“कांई है ओ... बोल तौ, कांई है ओ?” रेखा रौ धणी बैजनाथ अखबार रेखा रै मूंढै आगै पटक्यौ अर रेखा रा केस पकड़'र उणरौ मूंढौ अखबार माथै टिकावण री जोर-अजमाइस करण लागग्यौ। रेखा पीड़ सूं आंख्यां काठी मींचली, पण माजरौ उणरै जाबक समझ में नीं आयौ।

धणी री पकड़ सूं केस छूट्या जद वा अखबार उठाय'र देख्यौ। अखबार मांय उणरौ नाचती थकी रौ घणौ मोवणौ फोटू छप्योड़ौ हौ। साथै खबर ही।

अबै बात उणरी समझ में ढूकी।

“आ तौ म्हारै महकमै मांय काल होयै प्रोग्राम री खबर अर फोटू है!” वा अजेस रीस सूं तण्योड़ै ऊभै आपरै धणी नैं धीजै सूं समझावणी-सी देवती बतायौ।

“तौ मुजरौ करण लागगी थूं महकमै में...?” उणरौ धणी डांम-सो सवाल दाग्यौ।

“मुजरौ?” रेखा चिमक'र बोली, “सावळ देखौ, नाचणवाळी म्हैं अेकली कोनी... प्रसिक्षण मांय आयोड़ी सगळी लुगायां हंसै-बोलै अर नाचै-गावै... तौ प्रसिक्षण री सैली...”

“पण फोटू तौ थनैं इज हीरोइन बतावै।” कैवतौ थकौ रेखा रौ धणी बैजनाथ अखबार अेकर फेरूं हाथ में लेय लियौ, “अै सब करणा जरूरी है तौ छोड दै नौकरी... पूरै घर अर समाज में म्हारी आज कांई हालत होई है, कीं लखाव है थनैं?”

“पण इण में बेजा कांई है?” रेखा पूछ्यौ।”

कै आज थारी फोटू अखबार में छपी है।” बैजनाथ दांत पीस'र बोल्यौ। अबकै रेखा नैं कीं रीस आई, “थे कैवणौ कांई चावौ, साफ-साफ क्यूं नीं कैवौ?”

“वो गलूंडियौ म्हारै घरै नीं आवणौ चाइजै।” बैजनाथ अेक और आडी घालतौ-सो बोल्यौ।

रेखा कीं ताळ चुप रैय'र बोली, “तौ थे आप क्यूं नीं बरज दो गलूंडिया सा'ब नैं... आवै जद तौ बांरा लटापोरिया करौ... मोहल्लै मांय चौड़ा होय'र चालौ कै बडा सा'ब थांसूं मिलण नै आवै...!”

“वो म्हारै सूं नीं, थारै सूं मिलण नै आवै!” बैजनाथ रेखा री बात बिचाळै बोचतौ थकौ फूंफाड़ौ-सो मार्‌‌‌यौ।

“म्हैं कांई नूंतौ देवूं उणनैं?” अबै रेखा मोरचौ पूरौ खोलण मतै दीसै ही।

“थूं नीं, थारौ ओ... थारौ रूप नूंतै वींनैं... नीच कठैई रौ!”

“ओ रूप तौ थांरी प्रोपर्टी है, थे रुखाळौ।” रेखा जांणै डांम चेप्यौ बैजनाथ रै।

“हूं SS...।” बैजनाथ जोर सूं गुर्रायौ अर पग पटक'र कमरै सूं बारै नीसरग्यौ।

सवा दस रै अड़ै-गड़ै होय री ही, रेखा दफ्तर री तैयारी करण लागगी।

रेखा नौकरी करै-महिला विकास महकमै मांय। नौकरी करणौ रेखा रौ चुणाव नीं हौ, उणरै घरवाळै बैजनाथ रौ हौ। उणरी भागदौड़ अर ले-दे सूं रेखा नैं नौकरी मिळी। दोय बरस होयग्या, कोई झंझट नीं हौ नौकरी मांय। झंझट सरू होयौ गलूंडिया सा'ब रै आयां पछै। कलक्टर वांनैं रेखा रै महकमै रौ अतिरिक्त प्रभार देय दीन्यौ। रेखा वांरै सम्पर्क में आई अर वै उणरी प्रतिभा नैं संवारण मांय लागग्या-तन-मन री प्रेरणा सूं।

पण रेखा कांई करै?

साची बात तौ कै वा नौकरी करणौ नीं चांवती। पीरै सूं तौ वा 'लुगाई नैं लुकाई चोखी' रा संस्कार लेय'र आई ही। जियां-तियां बारहवीं पास करी कै उणरौ बैजनाथ साथै ब्याव होयग्यौ। अेक टाबर होयग्यौ। खरचा बध्या, तौ संयुक्त परिवार रै सदस्य, उणरै धणी बैजनाथ, खुद उणनैं नौकरी री प्रेरणा दीवी। वा आधै मन सूं नौकरी पकड़ ली। पण नौकरी उणनैं चोखी लागी। लुगाई जात, खास कर गांव-देहात री लुगाई रै निजू अंधारै सूं जद रेखा दो-च्यार होयी, तौ उणनैं आपरी घिरी-बंधी जिनगांणी सारू अेक पसारै री गुंजायस लाधगी। बेगी वा आपरै महकमै री अेक सांतरी अर ओळख राखण वाळी कार्यकर्ता बणगी... महकमै रै अफसरां री निजरां चढगी। नौकरी रेखा नैं अबै फगत नौकरी नीं, अेक मकसद लागै। पण वा कांई करै? उणनैं आपरै घरवाळै बैजनाथ रौ ब्यौहार कीं समझ नीं आवै... वा उणनैं समझण री खेचळ करै तद वो झुंझला जावै अर झुंझळ में अेक बात कैवै, “चूंची लगा दै इण नौकरी रे!”

आज री घटना तौ इण रौ अेक दीठाव मात्र ही अर रेखा अैड़ै दीठावां रै हेवा होवण लागगी ही।

रेखा दफ्तर पूगगी।

सगळा सूं पैली उण रा भेटा चपरासण गवरा सूं होया। गवरा हंस'र कैयौ, “बधाई हो रेखा बैनजी, अखबार में फोटू सांतरौ छप्यौ है।”

रेखा हंस'र रैयगी, पण बोली कीं नीं। धकै आपरी सीट कांनी बधी, इतरै हरमेस री गळाई तिसळ'र नाक रै आगलै छेड़ै तांई आयोड़ै चसमै रै ऊपरियाकर डोळा काढतौ बडौ बाबू तुरजमल उणनैं बतळाय लीवी, “रेखाजी, आर्डर लेंवता जाया... सा'ब आपरै जैपुर दौरै मांय थांनै साथै ले जावैला भलौ!”

होय सकै, तुरजमल साव सफीट अेक सचूना दीवी होवै, पण रेखा नैं उणरै बोलां मांय ऊंडौ अभिप्राय लियौ थको कोई व्यंग्य मौजूद लखायौ। कोई पैली दफै नीं ही, पण रेखा अजेस गलूंडिया सा'ब रै गलूंडै सूं बचती आई ही। अलबत अेकर-दो बार जीप में वारै सागै अेकली पड़गी तद मारग में थोड़ौ-घणौ मसळा-मोसौ उणनैं झेलणौ पड़ग्यौ... पण वा पूरी ताबै नीं दीवी। पण च्यारूं कांनी विचार'र रेखा आई देख लीवी कै इणनैं इश्यू बणा'र रोळौ मचायां गलूंडिया सा'ब सूं बत्ती काळख तौ उणरै आपरै मूंढै लागणी है। फेर रेखा लोगां रै इण मनोविग्यांन सूं परिचित ही कै नौकरी सारू घर सूं बारै निकळ्योड़ी लुगाई नैं वै किण पूर्वाग्रही नजरियै सूं देखै। साथै वा देखती कै उणरी कार्यकर्ता साथणां रा मन अेक अैड़ी यांत्रिकता रा सिकार होयोड़ा हा कै लुगाई-सरीर सूं जुड़्यै थकै पवित्रता रै मूल्यां सूं वांरौ घणौ तल्लौ-मल्लौ नीं दीसतौ। उलटै, किणी छोटै-सै स्वारथ सारू आपरै सरीर नैं सिक्कै री गळाई बरततां वांनैं कोई घणो अपराधबोध नीं होवतौ। अै सगळा चाळा रेखा आपरी दोय बरसां री नौकरी में देख चुकी ही अर जांण चुकी ही कै आतम-सम्मान रौ अणूतौ झंझट राख'र लुगाई जे नौकरी करणी चावै, तौ कर नीं सकै।

रेखा तुरजमल नैं पडुत्तर दियां बिना आय'र आपरी कुरसी माथै बैठगी। वा सोचण लागगी कै गलूंडिया सा'ब रै इण गलूंडै सूं निकळण रौ अबकी कांई उपाय निकाळूं!”

आर्डर मुताबिक रेखा नैं अदीतवार नैं जैपुर जावणी हौ-रात नै, ताकि सोमवार रै वर्किंग डे नैं वा निदेसालय मांयं हाजिर होय सकै। वा रस्तौ काढ्यौ। जाय'र गलूंडिया सा'ब रै साम्हीं हाजर होयगी, “सर, अदीतवार नै तौ म्हैं नीं चाल सकूं... सोमवार नैं पैली बस सूं चाल'र इग्यारै बजी तांईं...।”

“तुम बैठो, अभी बात करता हूं।” गलूंडिया सां'ब कैय'र वांरै चैंबर में पैली सूं बैठै अेक आदमी सूं मुखातिब होयग्या।

रेखा लारली कुरस्यां मांय सूं अैन छेहड़ै वाळी कुरसी माथै भेळी-भेळी होवती थकी बैठगी।

उण आदमी नैं सलटावण मांय गलूंडिया सा'ब सवा दोय मिनट सूं बत्तौ टैम नीं लगायौ अर रेखा साम्हीं मुळक खिंडावता उणनैं अेन आपरी साम्हली कुरसी माथै आवण रौ इसारौ कर्‌यौ। रेखा उठ'र उण कुरसी माथै आयगी।

“हां, अब बताओ...।” कीं बत्ता मधरा हा गलूंडिया सा'ब रा बोल।

“सर...” रेखा कैवणौ सरू कर्‌यौ।

“डोंट क्रिएट प्राब्लम, रेखा... मैं समझ रहा हूं सब कुछ।” गलूंडिया सा'ब कांई ठा किण बात सारू रेखा नैं धीजौ-सो बंधावतां कैयौ, “मैं तुम्हें सपोर्ट करना चाहता हूं... एंज्वाय योर-सेल्फ... मेरा साथ तुम्हें बुरा नहीं लगेगा, सच कह रहा हूं...।”

“नहीं, सर...।”

“ओ.के...।” गलूंडिया सा'ब हाथ झड़कावता-सा बोल्या, “मुझे फोन कर देना... जो भी फैसला तुम करो...।”

रेखा ऊभी होयगी अर हाथ जोड़'र चैंबर सूं बारै आयगी। निसरती वेळा वा देख्यौ कै गलूंडिया सा'ब रै दफ्तर रौ अेक बाबू उण साम्हीं अेक अचेरी-सी हंसी हंसतौ देखै हौ।

अदीतवार नैं दिनूगै री वेळा।

रेखा बिस्तर मांय सूत्यै बैजनाथ नैं ले जाय'र चाय दीवी। अळसा-मळसा करतै बैजनाथ उठ'र चाय पकड़ी अर रेखा नैं पूछ्यौ, “तौ आज जावणौ है नीं जैपुर थनैं?”

रेखा रा पग जांणै जिण ठौड़ ऊभी ही, बठै चिपग्या-आंनै कीकर ठा पड़ी? म्हैं तौ अजेस किणी आगै बात नीं करी...

“डर मत... देख, आज म्हैं रीस में नीं हूं...।” बैजनाथ चाय री गिलास डावै हाथ में लीवी अर जीवणै हाथ सूं रेखा रौ मुरचौ पकड़'र उणनैं बिस्तर माथै बैठाय लीवी, “जिला परिषद् मांय मास्टरां री भर्ती री मेरिट बण रैयी है नीं... उण सिलसिलै में म्हैं गलूंडिया सा'ब सूं मिल्यौ... थनैं तौ ठा है, आपणै राजू रौ केस... थोड़ौ-सो ऊपर-नीचै कर्‌यां इणी लिस्ट मांय उणनैं पोस्टिंग मिळ सकै... राजू री नौकरी लाग जावै तौ पापा री टेंशन खतम होय जावै... फेर वो अजेस कंवारौ बैठ्यौ है...वो सी.ई.ओ. है नीं जिला परिषद् रौ बाबूलाल... गलूंडिया रै बैच रौ है...।” बैजनाथ बिसाईं-सी लीवी अर फेर बोलणौ सरू कर्‌यौ, “गलूंडिया गारंटी लीवी है...पछै थारौ कैवण लागग्यौ... जैपुर में किणी अेन.जी.ओ. नैं राज्य सरकार कांनी सूं दिरीज्योड़ै प्रोजेक्ट में थनैं इन्वाल्व करणी चावै... कैवतौ, थारै मांय गजब रौ टेलेंट है, इणनैं सही एक्सपोजर मिळणौ चाइजै...।”

रेखा बगनी-सी आपरै धणी बैजनाथ रै मूंढै साम्हीं जोवै ही-ओ आदमी कठैई साचांणी किरगांटियौ तौ नीं? अेक दिन में आंटा-चित्त! वा खसमाई अर सौदौ, दोवूं कैड़ी अधिकार भावना सूं!

“तौ थूं फोन कर देयी, गलूंडिया सा'ब नैं... बियां वै म्हनैं बतायौ, साते'क बजी निकळसी... आपरी खुद री गाडी सूं... अंबेडकर चौरावै माथै सूं लेय लेसी थनैं...।”

रेखा भाठौ बणती थकी सुण्यां जावै ही अर उणनैं लखावै हौ जांणै उणरै कांनां मांय सबद नीं, मैलो बैंवतौ थकौ उतर्‌यां जावै... अचांणचक उणरै मांय सूं अेक होबरड़ौ उठ्यौ अर वा उल्टी करण सारू वाश-बेसिन कांनी भाजगी...।

दुपारै वा गलूंडिया नैं फोन कर्‌यौ, “हां, सर... मैं चल रही हूं...हां-हां, आपकी कंपनी को पूरा एंज्वाय करूंगी... पर सर, एक शर्त है मेरी... वो जिस काम से मेरे हसबैंड आपसे मिले... नहीं... नहीं... मेरी शर्त यह है कि वो होना नहीं चाहिए... हर्गिज़ नहीं... हां, कत्तई नहीं... ओ. के. सर... थैंक्यू... तो मैं अंबेडकर चौराहे पर वेट करूंगी...।”

फोन राख'र रेखा जांणै मनोमन कैयौ, “पुळ... म्हैं जे पुळ बणावूंला म्हारै इण डील नैं... तौ पार म्हैं उतरूंला... फगत म्हैं...।”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : कमल रंगा ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण