो जिको मांय रै गयो।

कितरी ताल म्हूं चित्राम बणियोडौ उठै ऊभो रयो। म्हनै ठा कोयनी। चेतो जदै ईज हुवो जद सन्नौ भौजी एक’र फेर चीख पाड़’र कूंकण लागी,’ हाय म्हूं लुट गई हाय म्हूं मर गई हा’र। सन्नौ भौजी फेर गुमसुम हो’र मुरली री छाती माथै पड़ गई।

म्हूं हिम्मत कर आगे बढ़ियो। झंझेड़’र सन्नौ भौजी ने चेतो करायो। म्हनै देखियो तो भौजी फाटंण नै लागी काकड़ी फाटै ज्यूं। बाथां मां भर’र मुरली सूं भौजी ने अळगो कियो।

मुरली म्हारो भायलो है। बाळ-गोठियो है। है पड़ौसी पण घरा सूं बत्तो। लायक एड़ो कै आंख मां घालियोई को खटकेनीं। कदैई बासीयो कोनी! उंण री तारीफ करता सांसां सूखै।

लारे एड़ी उण री बऊ—सन्नौ। सरावतां जीभ थाकै। कालरी छोरी पण लायकी देखौ तो बस सगळां नै लारे राखै। कदेई छिछोरी करता देखी नई, सुणी नई। भर्‌यौ घर पण मजाल है कदैई उण नै कोई ऊँचो बोलता सुणियो होवै। हाथां री चार चूड़ियां भलै’ई खटक जावै, सन्नौ भौजी री आवाज कदेई एक कान सूं दूजा कान कोनी सुणीजी। हर बगत पैरी-ओढी, ढकी-ढूमी रैवती। नख देखणं रो’ई काम नई। गज भर रो घूंघटों काढ़’र नीची नाड़ घाल्यां झमझम करती चालती जदै लोगां रै मूंढा सूं निकळ तो ‘बऊ कांई है साक्षात लिछमी है।’

फेरा खा’र सन्नौ भौजी आई ही जदै नुगता कराया पाछै सगळा जिद्द झाल ली कै बिनणी री चतुराई देखण वास्तै पापड़ सिकावो। अंगेठी लावतां छोरा चाल करग्या। बुझीयोड़ी अंगेठी ले आया। पण चतुराई आपरी कै बापरी। सन्नौ भौजी ऐड़ी चतुराई सूं पापड़ सेकीयो कै राख रो दागो नीं लागण दियो। सौ मिनखां री रसोई कर लो। पळोतण रो खैरो बिखेरण रो काम नई।

सासरा मां कदैई सन्नौ भौजी लाड़-कोड़ कराया कोनी। आवंण-जावंण रा कदैई सांग किया कोनी। केवता जावो, तो जाती परी; केवता जा’र पाछा आजाईजो तो ऊभै पगां पाछी आजावती। होठ रै फटकारै आड़ी पड़’र काम करती।

घर रो काम करैं जिंणरी कांई बडाई? सन्नौ भौजी दूजां रै वास्तै’ई आधी रात रा त्यार रैवती। मांदगी-साजगी, जापा-धापा, अड़ी-बड़ी, ब्याव-सावा, कीं हो, जठै देखो सन्नौ भौजी त्यार। बस बुलावो चाईजतौ। बिनां बुलायां तो पीयर कोनी जावती।

बिना काम कदैई घर सूं निकळती नई। खाली वगत कीं’र कीं करती रैवती। नई होवतो तो गीता-रामायण बांचवा बैठ जावती। धीमां-धीमां कंठां सूं जद वा रामायण री चौपाई गावती उण बेळा सरसुती सन्नौ भौजी रै कंठा मां बिराजती।

खांवण-पीवंण’र पेरंण-ओढंण—कीनौई रोज कोनी सन्नौ भौजी ने। सूखी-पाकी जिसी’ई घालो सरा’र खावती। कदैई नाक मां सळ घालणै रो वास्तो नई। जिसो पैरे औढै—फबै मूंडो भूंडो सूं भूंडो’र चोखे सूं चोखो पैराय दो—

ऐड़ो फबै कै देखण वाळो चितबगनो होय जावै।

सन्नौ भौजी री म्हूं कांई बढाई करूं? मौहला रा सगळा लोग तारीफ करै। अछन अछन करै। किसोई काम होवै सासू-सुसरा सन्नौ भौजी ने पूछै—‘अरे बीनणी कठै? पूछ तो—फलाणो काम करणौ है? कांई यूं ठीक रैसी?

सन्नौ भौजी काम करती होवती तो हाथ रो काम छोड़’र औसारा मां आवती। ओटमां खड़ी हो’र छोटा टाबर ने कनै बुला’र कान मां बोलती—’कौ तो आपसा नै—कै म्हूं कांई राय दूं आपनै? काम यूं नई कर’र यूं करावो तो किंकर? ठीक नई रैसी।

हरख सूं सासू-सुसरा कैवता—देखी— ‘अकल कोठां सूं ऊपजै। दीयोड़ी थोड़ी आवै। कैड़ी राय दीनी है।’

सगळा भायला मुरली सूं ईसको करता। भायला सांची बता थूं आगला पोर मां किसो पुन्न कियो; थनै एड़ी इकीस लखणां वाळी बऊ मिळी।

जबाब मां मुरली हंस देवतो। उण हंसी मां एक तृप्ति ही। सात सुखां रो मिलियोडो एक एड़ो सुख हो जिको भागियां नै नसीब नई होवतो।

पण होनहार नै निमस्कार है। उघाड़’र कुंण देखिया।

जिण दिन जोग सजियो सन्नौ भौजी अेकली ही। उणरा सासू-सुसरा छोरियां रै सगपण वास्तै बारै गया हा। ऐड़ी बगत अेकली लुगाई कांई करै? पण धन छाती सन्नौ भौजी री। जितरै सासू-सुसरा नई आया घणी करड़ी छाती राखी। आंख मां आंसू कोनी फरकण दियो। जिण दिन सासू-सुसरा आया, सन्नौ भौजी माचो पकड़ लियो। फैर नई उठी। गुमसुम पड़ी रैवती।

दसमें दिन चेतो करायो तो बस सन्नी भौजी री आखियां मां आसुआं री झड़ी लागगी। टळ्-टळ् आंसू पड़ता रैवता। किण सूंई बोलती नई चालती नई। बस खूणो पकड़ियां बैठी रैवती।

बारवैं दिन सुवागपणो उतार’र सन्नौ भौजी न्हावां बैठी तो ऐड़ी अमूजणी आई कै दो तीन घंटा खुलण रो नाम नई। फैर काळा कपड़ा ओढियां न्हांवण घर सूं बारै आई तो धाड़ फाड़’र ऐड़ी कूकी ऐड़ी कूकी कै घर री दिवारां हालगी। पाथर पिघल गया।

थोड़ा दिनां पछै म्हूं सुणी—सन्नौ भौजी चितवगनी हो गई। आपरी सुधबुध बिसर गई। बैठी रै तो दिन भर बैठी रै। ऊभी रै तो दिन भर ऊभी रै। कदैई हंसण लाग जावै तो हंसती रै—रोवण ने लाग जावै तो रोवतीज रै।

कैई दिन तांईं सन्नौ भौजी रा एई हाल रैया। पण कैवत है कै मरिया लारै मरीज कोनी। आपो संभाळणो पड़ै। जीवण वास्तै सगळा थोग करणा पड़ै। सेवट सन्नौ भौजी आपो संभाळियो। काम-धंधे ढूकी। आपरो दुख भूलण खातर वा घर रै काम मां आड़ी-टेढी पडवा लागी। पण अबै सन्नौ भौजी रो वो कांण कायदो कोनी रयो। मूंढा मां गास’र माथा मां ठोलो। छोटी-छोटी बात माथै मा’भारत मच जावै। धक्कै लागा सन्नौ भौजी री पत्तर-पूजा होवण लागी। पण सन्नौ भौजी अलफ रो बै नई कैवती। चुपचाप सगळो सै लेती।

पण थोड़ा महिनां पछै सुंणी तो काना माथै बिसवास कोनी हुवो। सन्नौ भौजी बदळगी। लुगाया बातां करै— सन्नौ भौजी बदळगी—तन सूं’र मन सूं। अबै वा सर उठा’र चालै। बळद ज्यूं काम मां आठूं पहर जुती कोनी रैवे। कोई एक केवै तो सन्नौ भौजी दो सुणां दे। आंखियां मां अखियां घाल’र बात करै। उथलो एड़ो देवै के आगला सूं बोल कोनी निकले। हक जता’र खावै हक जता’र पैरै।

लुगांयां बातां करै—अबै वा काळो कोनी ओढै। पक्को रंग कोनी पैरै। चोखा कपड़ा पैरै। माथा माथै सिन्दूर री टीकी दैवै। हाथां मां सोना री चूड़ियां पैरे—

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : जगदीश माथुर ‘कमल’ ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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