रोजीना री भांत भींत उपरांकर फेंक्योड़ो अखबार नाड़ कट्यै मुरगलै दांई फड़फड़ावतो म्हारै सिराणै आय’र मांची रै पागै माथै बाज्यो फड़ाक देणी। म्हनै लाग्यो, म्हारो मुंह लोही रै छींटां सूं ल्याड़ीजग्यो। म्हैं सिराणै पड़्यो लोटो चक’र मुंह पर ठंडै पाणी रा छाबका मार्‌या। पछै पोतियै रै पल्लै सूं मुंह पूंछ्यो। सैल बैठ्योड़ी बैटरी री भांत अळसायोड़ी दीठ मांची रै चौगड़दै फेंकी। इणी दौरान तळै पड़्यो अखबार आंख्यां रै गुळदळियै री रेंज मांय आयो। म्हनै लाग्यो, नाड़ कट्यो मुरगलो नीं मिनख री धड़ पड़ी है, जकी नै कोई भींत उपरांकर फेंकग्यो है।

म्हारै काळजै खरणाटो पाट्यो। म्हैं खुद नै संभाळ्यो। डील पर हाथ फेर्‌यो तो ठाह लाग्यो, गरदन गायब है। दोनूं पग कोनी। पछै आपसरी में संभाळता दोनूं हाथ झड़ग्या। म्हैं अेकदम धड़ मांय तब्दील होग्यो। मांची पर बैठी जीवती धड़ मांय, जकी अेकटक साम्हीं पड़ी धड़ नै जोवै। म्हारो जीव हालग्यो।

म्हैं खुद नै मुकमल पावण री कोसीस में म्हारी आखी ऊरजा भेळी कर’र मांची माथै उछळ्यो। इणरै साथै म्हानै ठाह लाग्यो कै म्हारै दो पग, दो हाथ, अर नाड़ है तो सरी। बो तो खाली म्हारो बैम हो। म्हैं देख्यो, साम्हीं पड़ी धड़, धड़ रै दस्तावेज मांय बदळगी। म्हैं लंफ’र सोळै पेजां रो खूनी दस्तावेज उठायो। फ्रंट पेज माथै चित्र समेत दोय खबरां। काळजो फाड़ती खबरां। डावै पासै दिल्ली रै जंतर-मंतर रै कैनवास पर गळ में पोतियै रो फंदो घाल दरखत सूं लटकतो दौसा (राजस्थान) रो किसान गजेंद्र। अर ठीक साम्हीं मंच माथै किसान रैली नै संबोधित करतो दिल्ली रो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। चित्र में गजेंद्र अर केजरीवाल रै बिचाळै रै गैप नै सबदां सूं भरण री कोसीस करीजी है पण छोटो दिखण वाळो गैप इतो बडो है कै इण मांय आखो ब्रह्मांड समा सकै। खाली सबदां सूं नीं पाटीज सकै गैप। जुगां सोयोड़ै ज्वालामुखी रै लावै सूं ईज पाट सकै गैप। आज म्हनै उडीक है उण ज्वालामुखी री। इण सारू म्हैं दरखत पर चढ्यै गजेंद्र नै ताळी पीट-पीट आतमहत्या सारू उकसावती नेतावां, पुलिसियां, महानगरीय संभ्रांत नागरिकां अर मीडियाकर्मियां री तमासबीन हिंजड़ा भीड़ नै चरित्रहीणता रै किणी वरग मांय लेय’र म्हारै व्हालै सबदां री तोहीन नीं करणी चावूं। फगत इत्तो कैवणो चावूं कै बै जीवता रैवै माखियां रै भाग रा।

स्पेन में अेक खतरनाक खेल है, जकै में च्यारदीवारी रै घेरै मांय खिलाड़ी अेक भयानक सांड सूं लड़ै। पैलपोत तो लाल गाबो दिखाय’र उणनै चिंगरायो जावै। जद बो अैन भाभड़ाभूत होय ज्यावै तद सरू होवै उण साथै घोळ। ऊंची निरवाळी च्यारदिवारी पर बैठ्या दरसक जीवण-मौत रै इण भयानक जुद्ध नै देख’र कांप ज्यावै। अर इण दौरान खिलाड़ी रै जीवण री दुआ करै। इण खेल नै देखण सारू सीनै में सेर रो दिल चाइज्यै। नीं तो हार्टफेल हो सकै। खेल भोत यातना अर जोखम भर्‌यो है। जीत रो अरथ जीवण अर हार रो अरथ मौत। पण जीत जे पर है, ना पर कोनी। दुनिया रा लोग इण खेल नै सै सूं खतरनाक अर ज्यानलेवा मानै। पण म्हनै आरे कोनी। क्यूंकै इणसूं घणो यातना भर्‌यो, जोखम भर्‌यो अर आदमखोर खेल म्हैं देख्यो है मेरै मुलक में, जकै में मौत तो है है, पण जीत री रत्ती-भर गुंजाइस कोनी। सौ परसेंट हार तै है। अर अचंभो कै लाखूं पीढियां रै इण हिंसक खेल री बलि चढ ज्यावणै रै पछै बां रो वारिस आज उण खतरनाक सांड सूं खूंडी अड़ायां ऊभो है। जाणतै थकां कै मौत पक्की है, बो इण सांड साथै घुळतो रैवै। अर दूजो अचंभो कै स्पेन रै सांड-जुद्ध रै दरसकां री भांत इण सांड-जुद्ध रा दरसक घबरायोड़ा अर हाल्योड़ा तो दर कोनी। उल्टा चौभींतै माथै बैठ्या आखा दरसक तमासबीन है। नाचता-गावता, हांसता अर ताळी बजावता खेल रो आणंद लूटै। खिलाड़ी रै बैवतै खून मांय गुच्ची मारै। कई दारू पीय’र झूमै। अठै तो पूरो माहोल जसन रो है।

गजेंद्र इणी खेल रो अेक खिलाड़ी है, जको सांड सूं जुद्ध करतो मार्‌यो गयो। पुलिस ही। नेता हा। पत्रकार हा। पब्लिक ही। सगळां ताळी बजा-बजा हौसलै थकां इण खेल रो मजो लूट्यो। लाल गाबो लहरा-लहरा सांड नै खूब चिंगरायो। जद लड़तो-लड़तो खिलाड़ी मरग्यो तो उणनै बेकार नीं जावण दियो। बा जगां हाडारोड़ी मांय तब्दील होगी। आखा राजनीतिक कांवळा आपस मांय झपटतै थकां उणरी ल्हास माथै टूट पड़्या। देखतां-देखतां पूरी ल्हास नै तार-तार खिंडा नाखी। जित्तो जिणरै पल्लै पड़्यो, लेय उड्यो अर आपरै आलणै में जाय’र इतमिनान सूं बैठग्यो। किणी रो हार्टफेल नीं होयो।

अब दूजी खबर री खबर। अखबार रै सज्जै पासै हनुमानगढ़ जिलै रै गोलूवाळै गांव रो अेक खेत। खेत रो अेक बेजां कारूणिक चित्राम है, जिणनै देख्यां हीयो फाटै। किरसै री हार रो इण सूं खतरनाक चित्र दुरलभ है। इण चित्र मांय खेत री डोळी पर माथो पकड़्यां गुमसुम बैठ्यो रामरख, खुद रै हाथां बायोड़ी खेती नै लुटीजतां देखै। सुण्यो है, किणी जुग में धन्नो भगत होयो हो जको आपरी खेती लुटांवतो। पण लुटावणै अर लुटीजणै मांय भोत फरक है। अर फेर रामरख तो रामरख हो, धन्नो कोनी हो बो। पण बेबसी रै हाथां धन्नो बणग्यो। फिलहाल हालात अैड़ा है कै रामरख खुद री मरजी रै खिलाफ ऊभो होय’र आप री दस बीघा आलुवां री पाक्योड़ी खेती लुटावण सारू मजबूर है अर मजबूरी रो दरद मौत सूं सौ-गुणो, जको उणरी जबान फूट पड़्यो, “अैड़ी कुत्ताखाणी होया करै कदे किणी साथै। आखै इलाकै री मंडी छाण मारी। सगळां री लेलड़ी काढ ली। कण लोवै नीं लागण दियो। कूंटल आलू खरीदणा नीं कबूल्या। परगै सोनो अर अैस धूड़ होग्यो आलू। म्हारै तो करम में कांकरो है। कठै राखूं आं दगड़ां नैं?” अर इण सारू उणनै खुद री छाती पर पत्थर राख’र खुद रै मुंह सूं पड़ोसी गांवां में आलू खोद’र ल्यावणै री मुनादी करणी पड़ी। क्यूंकै आगली फसल सारू जमीन तो खाली करावणी ही।

उणी रो नतीजो है। उणरी आंख्यां साम्हीं अेक अजब नजारो है, जको उण आपरी जिनगाणी मांय पैली वळा देख्यो है। उणरै खुद रै गांव अर पड़ौसी गांवां सूं हाथां में बोरी अर कस्सी-कस्सीया थाम्यां लुगाई-टाबरां, बूढै-बडेरां अर जोध-जवान भिखतवा री अेक ठाडी रैली खुद रै लारै बातां रै घूरळियै रो कानफोड़ कारो अर आंधी सरीखो धूळ रो गुबार छोड़ती आय’र खेत में बड़ी है। देखतां-देखतां खेत साथै भीड़ रो जुद्ध सरू होग्यो। अेक अलग भांत रो जुद्ध हो, जिणनै भीड़ दोय मोरचां माथै लड़ै ही। अेक भीड़ रो भीड़ सूं जुद्ध अर दूजो भीड़ रो खेत सूं जुद्ध। भीड़ आपसरी मांय गुत्थम-गुत्था अर लोहीझराण होगी ही। आलूवां अस्त्र रो रूप धारण कर लियो हो। आपस में आलूंवा री मार सूं सिर माथै गूमड़ा बंधग्या हा, पण भीड़ पूठा नीं देवै ही। घंटा-भर में आखै खेत नै भेळ दियो। दसूं बीघां नै विधूंस कर नाख्या। अर गाळी-गळोच अर कांगारोळै साथै बां पगां पाछी आप-आपरै ठीयां कानी बहीर होगी भीड़।

रामरख जावती भीड़ रै गुबार नै जोवतो रैयो। अर पछै कुड़तियो झड़काय’र डोळी सूं खड़्यो होवतो बड़बड़ायो, “पैंडो छूट्यो। जगां तो खाली होयी दूजी फसल सारू। बापड़ी भीड़ रो भलो हुवै कै कैवणै सूं आयगी। नीं तो खुदाई रा लाखूं रिपिया जेब सूं लागता। अर पछै अेक नुवों संकट और खड़्यो हो जावतो। आं नैं गेरण रो। कठै गेरतो आं नै? जे ओखी-सोखी कठैई जगां लाध जावती तो भंडारण रो भाड़ो कड़ तोड़ देवतो। ...मुड़’र इसो गळत काम करूं तो या-त्या कराऊं।” बो झट देणी-सी कोडो होय’र तीन तलाक काढतै थकां भळै बड़बड़ायो, “पांच लाख तळै तो आं नै पकावणै पेटै आयग्यो। अब स्टोर किरायै लेय’र च्यार लाख टाट में और खायल्यूं? मेरी अक्कल में कुत्ता मूतग्या कांई? ठीक है। भलो हुवै भीड़ रो, जको बाळा-फूंको कर दियो। कढाई रा पीसा बंचग्या। फायदो कम थोड़ो है?”

इणी दौरान रामरख आलूवां री लूटीज्योड़ी बाड़ी कानी देख्यो। उणनै लाग्यो जाणै सामूहिक बलात्कार पछै कोई अबळा खुद नै संभाळली हुवै। बो लांबा-लांबा डग भरतो आपरै पड़वै में गयो अर छात में लटकती सप्रे री सीसी उतार’र मुंह रै लगाली, ‘गटड़-गटड़-गटड़।’ दूजै दिन अखबार में मौत री खबर लागगी।

म्हनै आं काळजो-फाड़ खबरां रो अचंभो नीं होयो। म्हैं हैरान हो कै इणरै पछै देस गुड्डी बरगो चालै हो। कठै कोई हलचल कोनी ही। प्रधानमंत्री बियां विदेसां में डमरा करतो फिरै हो। लोकसभा, राज्यसभा मांय बियां किचाळ काटीज्यै ही। पांच तारा होटलां मांय नाचतां रै पगां तळै बियां रोटी किचरीज्यै ही।

अचाणचक म्हारै पर अचंभै रो अेक जबरो अटैक पड़्यो। इणरै साथै म्हैं फेरूं धड़ मांय तब्दील होग्यो।

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कहाणियां ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान ,
  • संपादक : मधु आचार्य 'आशावादी' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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