हमीद झूंपड़ी कनैं मोटरसाइकल रोकी अर क्वाटरां रै कांम रौ जायजौ लेवण सारू आगै वहीर होयौ।
लंगर सूं क्वाटर बण रैया हा। पंदरै-बीसेक मिनख-लुगाई कांम में लाग्योड़ा।
“बाळणजोगी, टांग्यां में सत कोनी के? इंयां किंयां बेसकै पड़ रैयी है? फुरती सूं कोनी चलाइजै हाथ-गोडा?... अरे रामला, थारै कांई बळग्यौ? टी.बी. रै मरीज दांई कांई मरियोड़ौ-सो फावड़ौ चलावै? गारौ बणावण में ई सा’ब नैं जोर आवै है कांई...!”
हमीद, सोवन चलवैं री बातां सुण’र मुळक्यौ। अेकै पासी राख्योड़ी माची माथै बैठतौ कीं जोर सूं बोल्यौ, “किंयां चलवौंजी, कांम ठीक चाल रैयौ है नीं?”
बीड़ी रौ कस खैंचता सोवनजी लारै मुड़’र देख्यौ, “ओऽऽ ठेकैदारजी सा।”
“खाथा-खाथा हाथ-गोडा चलावौ देखांण।” सोवनजी मजूरां नैं भोळावण देवता हमीद कनैं पूग्या अर माची रै पगांथै बैठग्या।
पागै सूं रगड़’र बीड़ी बुझायी अर जोर सूं बोल्या, “अरे भोमला, ठेकैदारजी सारू पांणी लायै।”
कमीज री जेब सूं हमीद सिगरेट रौ पाकेट काढियौ। वीं मांय सूं अेक सिगरेट निकाळ’र पाकेट सोवनजी साम्हीं कर दियौ। फेरूं पैंट री जेब सूं लाइटर निकाळ’र सिगरेट सिळगाई अर अेक जोरदार कस खेंच्यौ। सोवनजी ई सिगरेट सिळगायली।
“बेजां माठा है अै छोरा-छोरियां। आं सूं तो बूढिया चोखा, जिका बापड़ा आपरै बूतै घणौ कांम करै। आं नालायकां नैं कितरा ई बकौ, पण चालसी अै आपरी ई चाल।” कांम करता मजूरां साम्हीं देखता सोवनजी कैयौ।
भोमलौ पांणी रौ जग लेय आयौ।
हमीद जग मूंढै सूं कीं ऊंचौ राख’र इकधार गटागट पांणी पीयौ। पीय’र अेक कुरळौ करियौ अर जग माची हेठै मेल दियौ।
“थांरी गाळ्यां रौ ई असर कोनी पड़ै?” हमीद मुळकतौ पूछ्यौ।
“ना ओ।” अेक हाथ सूं पाग ऊंचीनै कर’र दूजै सूं माथौ रगड़ता वै बोल्या, म्हारौ ई गळौ खराब होवै, आं नालायकां रै कांई फरक पड़ै।”
“इत्तै में वै गरज्या, “थनैं भोत हेंसी आवै अे चिड़कली। बाळणजोगी सूं कांम तौ होवै कोनी, ऊभी-ऊभी बत्तीसी देखावै। बेगी-सी’क तगारी भरा’र पुगाइजै कोनी कांई?”
पाग पाछी वां माथै पर राखली।
चिड़कली री हेंसी ठमगी पण आंख्यां ओजूं ई हेंस रैयी ही। होळै-सी’क बोली, “म्हैं कांई करूं, संतियौ ई तगारी कोनी भरै।”
“कांय री मसखरी करै है रे संतिया।” अबै वै संतियै माथै रीसां बळिया, “आ के थारै, म्हैं कैय दूं जिकी लागै। तगारी भरीजै कोनी कांई? कठै सूं आय बळग्या इसा माठा?”
संतियै गारै सूं तगारी भरी। चिड़कली उखणं’र कारीगर कांनी टुरगी। हमीद उणनैं ई देखतौ रैयौ। वीं नैं आ नूंवी लखायी। अठारैक साल री! मंझलौ कद। फूठरा मिरगानैण, उणां में बारै तांई निसर्योड़ौ काजळ। गैरी भरियोड़ी मांग। पीळौ ओढणौ अर हरी छींट रौ घाघरौ पैरियोड़ौ। ओढणै रौ अेक पल्लौ कांचळी में ठूंस्योड़ौ।
सोवनजी उणरी निजर रा बोल सुण लिया, “काल ई आयी है आ। घणी ई हाथाजोड़ी करण लागी जणै लगायली।”
“चोखौ करियौ।” हमीद इतरौ ई कैयौ।
संतियौ गारै सूं तगारी भरै, चिड़कली लुळ’र उखणै अर ईंट्यां चेपतै कारीगर तांई गारौ पुगावै। पाछी आवै, गारै सूं तगारी भरावै अर टुरै।
हमीद री निजर लगोलग उणरै लारै।
सोवनजी उणनैं देख’र मुळक्या। आवाज दीवी, “अरे चिड़कली, जा लिच्छू री होटल सूं ठेकैदारजी सारू चाय लेव’र आ।”
वा गारै सूं तगारी भरायी, उखणी अर टुरगी। जांणै सुणीज्यौ ई कोनी। वै रीसां बळता माची सूं ऊभा होयग्या। जोर सूं कैयौ, “बोळी है कांई? सुणीज्यौ कोनी म्हैं कांई कैवूं?”
“म्हैं म्हारौ कांम करूं हूं नीं, दूजै नैं कैय देवौ।” कारीगर कनैं तगारी खाली कर’र वा पूठी आय’र भोमलै कनैं सूं तगारी भरावण लागी। तगारी भरीजी, वा उखणी अर पाछी टुरगी।
अबै सोवनजी सूं कठै रैइजै। वै वीं कनैं पूग्या अर तगारी खोस’र परियां बगावता आकरा होय’र कैयौ, “घणौ ई कांम कर’र ठारै। जा केतली लेय’र चाय ला। आयी है कांमेतण।”
चिड़कली रै लिलाड़ मांय तीन सळ पड़ग्या। कीं ताळ बा चलवौंजी साम्हीं जोवती रैयी। चलवौंजी रीस में हा। केतली लेय’र वा चुपचाप वहीर होयगी।
सोवनजी चलवौं हमीद साम्हीं देख्यौ अर दोनूं अेक ई भाव सूं होळै-सी’क मुळक्या।
हमीद नूंवी सिगरेट सिळगाई। अेक सांतरौ कस लियौ अर माची सूं ऊभौ होयग्यौ।
कांम करणियां कांनी आयौ। बणता क्वाटरां रै चक्कर काढ्यौ। कीं ताळ कारीगरां नैं ईंट्यां चेपतां देखतौ रैयौ। फेरूं होळै-होळै उणरा पांवडा झूंपड़ी कांनी बधण लाग्या।
चिड़कली चाय लेय आयी। केतली अर कप माची कनैं राख्या अर कीं आकरी होय’र बोली, “आ लेवौ चाय, चलवौंजी।”
सोवनजी मजूरां कांनी ऊभा हा। बठै सूं ई चिड़तां कैयौ, “थूं तो साव सून है अे। अरे कपां में घाल। अेक कप ठेकैदारजी नैं देयदै। वै झूंपड़ी में बैठा है।”
मन रै उपरियां कर वीं कपां में चाय घाली। अेक कप लेय’र झूंपड़ी रै मुंढागै पूगी अर उठै ई ऊभी होय’र बोली, “लेवौ सा चाय।”
हमीद मांयनै ढोलियै माथै बैठ्योड़ौ। साम्हीं निजर करतौ कैयौ, “लिया।” चिड़कली रा पांवडा बठैई रुपग्या।
“अरे भई, चाय ठंडी होवै है नीं।” हमीद कंवळाई सूं बोल्यौ।
वा मांय बड़ी। अेक पांवडै अळगै सूं ई कैयौ, “ल्यौ” अर कप जमीं माथै राखण सारू नीचै लुळी।
“ना-ना, हेठै ना मेल्यै।” हमीद ताचक’र ऊभौ होयग्यौ, “रेतौ पड़ जावैला।...ला, म्हनैं दै।”
हमीद हाथ लांबौ कर्यौ। कप लियोड़ौ हाथ वा साम्हीं कर दियौ। कप रै साथै ई हमीद उण रौ हाथ झाल लियौ।
“आ बैठ”, वो चिड़कली नैं कैवण वाळौ हौ, पण उणसूं निजर मिलतां ई वीं नैं उणरी आंख्यां सूं लाय निसरती दीसी। आंख्यां मांय रीस लपट्यां मार रैयी ही। गुलाब री पांखड्यां सरीखा होठ फड़फड़ावण लाग्या। सांस तेज चालण लागी।
हमीद तेज लाय सैंन नीं कर सक्यौ अर उणरौ पंजौ ढीलौ पड़ग्यौ। चिड़कली कप नीचै मेल्यौ। राती आंख्यां सूं उणनैं देख्यौ अर झूंपड़ी सूं बारै निसरगी। हमीद रै पसेवौ छूटग्यौ। सुन्न-सो ढोलियै माथै पड़ग्यौ।
उण में भो समायग्यौ। चिड़कली रोळौ-रण्पौ कर दियौ जणा? इण भांत री लपटां उण पैलपोत ई झेली। लुगायां घणी ई देखी, पण चिड़कली जैड़ी अेक ई नीं। वो मसखरी करै, जणां वै मजूरण्यां राजी होवै, आंख्यां मटका’र हेंसै अर उणनैं आगै रौ मारग मिळ जावै।
पण आ चिड़कली? पक्कायत वा रीस में उणरै बारै में उलट-पलट कर दियौ होवैला। मजूर कीं नीं बोलैला, पण उणां री आंख्यां में मंड्योड़ा सवालां रा पड़ूत्तर उण कनैं कठै! उणरी गंभीर साख आज रेत मांय रपटीजगी। झूंपड़ी सूं बारै निसरणै री हिम्मत कोनी होई उणरी।
चिड़कली झुंपड़ी सूं बारै आय’र कांम करण लागी। किणनैं ई कीं कोनी कैयौ, पण चै’रै माथै रीस री आडी-टेढी रेखावां साफ निगै आवै ही।
दुपारै री टेम होई जणा उणरी साथण झमकूड़ी उण कनैं आय’र कैयौ, “आव, दोपारी करां।”
“म्हनैं भूख कोनी।” वा साम्हीं ई कोनी जोयौ।
“कांई होयग्यौ भूख रै?” झमकूड़ी उणनैं ताती मींट सूं देखती पूछ्यौ।
“कैय दियो नीं, इच्छ्या कोनी।”
झमकूड़ी आगै कीं पूछै, बा दूजी दिसा में गयी परी।
पांणी री कुंडी कनैं आय’र चिड़कली दोनूं हाथां सूं पांणी लेय’र मूंढै रै छाबका दिया। माथै नैं ई भिंजोयौ। फेरूं कांचळी में ठूंस्योड़ै ओढणै रै पल्लै नैं काढ’र उणसूं मूंढौ अर माथौ पूंछ्यौ।
फेर वा बजरी माथै पालथी मार’र बैठगी। अखूण्यां पालथी रै अड़ाय’र दोनूं हथेळ्यां में आपरौ चै’रौ लियां सोचती रैयी।
मजूरी माथै आवतै आज उणरौ दूजौ ई दिन। कांम करण नै आवणौ जरूरी। घर री हालत उणसूं छांनी कोनी। ब्याव री मेंहदी हालै हाथां सूं उतरी कोनी। छव महीना ई कोनी होया ब्याव नैं। घर में मोटौ परिवार। कमाऊ उणरौ मरद। उण तौ मना करी कै रैवण दै, इंयां ई धिक जासी। दो’रौ-सो’रौ चलाय लेसां। पण उणसूं आपरै मरद री न्हासा-दौड़ी कोनी देखीजी। वो दिनूगै हाथ-गाडौ लेय’र निसरै। दिन-भर ऊन रा बोरा अेक कोटड़ी सूं दूजी कोटड़ी में न्हांखतौ रैवै। रात पड़्यां आवै जणां बैठण री ई सरधा कोनी रैवै।
पण ठेकैदारजी इंयां करसी जणां किंयां पार पड़सी। आपरै मरद नैं कैयदै जणै घणी बेजा। वो मरण-मारण नैं त्यार होय जासी। उणनैं कांम छोडा देसी अर अेकलौ घांणी रै बळद दांई सरीर तोड़तौ रैसी।
चिड़कली री आंख्यां गीली होयगी।
उण दिन पछै चिड़कली री हेंसी-मसखरी बंद होयगी। चुपचाप कांम करणौ, किण सूं ई बे-मतळब नीं बोलणौ। साथणां कणैई मजाक करती, “घरवाळौ याद आवतौ रैवै है कांई, इंयां-किंयां सूमड़ी बण्योड़ी रैवै?”
वा कीं पड़ूत्तर कोनी देवती।
चलवौंजी ई उणसूं घणा आकरा कोनी बोलता। कांई बोलै, वा बिना बिसांई कांम करती रैवती, कांम में माठाई करै जणै मौकौ मिळै वां नैं कीं कैवण रौ।
हमीद दस बजतां ई माची माथै आय’र बैठ जावै। बैठौ-बैठौ सिगरेट फूंकतौ रैवै। दो-च्यार बार घूम’र कांम रौ जायजौ लेवै, कणैई झुंपड़ी में जाय’र विसरांम करलै। उण आ सोच’र नेहचौ करियौ कै चिड़कली किणनैं ई कीं कैयौ कोनी। कांम माथै आवण ई लागी है हालै, समै साथै खुदोखुद मजूरी रा कांण-कायदा जांण जासी। उण री निजर रैवै चिड़कली माथै ई।
नीचै लुळ’र ईंट्यां उठावती, गारै री तगारी उखणती, ओढणै रै पल्लै सूं पसेवौ पूंछती, कांदा-रोटी खावती, साथणां साम्हीं आंख्यां काढती, हथणीवाळी मंथर चाल सूं घूमती-फिरती चिड़कली अेकाअेक हमीद री निजर में थिर होय जावै।
हेंस’र उण री बात मानणवाळी छोरियां नैं वो दूजै ई दिन बिसरा देवै, पण चिड़कली री राती होयोड़ी आंख्यां वो बिसरा नीं सक्यो। रीस सूं तणीज्योड़ै चै’रै री ठौड़ वो मुळकतौ चै’रौ देखणौ चावै अर चावै कै चिड़कली आपोआप मांन जावै।
दुपारै री टैम चिड़कली अेक कीकर रै हेठै बैठी सुस्ता रैयी ही। होळै-होळै पग मेलतौ हमीद ई उण कीकर कनैं पूगग्यौ। चिड़कली खुद में रम्योड़ी। उणरै आवण री उणनैं ठाह ई को लागी नीं।
कीं छेती सूं ऊभो होय’र वो चिड़कली नैं निरखतौ रैयौ। चै’रै माथै चिंत्या अर मजबूरी री रेखावां। डावै हाथ में अेक घोचौ लियोड़ी, जिण सूं दांत कुचर रैयी ही। माथै रै होळै-सी’क थपकी देय’र हमीद उणनैं सावचेत करण री विचारी, पण हिम्मत रौ हाथ बध्यौ कोनी।
“सुस्त किंयां है चिड़कली?” मिसरी री डळी घोळतौ हमीद बोल्यौ।
वा चिमकी, जांणै बिच्छू डंक मार दियौ होवै। फुरती सूं ऊभी होवण लागी।
“बैठी रै, बैठी रै”, हमीद हाथ सूं बरजी, “म्हैं कीं कोनी करूं।”
वा सावचेत होय’र बैठगी। अबै वा घोचै सूं रेत मांय मांडणा मांडण लागगी।
“कांई होयग्यौ थारै। इंयां-किंयां सुस्त’र उदास रैवै?”
वीं पड़ूत्तर कोनी दियौ।
कीकर री फळी तोड़’र हमीद उणनैं होळै-होळै मसळी अर परियां बगावतौ कैयौ, “म्हारी नियत खोटी कोनी, पण थूं म्हनैं चोखी लागै। जिण टेम देखी, उणीं टेम म्हारै मन में थारी ठौड़ बणगी।”
“इण में म्हैं कांई करूं ठेकैदारजी”, चिड़कली संयत कोनी ही, आ बात उणरी उठती-बैठती कांचळी बताय रैयी ही।
“चोखौ लागै उणनैं हर कोई पावणौ चावै।” हमीद रौ सुर ब्होत धीमौ हौ।
“थांनैं तो म्हारौ कांम चोखौ लागणौ चाइजै, जणां ई म्हांनैं रुजगार मिळसी।”
“थूं तो साव भोळी है चिड़कली”, वो उणनैं समझावण लाग्यौ, “थूं म्हारै मन नैं कब्जै कर राख्यौ है। अेकर मन री बात राख दै। रुजगार री चिंत्या फेर रैवै ई कोनी।”
नस ऊंची कर’र वा उण साम्हीं जोयौ। कीं ताळ अेकटक देखती रैयी, फेरूं पूछ्यौ, “मन राख्यां पछै थे म्हनैं आपरै घरां लेय जासौ कांई? लुगाई बणा’र राखसौ म्हनैं?”
उण सूं बेगौ-सी’क उथळौ कोनी दिरीज्यौ। कीकर री डाळ्यां पकड़तौ-छोडतौ रैयौ। कांटौ खुबग्यौ अर आंगळी सूं खूंन निसरण लाग्यौ। आंगळी चूस’र खूंन बंद करियौ। फेर दीनता सूं हेंसण री चेस्टा करतौ बोल्यौ, “मजाक करै है कांई? थूं दूजै री लुगाई, घर मांय किंयां राख सकूं।”
“म्हैं म्हारै मरद नैं छोड’र आय जासूं। बोलौ है मंजूर? फेर थे चावौ जिंयां ई होसी।” चिड़कली री निजर उण माथै ई टिक्योड़ी ही।
हमीद रौ गळौ सूखण लाग्यौ। लिलाड़ माथै पसेवै री बूंदां चमकण लागी। उणनैं समझ नीं पड़ी कै वो आज इत्तौ अवस किंयां होयग्यौ। दूजी मजूरण्यां उण साम्हीं होठ नीं हिला सकै, पण आ तो सवालां रा इत्ता धोरा ऊभा कर दिया कै वो उण धोरां में धंसतौ ई जाय रैयौ है।
कीं ताळ चिड़कली उणनैं देखती रैयी, फेर निमळायी सुं बोली, “आप म्हारा माई-बाप हौ ठेकैदारजी! मजबूरी री मारी मजूरी माथै आवूं। थांनैं पीसां सट्टै म्हासूं ई फूठरी मिळ जासी। थांरै कांयरी कमी। थे म्हनैं बख्सौ ठेकैदारजी।”
चिड़कली हमीद रा पग झाल लिया।
हमीद झट सूं परियां होयग्यौ, “अरे, औ कांई करै?”
“थांरी चावना म्हैं पूरी कोनी कर सकूं। थांनैं म्हारौ चाम प्यारौ है, पण औ म्हारै मरद रौ है। उण माथै म्हैं आंच कोनी आवण दूं।” चिड़कली ऊभी होयगी, “अबै अठै नीं तो किणी दूजी ठौड़ कांम करसूं। म्हनैं माफ करिया ठेकैदारजी।”
वा अेकर हमीद कांनी जोयौ, फेर नीची नस करियां वहीर होयगी।
हमीद सूनौ होयग्यौ। जावती नैं देखतौ रैयौ। फेरूं खाथा-सा’क पांवडा मेल’र उणरै नेड़ै पूग्यौ अर दीनता सूं बोल्यौ, “नईं-नईं, अठैई कांम कर। थनैं म्हारी सौगंध। थनैं अठैई कांम करणौ है।... थनैं कोई कीं नीं कैवैला। किणीं चीज-वस्त री जरूत होवै तौ चलवौंजी नैं कैय दियै।”
वो चिड़कली साम्हीं देख ई नीं सक्यौ।
खाथा-खाथा पग राखतौ आपरी मोटरसाइकल कनैं पूग्यौ, किक मार’र स्टार्ट करी अर धुंवौ छोडतौ निसरग्यौ।
ढाई-तीन महीनां क्वाटरां रौ कांम चाल्यौ, पण हमीद ई कोनी आयौ चलवौंजी ई कांम देखता रैया।
कांम करती चिड़कली अेक दिन अचाणचक सोच्यौ—ठेकैदारजी आं दिनां अेकर ई नीं आया, कांई होयौ होसी वां रै... अेकर आवै तौ कित्तौ चोखौ रैवै...।