उतावळो-सो बावळो। भाजानासी रै जुग में मिनख बड़ो उतावळो हुयो है। फोरो ई कोनी किणी नैं। बगत तो किणी कन्नै है इज कोनी। देखो जिकै नैं ई, भाज्यो बगै, बेओसाण। हांपरड़ै होयरी है दुनिया। ओसाण है तो फगत गांव में दरखत हेटै चौपड़-तास रमता डोकरां नैं, का पछै घर मांय मांची माथै बैठी डोकरी नैं। पण डोकरां कन्नै बैठण रो ओसाण डोकरां टाळ किणी नैं कोनी। नूंवी पीढी रै तो और घणा ई पंपाळ। बा तो घर में रैय’र ई घर में नीं रैवै। फेसबुक, व्हाटसएप्प, इन्स्टाग्राम, ट्वीटर, यूट्यूब, टेलिग्राम अर ठाह नीं कांई-कांई!
उन्हाळै रा दिन। बो आथण जीम्यां पछै डागळै सोवै। मांची माथै आडो होवतां पाण मोबाइल फोन उणरै हाथां में आय मूंढै आगै तण जावै। दोनूं हाथां रा अंगूठा अर आंगळी चालण लागै। सोसल मीडिया रै आं सगळै प्लेटफॉर्म्स माथै बो थोड़ो-थोड़ो टेम देवै तो ई डेढ़-दोय घंटा तो किणी रै बाप रा ई कोनी। पलक झपकतां ई जाणै इग्यारै बजग्या। टेम रो ठाह ई को लागै नीं।
केई बार तो मोबाइल चलावतां-चलावतां उणनैं नींद आवण ढूकै अर मोबाइल हाथ सूं छूट छाती माथै आ पड़ै। बो झिझकै अर पछै मांची रै सिराणै कानी मोबाइल छोड सोय जावै। पण नेट बंद करणो भूल जावै अर इत्तै मांय ई ‘टणक’ री आवाज साथै कोई मैसेज आवै। बो भळै जाग जावै। देखै, कोई भायलो पूछै, “सोयग्या कांई?” अर बो रिप्लाई कर देवै, “बस सोवै ई हो यार! हुकम करो!”
यूं करतां बातां सरू होवै तो आध घंटा रो ठाह ई को लागै नीं। बो नेट बंद कर’र सोय जावै तो ई कदै-कदै अेसअेमअेस आय ढूकै अर उणमें बो ई सवाल, “बेगा सोयग्या नीं आज तो! व्हाटसएप्प देखो, अेक जरूरी बात है।” बो भळै ऑनलाइन हुवै। देखै,भायलै कोई कविता भेजी है अर साथै लिख्यो है, “देख’र बताओ नीं। जचती-सी है’क नीं!”
बो माथै रै हाथ लगावै, यार, इड्डी के ताकड़ ही। आ तो सुबै ई देख सकतो हो। पण बींनै ठाह है कवियां री ताकड़ रो। सरस्यूं रो फाको मार लारै धोबो मांडै कै तेल अब निसरै, अब निसरै। बो दोय-च्यार सबदां री वर्तनी अर अेक-दोय वाक्या सुधारै अर ‘शानदार’ रै संकेत सूं रिप्लाई करै अर ऑफलाइन हुय जावै। लगतो ई भायलै रो फोन आय जावै। बो ‘शानदार’ री इमोजी सूं नीं धापै, बडाई रा दोय बोल पण सुणना चावै। पूछै, “थानै चोखी लागी नीं?”
“हां, हां..! आप सांतरी मांडो हो। आपरै हरेक वाक्य में दरसण रो पुट हुवै। बिंब पण सांतरा है। अंदाजे बयां लाजवाब। अेकदम मौलिक विचार।”
“वाह-वाह..! आपनै दाय आयी है तो म्हारो लिखणो सारथक होग्यो। म्हारो हौसलो बध्यो है साची। आप खरी टीप करो सदीव। इणी बरस कविता संग्रै री पांडुलिपि पूरी करनै भेजूं आप कन्नै। आपनैं ई जांचणी है।”
“जांचणी कांई है जी, बांचणी ईज है। म्हनै हरख है कै आप आपरी रचनावां रो पैलो पाठक म्हनै बणाओ हो।”
यूं करतां-करातां आधी रात हुय जावै। कोई दसेक बजे सारली मांची ऊपर जोड़ायत आयनै सोयी ही अर आवतां ई अेकर तो कैयो हो, “थानैं तो देखां जद ई औ मोबाइल हाथ में दिखै। धापो कोनी के थे कद ई इणसूं? कांई ठाह इस्यो कांई नादीद है।”
अर पछै दिनभर रै खोरसै सूं आखती होयोड़ी नैं इसी नींद आवै कै घरड़का बाजता ई सुणै। उणरी नींद में खलल नीं पड़ै इण वास्तै बो कदै-कदै मोबाइल नैं साइलेंट मोड पर ई करै। पण नेड़ै चालतै कूलर अर बाजतै घरड़कां बिचाळै मोबाइल रो टुणटुणाट किणनैं सुणै। इण वास्तै साइलेंट मोड पर करण री दरकार नीं रैवै।
कई बार उणरै ऑफलाइन हुवतां ई मिसन सूं जुड़ियोड़ै किणी भायलै रो अेसअेमअेस आवै, “भाईजी, सोयग्या कांई?”
“ना, तेरै जणीतां नैं रोऊं..?” बो मन ई मन बड़बड़ावै अर रिप्लाई करै, “बोलो!”
“अेकर फेसबुक मैसेंजर संभाळो नीं।” बो भळै मैसेज करै।
उणनै भळै ऑनलाइन हुवणो पड़ै। टणटणाट करतो अेक मैसेज मैसेंजर में आय बड़ै। कोई पोस्ट रो लिंक है। बो समझ जावै। निस्चै ई कोई गरमागरम बहस छिड़ी है। अेकर सोचै, बळण दे नीं। कांई पूरा आवां आखै दिन। अठै घणकरा-सा व्हाटसएप्प-फेसबुक यूनिवर्सिटियां रा स्टूडेंट माथा-झिकाळ करता रैवै। आं सगळां रा गुरु है गोदी मीडिया रा पत्रकार का पछै राजनीतिक पार्टियां री आईटी सेल रा मास्टर माइंड लोग। पण आगलै ई पल मन बदळ जावै। सोचै, देखां तो सरी, बात कांई है? बो लिंक माथै क्लिक करै। पोस्ट उघड़ै। बो पैली पोस्ट बांचै अर पछै अेक-अेक कमेंट। पछै आपरी बात लिखण ढूकै। लिख देवै। बो सोचै, चलो अेकर जवाब लिख दियो। अबार मोड़ो घणो होग्यो। सोवणो ई ठीक रैयसी। पण बो देखै कै उणरै कमेंट री रिप्लाई में कोई टाइप कर रैयो है। चलो, अेकर जवाब री उडीक करां। बो उडीकतो रैवै खासी ताळ तो अेक लांबी-सी रिप्लाई आवै। बो बांचै अर आकरो-सो जवाब लिखण सारू मोबाइल रै की-पैड माथै उणरी आंगळी भळै चालण लागै।
आ अेक दिन री बात कोनी। रोज-रोज रो औ इज स्यापो है। कदै-कदै तो उणनै झुंझळ आवण लागै अर बो बगतसर ई स्विच ऑफ कर सोय जावै। पण थोड़ीक ताळ में ई बो पसवाड़ा फोरण लागै। उणनैं लागै जाणै बो आखी दुनिया सूं कट’र अेकलो पड़्यो है कठै ई निरजण बन-उजाड़ मांय। उणरै डील में तोड़ाचूंटी-सी लाग जावै। मोबाइल भळै उणरै हाथ में आय जावै। बो निरजण बन सूं बावड़ै अर रंगीली दुनिया में रमण लागै। मोबाइल नैं स्विच ऑफ राखणो तो दूर, अेक पल सारू ऑफलाइन होवणो ई उणरै भारत हुय जावै। आजकाल उणनैं आपरी आंख्यां सूकी-सूकी लागै अर दूर री चीज्यां चसमा थकां ई सावळ सूझती-सी नीं लागै। साम्हीं पांच-सात पांवडां माथै आवतो मिनख ई बींनैं सावळसर को दिखै नीं अर आंख्यां पर जोर दियां झुआंळा-सा आवण लागै। आंख्यां माथै बो सीतळ जळ रा घणा ई छाबका मारै, पण कोई फायदो नीं हुवै।
सुधियां उठ’र बीनैं स्कूल जावणो हुवै। आप सोचता होस्यो औ कोई भणेसरी है। नई सा, ओ बावन बरसो अेक मिनख है अर सरकारी स्कूल रो मास्टर है। मास्टर रो स्कूल घर सूं कोई पैंतीस किलोमीटर अळगो है। आथूण दिसा में। साढे सात बजे स्कूल लागै सो इणनैं रोज छव पैंतीस पर लोक परिवहन आळी बस में सवार होवणो पड़ै। बस अगूण दिसा रै अेक कस्बै कानी सूं आवै। रोजीना सुबै साढे पांच सूं पैली-पैली औ उठै। नींद पूरी हुयां बिनां पेट सावळ नीं रैवै अर सुधियां-सुधियां ई साफ को होवै नीं। जोर मार्यां सूं आंख भलां ई बारै आवो, आवण वाळी चीज तो को आवै नीं। इण टसका-मसकी में उणनैं चेतै आवै यूट्यूब माथै सुणियोड़ो नुस्खो – ‘पचास ग्राम जीरो, पचास ग्राम अजवायण, पचास ग्राम सूंफ, पच्चीस ग्राम काळो लूण अर पांच ग्राम हींग। चूर्ण बणाओ। रात नैं सोवती टेम अेक चमच्च लेवो। सुबै पेट ईयां खाली होसी कै आप कैयस्यो, वाह मजो आयग्यो। डील साव हळको होय जासी।’ उण दसेक दिन पैलां जोड़ायत नैं कैयो हो अै सगळी चीज्यां मिक्सी में पीसण सारू। बोली, “और तो सगळी चीज पड़ी है, पण काळो लूण कोनी। औ ल्यावणो पड़सी थानैं।”
पण ना तो काळो लूण ल्यावणो चेतै रैयो अर ना ई औ चूर्ण बण्यो। खैर, इण टसका-मसकी, नहावा-धोयी अर चाय-पाणी में साढे छव बजता ई दीसै।
उणरो बेटो पण नूंवो-नूंवो मास्टर लाग्यो है। बो रोजीना सवा छव वाळी बस में गांव सूं अगूण दिस जावै। उणरो स्कूल कोई पैंताळीस किलोमीटर अळगो। बेटो स्कूल सारू व्हीर हुयग्यो है अर माट सा, छव पैंतीस वाळी बस पकड़ण सारू बेगा-बेगा त्यार हो रैया है। जोड़ायत टिफन पैक कर बेग में धर दीनो है। पाणी री बोटल बेग रै साइड वाळै छींकै में अटकाय दीनी है। मास्साब बाळ बायनै अबार पैरण सारू मौजा हाथ में लीना है। अेक पग में अेक अटकाय दूजै में दूजो अटकावण लाग्या तो देख्यो, औ कांई, अेक मौजो काळो हो अर दूजो लाल! लाल मौजा तो बेटै रा है। जोड़ायत नैं हेलो मारै, “अरे भागवान, औ कांई हुयो! अेक मौजो लाल कियां?”
बा आयनै देखै, “ओ हो, बेटो अेक मौजो आप आळो पैरग्यो लागै उतावळ में!”
“ईयां के सुन्नो है बो..! इत्तो ई ठाह को लागै नीं?”
“म्हैं आपनैं हजार बार कैयो है, पांच-च्यार जोड़ी भेळी ले आवो, पण ना तो ल्यावै बाप और ना ल्यावै बेटो। बाप चौधरी, बेटो छैल, कुण करै घर री टै’ल। अब म्हैं कांई करूं..? है जिस्या ई पैरल्यो।”
मजबूरी रो नाम महात्मा गांधी। अब किस्यै खाड में पड़ै। बेगा-बेगा अेक पग में काळो अर दूजै में लाल मौजो ठठा लियो। जूता पैर्यां। बेग मोढै टांगी। मोबाइल, पेन, मासक सगळा संभाळ्या अर घर सूं निसरता ई दिख्या। बारै अड़ोसी-पड़ोसी दिख्या तो रामरूमी करी। माटसा कोई बीसेक पांवडा चाल्या हा कै चेतै आई, जेब में रिपिया तो घाल्या ई कोनी! ओ-हो, बै तो अलमारी में ई रैयग्या। पाछा मुड़्या। पड़ोसी मुळक्या। औ अेक दिन रो कोनी। रोज-रोज रो ई काम है। कोई न कोई चीज तो भूलै ई भूलै है रोज। अेकर तो पाछो मुड़णो ई पड़ै है। अलमारी सूं रिपिया जेब में घाल्या तो अेक चीज भळै चेतै आयगी। इसी तपती तावड़ी में साफै बिना कियां सरै! तणी सूं साफो उतार मोढै धर्यो अर भळै बेगा-बेगा पग उठा’र चाल्या।
इत्तै में मोबाइल में घंटी बाजी। जेब सूं काढ देख्यो। अेक स्टाफ साथी रो फोन हो जका रोज बीं लोक परिवहन आळी बस में आवै। बोल्या, “गुरु, राम-राम! आज बा आपड़ली लोक परिवहन तो मिस है। म्हैं तो अखबार आळी क्रूजर में आवूं।”
“कठै-सीक पूग्या..?” – माटसा पूछ्यो।
“तीनेक किलोमीटर हां थारलै गाम सूं। थे अड्डै पर हो के..?”
“हां, पूगग्यो ई मानो। अड्डो तो साम्हीं ई दिखै है।”
“आ ज्यावो,” कैवतां बै फोन काट दियो।
माटसा अड्डै पूग्या। इण बस में रोज साथै जावण वाळा वकील जी पण मिलग्या। वकील जी रोजीना नजीक रै अेक कस्बै में वकालत करण जावै। आजकाल कोर्ट अर स्कूल दोनां रो टेम सुबै साढे सात रो। माटसा बोल्या, “वकील जी, आज बसड़ी तो मिस है। अेक क्रूजर आवै चालो तो।”
“चालणो तो है ई।”
क्रूजर आयी। माटसा अर वकील जी लारली लांबळती सीटां माथै बैठग्या। वकीलजी रो मूंढो दिखणाद तो माटसा रो मूंढो उतराध। आम्हों-साम्हों। गाडी में सवारियां तो पैली ई बाफर ही। अबार और काठी भरगी। वकीलजी तो गाडी में बैठतां ई मोबाइल काढ लियो। गाडी टुरी। माटसा अेकर भळै हाथ में झाल्योड़ै मोबाइल में टेम देख्यो, छव चाळीस। आगलै कस्बै सूं सात पांच पर बांनैं स्कूल कानी जावण वाळी बस मिलसी जकी, बांनैं सात पच्चीस उण गांव रे अडै उतारसी। अड्डै सूं स्कूल रो मारग उपाळो चाल्यां फगत तीन मिनट रो है। मतलब बै बगतसर स्कूल पूग सकै।
माटसा वकीलजी रो मुआयनो कर्यो। तीखै नाक-नकस, सांवळै रंग अर पतळै डील वाळो कोई पैंतीसेक साल रो मोट्यार। काळी पैंट पर धोळो बुशर्ट। बुशर्ट पैंट रै मांय दाब्योड़ो। सोवणै चांदी रंग रै बक्कल वाळै चामड़ै रो बैल्ट। गोडां मांय अेक बेग झाल राखी। स्यात बेग मांय काळो कोट अर कागद होसी। नीं कोट तो गरमी में सागै कांई राखता होसी! कोट तो आपरै चैंबर में राखता होसी। निस्चै ई बेग में कोई कागज का फाइलां होसी। माटसा री निजर बेग सूं थोड़ी हेटी उतरी तो देख्यो, वकीलजी तो बेचैन है।
हां, बेचैन। उतावळ में केई बार कोई जवान पैंट री जिप यानी चैन बंद करणी भूल जावै तो उणनैं मजाक में ‘बेचैन’ कैवण री रीत है अठै। वकीलजी री पैंट रो चैन वाळो भाग त्रिभुज आकार में खुलो देखनै माटसाब री मन ई मन मुळक्या। नींद पूरी नीं होवण री बांरी बेचैनी वकीलजी री पैंट री खुली चैन में गमगी। बै सोच्यो, वकील नैं इसारो करनै बताय दूं कै आपरी चैन खुली है। पण गाडी में भीड़ घणी ही अर नजीक दोय छोरियां पण बैठी ही। बो जाणै हो, अेक छोरी तो उणरै गांव री ई ही जकी रोज-रोज टाबरां रा सूट बेचण गांव-गांव जावै। गाभां री अेक पांड उण गाडी में आपरै अर सामली सवारी रै पगां बिचाळै ठूंस राखी ही। उणरै नजीक ई अेक छोरी अर छोरो बैठ्या हा। सगळी सवारियां आप-आपरै विच्यारां में खोयोड़ी ही। कोई मोबाइल माथै आंगळियां मारै हो तो कोई गाड़ी में बाजतै डैक माथै चालतै हरियाणवी गीतां रै आणंद में डूब्यो हो। माटसाब वकील जी रै मूंढै कानी देख्यो, उणी खिण वकीलजी री निजर माटसाब री निजर सूं मिली। दोनूं अेक-दूजै कानी देखनै मुळक्या। माटसाब चैन कानी इसारो करणो चावै हा, पण इत्तै मांय वकीलजी निजर फोर लीनी।
सेवट कोई बीसेक मिनट में बो अड्डो आयग्यो जठै माटसा अर वकीलजी नैं उतरणो हो। फगत आं दोवां नैं ई नीं, सगळी सवारियां नैं अठै ई उतरणो हो। क्यूंकै गाडी नैं ई अठै ढबणो हो। गाडी ढबी। पैलपोत वकीलजी उतरिया। आगली सीट सूं डलेवर उतरनै गाडी रै लारलै पासै आयो। वकील जी डलेवर नै आपरो भाड़ो पकड़ायो। इत्तै में माटसा उतरनै आपरो भाड़ो देवण लाग्या।
वकीलजी आपरो मूंढो माटसाब रै जीवणै कान कन्नै करनै होळै-सीक कैयो, “गुरुजी, थारी चैन खुली है!”
“हैंऽऽ!” डलेवर नैं भाड़ो पकड़ावता माटसा उछळ्या अर चुपकै-सी चैन जड़ ली। पण साथै ई बां वकीलजी रो बाहुड़ो झाल लियो अर बोल्या, “वकीलजी, थारली संभाळियो..!”
वकीलजी रो जीवणो हाथ सीधो चैन कानी गयो। चैन जड़तां ई बां माटसा कानी देख्यो। माटसा रै मूंढै फीकी मुळक सांचरी। वकीलजी आपरो डावड़ो हाथ आपरै मूंढै माथै धर लीनो। माटसा नैं बो उणियारो व्हाट्सएप्प माथै बरतीजती अेक खास इमोजी-सो लखायो।