वीं रै खातै मांय सैंतीस हजार रिपिया है। कोई सत्तर साड़्यां अर नूंवै सूं नूंवै फैसन वाळी बिंद्यां रा अनाप-सनाप पत्ता। वा जांणै है कै गाडी मांय रिजरवेसन किंयां होवै अर अेकली लुगाई बस मांय सफर किंयां कर् या करै। वीं रै घर मांय वीडियोकोन री वासिंग मसीन सूं लेय’र विस्पर रा नैपकिन तांई सै चीजां है। वा लक्स सूं न्हावै अर सोंवती टेम झीणै लाल रंग री मैक्सी पै’रै। वींनैं मुळक’र बात करणी आवै अर कदै-कदास डेबोनियर रा बरका देख धणी साथै राजी ई होवै। वा अेक भणी-गुणी, नौकरीपेसा लुगाई—सच्चा अरथां मांय वा नारी स्वतंत्रता री बांनगी है, इंयां वीं री पड़ोसणां समझै अर वींनैं देख-देख’र आपरै घरआळै नैं कोसै।
“ना ओ बैनजी, थांरौ कांई जवाब। थे तो नौकरी करौ...स्सौ कीं कर सकौ, म्हारौ के, म्हे तौ बोझ हां धरती पर।” सुण’र वा राजी होवै अर वांनैं बिठा’र सरबत पावै। पण असल मांय कांई वा राजी है?
जे है तौ फेर आज सिंझ्या री बगत चुपचपाती बैठी कांई सोचै है? वीं रौ छोरौ चंकी गूं-गूं करतौ खिलौणां साथै खेलै है...अर वा खुद अबार वीसीआर बंद कर’र बालकोनी मांय आय’र बैठी है। सिंझ्या जमां’ई उदास है।
अेक जणौ आपरी लुगाई अर टाबरां साथै पैड़्यां रै गेट साम्हीं ऊभौ है अर बारै लाग्योड़ी नेम-प्लेट जोवै, “सतीस सरमा/ओ. अेन.जी.सी.। ऊभौ आदमी सारलै मकांन सूं नाड़ काढती अेक लुगाई नैं पूछणौ चावै, इत्तै मांय बालकोनी सूं आवाज आवै, “अरे! आवौ नीं। म्हैं तौ कद सूं आप लोगां रौ इंतजार करै ही।”
सगळा ऊपर नाड़ ऊंचा’र आंख्यां मीचता-सा राजी होवै अर ऊपर चाल पड़ै।
औ ड्राइंग-रूम है...
अेक कूंणै मांय रंगीन टीवी, जिणरै स्टैंड मांय नीचै वीसीआर पड़्यौ है। टीवी रै ऊपरलै छेड़ै दो-तीन वीडियौ कैसट पड़ी है। बाड़मेरी डिजाइन रै सोफासैट पर लीलै सलीन री गोळ-गोळ गायां। सेंटर टेबल रै नीचै फर्स पर जैसलमेरी डिजाइन रौ मुंहगौ कालीन बिछा राख्यौ। पूरौ कमरौ इंयां लागै जिंयां मंच पर ड्रामै रौ सैट लगा राख्यौ होवै अर बस, कलाकारां रौ आवणौ बाकी होवै।
अर अै ल्यौ... कलाकार ई आयग्या।
बालकोनी सूं आपरै मेहमानां नैं देख’र सरोज ऊभी होयी अर भाज’र बारणौ खोल्यौ। आदमी वींनैं देख’र मुळक्यौ। आदमी रै साथै लुगाई इंच-दो इंच होठ इंयां खोल्या जांणै वा ई मुळकी है। गोदी आळौ टाबर सरोज नैं देख’र आपरै बोखै मूंढै सूं अैं... अैं... कर’र हांसण लाग्यौ। जिकौ आपरी मां री आंगळी झाल’र ऊभौ हो, वो अबै आंगळी छोड’र साड़ी रै चिपग्यौ। सरोज बोली, “आवौ नीं भाई सा’ब। म्हैं कित्ती देर सूं आप लोगां रौ इंतजार करै ही। ओहो... नमस्कार भाभीजी, आवौ... आवौ।”
चलौ ठीक होयौ। सरोज नैं घणौ इंतजार कोनी करणौ पड़्यौ। वै सगळा मांयनै आयग्या। अबै आयग्या तौ फेर बैठण मांय के हरज है। सगळा सोफा माथै बैठग्या। सरोज दिवांन अेक कूंणै ऊपर बैठ’र आंगळ्यां री कांगसी-सी बणाई अर बोली, “कोई तकलीफ तौ कोनी होयी घर ढूंढण मांय...?”
“ना-ना, इस्सी कांई बात ही, अजै सै’र इत्तौ बडौ कोनी होयौ है।”
सरोज जांणै आदमी री बात सुणी ई कोनी अर वीं सूं पैलां ई लुगाई सूं बोली, “और सुणावौ भाभी, थे किंयां हो?”
लुगाई आपरै गोडां मांय छोरै नैं दाब’र बैठी ही। सुणतां ई सिर रौ पल्लौ ठीक कर् यौ अर आपरै भरतार कांनी देख’र बोली, “ठीक ई हूं...।” अर वीं नैं सरम आयगी।
वो सगळां रौ ध्यांन आपरै कांनी खींचतौ बोल्यौ, “क्यूं बैनजी, आज तो गरमी भोत ही नीं?”
बैनजी, यांनी सरोज, आदमी री लुगाई नैं तकावै ही। लुगाई सरमा’र आपरै सज्जै हाथ रै अंगुठै अर बांडी आंगळी सूं होठ पूंछण लागी। आदमी नैं आ इज बाल पसंद कोनी वीं री, पण अब इलाज ई कांई, उण वीं कांनी सूं ध्यांन हटायौ अर छोरै नैं हड़कायौ, “ना बेटा! वीं मांय बिल्ली है, खा ज्यावैली।”
सगळा परनै देखण लाग्या। छोरौ आपरी मां रै गोडां सूं निकळ’र टीवी मांय आंगळी मारै हौ। सरोज दीवांन सूं ऊठी अर प्यार सूं छोरै रै गालां पर हाथ फेरती बोली, “ना बेटा, ईंनै कोनी छेड़्या करै। थम, थंनैं म्हैं खिलौणां ल्या’र देऊं।” कमरै सूं जावती-जावती बा सैल्फ रै ऊपर राख्योड़ौ टेपरिकार्डर ओन करगी। झटकै सूं जगजीत सिंह गावण लाग्यौ, “तो फिर दूर तलक जाएगी... बात निकलेगी तो फिर दूर तलक...”, सरोज रै कमरै सूं बारै निकळतां आदमी खड़्यौ होय’र टेपरिकार्डर नैं देखण लाग्यौ। फिलिप्स रौ मोटोड़ौ टेपरिकार्डर! उण आपरी लुगाई कांनी देख्यौ, लुगाई इंयां मूंढौ बिचकायौ जांणै कैवती होवै कै म्हैं इस्सी जग्यां पादू ई कोनी।
आदमी लुगाई री इण हरकत ऊपर कीं कैवण आळौ हौ, कै इत्तै मांय सरोज दोनूं हाथां मांय मोकळा खिलौणा लेय’र आयगी, “ल्यौ बेटाजी... आंरै साथै खेलौ।” अर सगळा खिलौणा फर्स पर मे’ल दिया।
लियो री ट्रेन, लियो री गन... लियो कंपनी रौ स्यौ रूम है। आदमी पाछौ सोफै माथै आय’र बैठग्यौ। सरोज ट्रेन सूं ट्रक जोड़ती थकी छोरै नैं पूछै, “बेटा, नांव कांई है थारौ?”
“द...ली...प... है म्हारौ नांव...।” छोरौ जित्ता बंट खा सकै हो, खाय’र बोल्यौ। इत्तै मांय सरोज रौ छोरौ आंख्यां मसळतौ मांयनै आयौ। सरोज मुड़’र बीं कांनी देख्यौ अर बोली, “आओ चंकी। देखो, तुम्हारे फ्रेंड आए हैं।” कैवती-कैवती सरोज ऊभी हुयी अर दलीप री मां नैं देख’र बोली, “कांई बताऊं बैनजी। भोत ई अळबादी है चंकी। सारौ दिन छोड़खांनी करतौ रैवै।”
चंकी, मां रौ लाडेसर बेटौ कम अर विग्यापन रौ मोडल ज्यादा लागै हौ। दलीप री मां जिंयां वीं रै सुर मांय सुर मिळावै, “टाबरां रौ तौ कांम ई बैनजी अळबाद है। अब म्हारै दलीप नैं देखौ, मन्नैं तो रूआ’र छोडै कई बार।” दलीप री मां यूं कैयौ ज्यूं अळबादी होवणौ घणी आछी बात होवै। इत्तै मांय दलीप अर चंकी बिचै खींचतांण सरू होयगी। सरोज आपरै छोरै नैं आदेस-सो दियौ, “नो चंकी, भैया को दे दो, नहीं तो शाम को जेम्स नहीं मिलेंगे।” आपरी मम्मी री डांट सुण’र चंकी कच्चौ पड़ग्यौ। इत्तै मांय अेक मुस्टंड-सो छोरौ ट्रे मांय गिलास मेल’र मांयनै आयौ। वो ट्रे मेज ऊपर राख’र मुड़ण लाग्यौ तौ सरोज बोली, “बेटे, ऐसा कर... थोड़ी चाय बना ला।”
“नीं बैनजी! चाय तौ बस अबार पीय’र आया हां। बस, अब तौ चालस्यां।”
“इस्सी कांई उतावळ है भाई सा’ब? आज थे पैली बार आया हो। ना-ना, बेटा सेरू। चाय ले आ।”
“नीं बैनजी। चाय री रमांण ना करौ।” अबकै दलीप री मां बोली।
“रमांण री कांई बात है। चाय तौ सेरू बणासी। आपां नैं तौ पीवणी है।”
“आ बात तौ ठीक, पण फेर कणा’ई सई। आज तौ म्हनैं ई जाय’र अेक जरूरी कांम करणौ है। औ तौ थां सूं वादौ कर् योड़ौ हो... इण खातर आवणौ पड़्यौ, नीं तो आप जांणौ... टेम आजकल है कठै?” कैवतौ-कैवतौ आदमी ऊभौ होयग्यौ। लुगायी ई। सरोज थोड़ी कच्ची-सी पड़गी। सगळा मेनगेट कांनी चाल्या ई हा कै चंकी जोर सूं चिरळी मारी। सगळा जणां देख्यौ कै दलीप चंकी री ट्रेन रौ अेक डब्बौ मुट्ठी मांय दाब राख्यौ हौ। आदमी आपरी आवाज नैं कस’र बोल्यौ, “दलीपिया। भाई रौ खिलौणौ पाछौ देवै’क नीं। अेक मांरूंला कांन ऊपर....” अर दलीप खिलोणौ पाछौ देय दियौ। आदमी हाथ जोड़’र बोल्यौ, “अच्छ्या बैनजी, चालां। थे ई जरूर आया कणांई।”
“हां-हां, जरूर आऊंली। बस, चंकी रा पापाजी थोड़ा बीजी रैवै।”
“अरे हां। वांरै बारै मांय तौ म्हैं पूछणौ ई भूलग्यौ। कठै है वै आज?”
“वै तौ भाई सा’ब, महीनै मांय दस दिन टूर पर ई रैवै। आज आवणौ हौ, देखां रात तांई आ ज्यावै तौ...।”
बातां करता-करता सगळा नीचै आयग्या। अेकर फेरूं सगळां री रामा-स्यामा होयी अर मेहमान आपरै गेलै लाग्या अर सरोज आपरै।
सरोज...। ऊमर बत्तीस, बतावै अठाइस अर लागै छत्तीस। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मांय हिस्ट्री री लेक्चरार है। घरआळौ? जिकां रै नांव री नेम-प्लेट गेट पर लागरी है, सतीसजी, ओ. अेन.जी.सी. मांय अफसर है। दोन्यां री पोस्टिंग आजकल जैसलमेर मांय है। सरोज राजस्थान री है, सतीसजी पंजाबी पंडत। गंगानगर मांय भणी-गुणी सरोज रै ब्यांव नैं दस बरस होयग्या है। जैसलमेर तीन सालां सूं है, पण कोई कंपनी कोनी। सतीसजी बारै रैवै। घर रौ कांम नौकर करै। तौ फेर ई बापड़ी सरोज कांई करै? इन्नै सरोज रै इस्कूल मांय नूंवौ क्लर्क आयौ। आवण सूं पैलां ई वीं रा चरचा होवण लाग्या हा अर होवणा ई हा, क्यूंकै औ क्लर्क गंगानगर सूं बतौर पनिसमेंट जैसलमेर आयौ है। गंगानगर रौ नांव सुणतां ई सरोज रै पांख्यां लागगी। परदेस मांय आपरै देस रौ कुत्तौ ई प्यारौ लागै—कांनचंदजी तो फेर ई क्लर्क हौ। ज्वाइन कर् यां फेर तीजै ई दिन सरोज कांनचंदजी नैं घरै आवणै रौ नूंतौ देय दियौ। टाबरां सूं लेय’र सब्जी बेचण आळी बायां तकात सूं हिंदी बोलण आळी सरोज आज प्यार सूं आपरै इलाकै री राजस्थांनी बोलै ही... पण कांनचंदजी रै गयां पछै वीं रौ मूंढौ देखण आळौ लागै, जांणै वींनैं इण मुलाकात मांय मजौ आयौ। बिंयां तो इण बात रा केई कारण होय सकै है, पण असल कारण वींरी उदासी है। वा उदास क्यूं है, इतरौ पतौ तौ बाद मांय लगास्यां, पण आवौ पैलां कांनचंदजी रै लारै-लारै वांरै घरै चालां... आंवती टेम रास्तै मांय खरीदी सब्जी रौ ठूमौ अेक कांनी नांख’र कांनचंद गोदी सूं टाबर नैं उतार’र माथै पर लिटा दियौ। कांनचंद री लुगाई रौ नांव, गांव मांय तो पेमली हौ, पण कांनचंद ब्यांव पछै वींनैं पेमा-पेमा कैवण लागग्यौ। तौ आवतां ई पेमा सीधी न्हाणघर मांय बड़ी अर हाथ-मूंढौ धोवण लागी। कांनचंद बूंट खोलतौ-खोलतौ बोल्यौ, “लै, आपणै थोड़ी चाय तौ करलै।”
“वो तौ म्हनैं ठा हौ। म्हैं ई आ इज सोचै ही।” तोलियै सूं पांणी पूंछती पेमा बोली।
अेक कमरै रौ घर...। औ इज बैडरूम अर औ इज रसोईघर। तिल्लै सूं स्टोव जगाती पेमा बोली, “आ थारी बैनजी, म्हनैं तौ टक्कै री लुगाई ई कोनी लागी।”
“म्हारी बटी किसी बैनजी है? इस्कूल मांय पढावै सागै अर बियां ई अब आपां नैं साल-दो साल तौ अठै काटणा ई पड़सी। आपणै जिलै री है, कांम ई आसी।”
“आ लिया कांम। इसी रांडां कदै कांम आया करै? म्हनैं तो वींरी सकल ई चोखी नीं लागी।” पेमा पांणी मांय चाय पत्ती नांखती बोली।
“देख, अेक तौ तूं है नीं, बोलणौ सीखलै। इंयां ई बैं-बैं ना कर्या कर। अगली लेक्चरार है। रिपिया हजार पंदरै गेरै है घरे, समझी।” कांनचंद दलीप री पैंट खोलतौ बोल्यौ।
चाय उबाळौ खावण लागगी। पेमा दूध गेर दियौ। दलीप बठैई पिसाब कर दियौ, “ओय! औ कांई करै है? बारै कोनी कर सकै तूं। अब कोई टाबर है तूं?” छोरौ आपरै पापा री डांट सुण’र नखरा करै। अू...अू....।
“अै सुणै है नीं...थोड़ौ पोचौ ल्यायी।” कांनचंद कैयौ, पण इत्तै मांय पेमा चाय लेय’र हाजर होयगी।
“ल्यौ।”
“आ तौ ठीक है, मे’ल दै, पण थोड़ौ पोचौ लगा... सा’ळै पिसाब कर दियौ अठै।”
पेमा चुपचाप मुड़ी अर न्हाणघर सूं पोचौ उठावण लागी। पोचौ उठावती टेम वींनैं अचाणचक ई याद आवै... अेक मुस्टंड छोरौ... सेरू। वा पोचौ लगावती बोली, “हैं ओ, वो सेरू वीं रौ के लागै जी?”
“के, के लागै। नौकर है घर रौ...।” कैय’र कांनचंद चाय पीवण लागग्यौ अर पेमा धरती पर पलाथी मार’र बैठी कांई ठा के सौचण लागगी कै वीं री चाय ठंडी होवण लागगी। अचाणचक ई वा बोली, “अेक बात तो है बटी नौकरी आळी लुगायां मौज तौ करै...।”
पेमा री बात सुण’र कांनचंद केई ताळ वींरौ मूंढौ जोवतौ रैयौ। पण कांई साच्याणी नौकरी आळी लुगायां रै मौज है?
देर किण बात री है, आवौ पाछा सरोज कनैं चालां।
कांनचंद अर वीं है परिवार नैं विदा कर’र सरोज ऊपर आयी अर फटाफट सगळा खिलौणा पाछा डब्बै मांय पैक करण लागगी। चंकी देख’र रोयौ। सरोज ध्यांन कोनी दियौ अर बोली, “नो बेट, अब टॉयज नहीं। चलो, होमवर्क करो। आज पापा आने वाले हैं, पिटाई करेंगे हां, सेरू! ओ सेरू... देखना बेटे, चंकी के पापा के लिए आटा लगा देना। रोटी उनके आने के बाद बनाना...।” कैवती-कैवती सरोज फेरूं उदास होय ज्यावै। चंकी चुपचपातौ होमवर्क करण लागग्यौ। सरोज केई देर तौ वींनैं पढायौ अर पछै कोई फिलमी पत्रिका रा पांना पळटण लागगी। पांना पळटती-पळटती वा सोचै, “जे आज ई वै नीं आया तौ फारम किंयां भरूंली? कांई मतळब होयौ, कैय’र जावै दो दिनां रौ अर लगावै नौ। अबै वां रौ के, वै तो आपरौ टेम पास कर लेवै, पण म्हैं के करूं? अेक मौकौ आयौ हौ हाथ मांय, वो ई निकळ जासी। अर इंयां सोचतां-सोचतां सरोज रै मुळकतै रैवण आळै मूंढै पर तणाव आयग्यौ।
बात है ई तणाव आळी। भई दिन तौ चलौ ठीक है, इस्कूल मांय निकळ ज्यावै, पण सिंझ्या नैं सरोज के करै। जैसलमेर अैड़ौ सै’र कै अठै हर आदमी आप मांय रमै। च्यारूं पासै गोरां लारै भाजता लोग... अब बतावौ, जे सरोज कोई दूजौ कांम साथै-साथै करणौ चावै तौ बुरौ के है?
बुरी आ बात कोनी कै सरोज औ कांम कोनी कर सकै, कर सकै, पण चंकी रै पापा सूं पूछ्यां बगैर कोनी कर सकै। चंकी रा पापा सरोज नैं आज तांई कदैई मनां नीं कर् यौ, पण... पण हां, पण सरोज कोई नूंवौ कांम, कोई नूंवी खरीद चंकी रै पापा नैं बता’र ई करै। इस्यै माहौल मांय सरोज नैं अेक नूंवौ रस्तौ मिलण सारू त्यार है, पण बात आ है कै जैसलमेर मांय नूंवौ रेडियौ टेसण खुल्यौ है। रेडियौ आळा नैं केजुअल अेनाउंसर चाइजै। रेडियौ रै अेक अफसर री छोरी इस्कूल मांय पढै, उण सरोज नैं कैयौ, “मैडम, आपकी आवाज तो अच्छी है। आप भरें यह फार्म। इससे आपके शौक भी पूरे होंगे और महीने में हजार-पांच सौ की इन्कम भी होगी। ऑडिशन में आप चिंता न करें।”
सरोज नैं ऑडिसन री चिंता कोनी। वीं री चिंता तो आ है कै काल फारम भरणै री लास्ट डेट है अर चंकी रा पापा अजै तांई आया कोनी। वा नाड़ उठा’र घड़ी देखै, साढी नौ! अेक लंबौ सांस लेय’र वा ऊभी होवै अर वठै सूं ई बोलै, “सेरू... अब किचन का काम संभाल ले। बर्तन सुबह कर लेना। तू भी आज लेट हो गया होगा। खाना खाकर चले जाना।”
रसोई सूं सेरू री कोई आवाज कोनी आवै। सरोज ई बिचाळै पैली बार आपरै लाडेसर चंकी नैं देखै। वो बापड़ौ होमवर्क करतौ करतौ ई सोयग्यौ। सरोज रै मन मांय ममता री लै’र-सी ऊठी अर वा चंकी नैं उठा’र बैड पर लिटा दियौ। साथै खुद ई निढाळ होय’र पड़गी। खुली आंख्यां सूं वा भींतघड़ी मांय बैठी चिड़ी नैं जोवै, जिकी हर घंटै पछै घड़ी मांय फिट छोटै-सै घर रौ आडौ खोल’र चर-चर करै अर पाछी मांय बड़ ज्यावै। आ घड़ी चंकी रा पापा सिमलै सूं ल्याया हा... सरोज फेरूं चंकी रै पापा नैं याद करण लागगी अर वीं रौ मन जांणै रोवण लागग्यौ। अबै बतावौ, के कमी है वीं रै, जकौ वा इंयां उदास बैठी है। बैठी के है, ल्यौ वींनैं तौ नींद ई आवण लागगी। बापड़ी दिन-भर री थक्योड़ी भूखी ई सोयगी।
रसोई सूं सेरू री आवाज आवै, “दीदी! मैं जा रहा हूं। दरवाजा बंद कर लेना।” चमक’र आंख्यां खोलै, घड़ी री चिड़कली मूंढौ बारै काढ’र चर-चर कर’र पाछी बड़ ज्यावै। सरोज टेम देखै अर देख’र गोडां ऊपर हाथ मेल’र ऊभी हुवै अर आडौ बंद करण चाल पड़ै।