उतावळा पगां मोटर स्टैंड पूग्यो। पसीनो माथा सूं टपकबा लागग्यो, पण जद फाटक पै मोटर ऊबी दीखी तो संतोस को सांस आयो। मन नैं अस्यां लाग्यो जस्यां बळबळती लाय में भी सेला बोल को लूरो नजीक हो’र खड़्यो होवै।
पांच-सात हाथ दूरां सूं ई खड़की में सूं झांकती अेक सवारी सूं पूछी, “केथूण..?” सवारी मूंडकी हला’र हामळ भर दी। अधखुळी फाटक को कुंदो डावा हाथ सूं पकड़’र म्हैं जीवणा हाथ सूं पोटली भीतर फांक दी। कंडक्टर आगली सीटां की सवार्यां का टिकट बणाबा में मस्त छो अर क्लीनर “केथूण-केथूण” का हांका पाड़-पाड़’र ठसाठस भरी मोटर में बाकर्यां की नांई पजबा बेई सवार्यां नैं हाका लगाबा लाग र्यो छो। म्हूं पाणी का बगला नांई भीड़ का पाणी में भीतर लुळ’र अेक टांग पै ऊबो होग्यो।
केथूण पांच कोस को गेलो छै। घंटा लार अेक मोटर अठी सूं अर अेक उठी सूं छूटै छै। अेक ठेकादार की ई छै ईं गेला पै चालबा हाळी सारी मोटरां। जीं सूं आधी सवार्यां कै तांई बना टिकट काट्यां भऱ ले छै अर सरकार का खजाना में जाबा हाळा पीसा थोड़ा घणां मोटर मालक अर आधा-परधा कंडक्टरां-डलेवरां अर क्लीनरां का भूखा पेट में दारू को बघार लगाबा में नमट ज्या छै।
मोटर चाली तो बायरा की लूर खड़क्यां में सूं भीतर आबा लागी। ठंडाई आई। आस-पास की बातां कानां में पड़ी।
अेक डोकरी का रोवणा पै म्हारा कान आपू आप चालग्या।
“नळ पै पाणी पीबा जतनीसीक देर में मोटर हकगी। म्हैं हांका भी पाड़्या अर पाछै भी भागी, पण मोटर न्हं ढबी।”
“अब रोबा अर फकर करबा सूं कांई मलणो छै। अतनो कळेस कर री छै तो थेलो छोड’र क्यूं गी..?” आगली सीट पै बैठी अेक लुगाई बोली।
“म्हूं तो न्हं जाती बाई, पण ईं तस पर कांईं बस। अभी कळकळती लाय में पाणी न्हं प्यां तो मर जावां अर अठी सीट खाली छोड’र चल जावां तो बैठबा की ठाम खतम होज्या।”
“तो अस्यो ऊं थेला में कांईं धन छो।” अेक जणा नैं पूछी।
“म्हां गरीबां को कांईं धन कांईं दौलत! अेक सेर आम्बा, च्यार आनां का तीन खेलकणां, बीड़ी का तीन बिंडळ, दो दयासळाई।”
“तो तीन कोडी की चीजां कै बेई अतनी बार सूं माथो क्यूं खा री छै।”
थोड़ी-सी’क देर वां की बातां सुणी तो सारी रामकथा समझग्यो। डोकरी अेक घंटा प्हैली की मोटर में आ’र बैठी छी। मोटर चालबा कै थोड़ी-सी’क बार प्हैली अपणी पोटळी सीट पै धर’र पाणी पीबा उतरी अर मोटर चल दी। ऊं को पोटळी बण्यो थेलो भी ऊं मोटर की लार केथूण की जात्रा पै रवाना होग्यो। वा हांका पाड़ती री अर मोटर कै पाछै भागती री।
“पाछी आती बगतां वा मोटर ईं मोटर सूं बीचा में मलै छै” अेक जणो बोल्यो, “तो डलेवर सूं क्हैर मोटर रुकवा लेंगा। थारा थेला को कांई भी न्हं बगड़ै, तू छानी तो होज्या।”
बना कोई कै बतायां ई अेक मरद नैं डलेवर पै हुकम चलाद्यो, “डलेवर साब! आवती मोटर नैं रुका’र पूछज्यो के अेक थेलो तो न्हं मल्यो।”
“कसी बातां करो छो भायाजी।” आगली सीट पै सूं अेक सजी-धजी सी’क लुगाई बोली। “खाबा की चीज नैं कुण छोडै छै।”
डोकरी की आंख्यां में पाणी उतर्यायो, मुंडो रोवणो-सोक होग्यो। म्हनैं ऊं का मुंडा पै ममता की तसबीर दीखी। “घणी हूं कर’र पोता-पोत्यां कै बेई आम्बा लाई छी बना सा’ब।” ईं सूं जादा वा कांईं भी न्हं बोल सकी। म्हनैं आज देख्यो कै अेक किलो आम्बा भी कोई को सबसूं बडो धन हो सकै छै।”
धोळी फफूक धाबती फहर्यां, म्हारी ई नांई अेक टांग पै ऊबो अेक सेठ सो’क दीखबा हाळो आदमी बार-बार कह र्यो छो, “देखो ईं डोकरी नैं! आठ आना का आम्बा में गळ घाल राख्यो छै। म्हां की ईं मोटर में केई बार हजारां रप्यां की जेबां कटगी पण कोई न कानां कान खबर न्हं होबा दी।”
म्हनैं या बात सेल की नांई लागी, पण डोकरी नैं ईं को बुरो न्हं मान्यो। उस्यां ई रोवणी सूरत बणा’र बोली, “म्हांका आठ आना ई हजार रप्या छै बना सा’ब।” म्हनैं भीतर या दोन्यूं तस्वीरां नैं परख’र रोबो आग्यो।
“अे! बना साब! पाछी आती मोटर नैं रुकवा’र पूछज्यो जी भाया,” वा ऊं सूं बोली जी नैं प्हैली डलेवर कै तांईं मोटर रूकवाबा को हुकम द्यो छो। डोकरी की आंख्यां में याचना की असी झलक छी ज्यो म्हनैं ईं सूं प्हली न्हं देखी छी।
“मल ज्यागो माई” कह’र ऊ अपणी बातां में लागग्यो। आस-पास का लोग अपणी-अपणी रामख्याण्यां में उलझ्या र्या। ईं मोटर में गमबा हाळी चीजां का किस्सा खुलबा लाग्या।
“परार नैं स्याळा में म्हूं भैंस्यां बेच’र पाछो जा र्यो छो। थेलां में कड़क नोट छा, साढा तीन हजार। नाड़ा छोड़ करबा उतर्यो तो मोटर चाल दी। उठ’र भागबा की कोसीस करी तो धोवती भी भीजगी अर मोटर भी न्हं रुकी।”
“फेर..!”
“घणी पूछताछ करी पण जद को दन छै अर आज को दन छै। कोडी की भी खबर न्हं लागी।”
दूसरी लुगाई बोली “केथूण को हटवाड़ो कर’र पाछी आती बखत अेक बार म्हारी अेक गांठ जीं में कोई डोढसौ का लता झींतरा छा, अस्यां की अस्यां ईं सीट पै छूटगी जीं का आज दन तांईं पता न्हं चाल्या।”
“हाल तो म्हीना दो तीन की ई बात छै।” अेक जणो और कहबा लाग्यो। “अेक दस किलो खांड को थेलो ईं मोटर सूं गम्यो जे अब तांईं न्हं पायो।”
ज्यूं-ज्यूं अेक सूं अेक ख्याणी सुणती, डोकरी का मन पै अेक कील ठुकती, जीं की पीड़ा की लकीरा ऊं की आंख्यां अर ऊंका माथा का सळां में उतर्याती। आधा सूं जादा लोग सोचबा लागग्या छा कै डोकरी को आम्बा को थेलो चलीग्यो जे चलीग्यो पण फेर भी बसबास द्बाबा हाथां ऊं नैं बसवास द्वाता र्या अर मोटर पूरो घर्राटो करती चालती री। बीचा में तीन-च्यार जणां नैं कंडक्टर अर क्लीनर सूं भी आवती मोटर रोकबा की बात कह दी।
आज म्हनैं देखी के हजारां रप्यां सूं ममता का अेक किलो आम्बा कतना महंगा छै। डोकरी की आंख्यां में अेक किलो आम्बा कै मस लुटी ममता म्हारा मन नैं रुवाणबा लागगी। आज-आज जद या डोकरी गवाड़ी में पग धरैगी तो आंगणा में कलकारी करता पोता-पोती “आगी बा आगी” कर’र नाचबा लाग ज्यागा। “बा कांईं लाई, बा कांईं लाई!” पूछ-पूछ’र फाटी सी’क सावली का खूंट हेरबा लाग ज्यागा। “बा म्हारा खेलकणां – बा म्हारा आम्बा” कह’र वै डोकरी कै लूम ज्यागा।
अेक सपनो सोक आयो अर म्हनैं डोकरी अपणा पोता-पोत्यां सूं बंधी रोवणी सूरत बणायां आंगणां में ऊभी दीखी। माथा की रेखां अर गालां की लूलर्यां सूं ले’र आंख्यां की ललाई अर होटां का संवळास तांईं सारो संसार गम जाबा को गम देख्यो। “बा कांईं लाई..? – बा कांईं लाई?” करता अर लीरड़ा-लीरड़ा होयी सावली सूं लूमता बाळक देख्या।
मोटर नैं पों-पों की आवाज करी अर अेक झटको दे’र ठहरगी। दूसरी मोटर बगल में ऊभी छी।
“अे बना साब! देखां पूछो जी” डोकरी असी उतावळी होगी कै खड़की कै नजीक होवै तो डांक ज्या।
“क्यूं भाई..! कोई छोटो सो’क थेलो तो न्हं मल्यो ईं मोटर में? अठी का डलेवर नैं उठी का डलेवर सूं पूछी। मिनट-भर बेई सारी मोटर में सुन्न खंचगी जस्यां जीत-हार को फैसलो होणो होवै।”
ऊंठी की मोटर का डलेवर नैं कांई कही या बात घणाक लोगां कै सुणबा में न्हं आई। अलबत्ता अेक जणो हाथ में मछलांद्यो सो’क थेलो ले’र सामली मोटर में सूं आयो, “कुण को छै यो खजानो।”
“म्हारो छै बना सा’ब,” कह’र अधखुली खड़की में सूं लपकी।
मोटर चाल दी। थेला में आम्बा टटोळती डोकरी म्हनैं असी लागी जस्यां सांच्याईं ऊंकै तांईं खजानो मलग्यो छै।