जीव जलम सूं लैय मरण तांईं लगोलग जातरा इज करै। इण सारू मारग हेरै, मारग सेवै। कदैई उण नै जातरा करणी है इण सारू मारग बणावै अर कदैई उणाने अेक मारग लाध जावै इण सारू जतन करें। आज जिकौं मिनख मेड़ी माथै बेठौं है कालै इज उणनै लोग-बाग ठावौ-ठीकौ मसांण में देखें कै नीं देखै? इण सूं कीं फरक नीं पड़े! वौ कालै नीं तौ पिरसूं, पण सेवट री बाजी अेक दिहाड़ै उण घणासेंधी पर छेहली ठौड़ रै सलबै पूगैला इज पूगैला आ बात कैवण में जित्ती सोरी लागै उत्ती सोरी व्है कोनीं। सोरी-दोरी कीं व्हौ, जिणनै जूंण कैवां, उणनै तौ भोगणी इज पड़े। औ रौ औ बस रौ धारौ। आडा-अंवळा, सोरा-दोरा ज्यूं-त्यूं कर बस में बड़णौ हरेक जातरू रौं सपनौ व्है। म्हारौ ई हो। उण दिन जोधपुर जावण वाळी बस ठीक टाइम माथै पूगी। पूगी तौ देखां कांई बस खचाखच भरघोड़ी है। ऊपरातळी नीं भरघोड़ी व्है उणनै बस कुण कैवै? ओवर लोड व्हियां बिना स्यात बसां रा पैड़ा आपरी ठौड़ सूं चालता ई नैं व्हैला। मन में विचार कस्यौ, धकली बस रौ ठरकौ देखण अटै इज ढब जावां पण वा तो डोढ-घड़ी मोड़ी अटै ढुकैला। पछै अध घड़ी ठैर, पूरी दो घड़ी पूढै अठा सूं वहीर व्हैला। मोड़ा वहीर व्हिया मोड़ा इज पूगण रौ कायदौ। धकलै घरै आपरौ सासरौ तौ कोनी के लोग बाट जोवै। म्हनै म्हारै काम सूं जावणौ हौ अर टैम सर पूग्यां आपरै अेक भायलै रै अठै ठैरण री तोजी बैठावणी ही। ... अर पराये घरै बगतसर नीं पूग्यां मन रौ घिरघिराटौ ऊपर सूं। मन काठौ कर बारी सूं मांय बड़ण री हूंस दरसाई। पण आपरी हूंस सूं भीड़ नै कांई तल्लौ-मल्लौ। धकै जायगौ व्है तौ जाइजै। अेक पग वरांणौ ऊभणौ कबूल। होटल में ठैरण रा पईसा बचावणा व्है तौ सिध करणी इणीज टैम, इणीज बस सूं जरूरी। जरूरी तौ वळै ई केई बांता है, जांण आराम पण हाथ री बात नीं व्हिया करै, हर अेक ठौड़, हर अेक मिनख आपरौ मन मारै म्हें ई मारयो।
“आ सियाळै आखातीज जबरी आई? ब्याव सावा टाळ भीड़ किण विध? मेळौ - खेळौ ई जांण्यौ कोयनीं धकै किणी धरम गरू रौ चोमासौ ई नीं लागे। पछै आ भीड़ क्यूं?” अेकण सागै सगळा कंडक्टर सांम्ही उफण्या पण सै अकारथ “मिनखां री भीड़ पड़ी कठै?”
म्हें कह्यौ - “कचेड्यां, सफाखानां, सलिमां, कठै ई जावौ परा, पग़ धरण नै ठौड़ ई को मिलै नीं।” “भीड़रा वळै ई ठावा ठीका ठिया है, आप पांतरग्यां, दारू रै ठेकै साम्ही। भीड़ रौ कांई कदैई तुमार जोवणौ व्है, तौ के तौ रेलां में के जेळां में, दोनूं ठौड़ त्यार। “मन में आई के कैयदूं, पछै नेता टका काट बिरधा ई आफळ करै? पण होठां आई गिटग्यौ। मूड बिगड़ग्यो। नीठ पेंट रा लारला खूंजा सूं तमांखू काढी अर सोरी-दोरी फाकली। अेक पग नै डील रौ आवणौ बोझ संभळाय, अंगद रै परवांण ऊभग्यौ। खासी ताळ सूं ब्यावर आयौ। ओड़ौ लखायौ जांण कठै ई ब्यावर आपरौ ठायौ छांड, बस रा बेग सूं खातो-खातो धकै इणीज दिस वहीर व्हेग्यौ व्है। पण वेग नै वेग इज न्हावड़े, ज्यूं-त्यूं ब्यावर आयौ। बस खासी खाली व्हैगी। नीरांत सूं आफ विहूणी सीट हाथै आई। जांण कठैई सुरग हाथै आयौ व्है। दही ज्यूं जमग्यो। चाय-पाणी री तलब नै डाट, सुरताई सूं थेली ऊपरै जमाय सीट माथै पसरण रौ लावो लियौ।
पोथी खोल पढण रै कळाप अळूझग्यौ कद बस चाली जाच ई नीं पड़ी। आपरै टैम रा चावा कथानवीस ‘ज्विग’ री पैलड़ी कथा ‘अेक अणजांण लुगाई री पाती’ रा पैला तीन-च्यार पेज ई म्हनै अळगा आंतरै लैय ढळग्या। लखायौ, जांण म्हें नीं बस में हूं अर नीं बठै जठै बस चालै ही। म्हैं तौ राम-जांणै कित्तौ ई आंतरै... अेक असेंधा संसार में चिमक्यां मारूं। अजांण देस, अजब भेख, असेंधी बनापाति-डूंगर, सड़का, अणजांण बोली, पण बठै ई हेत-प्रीत रौ औ इज ढाळौ मिनख सांस ई अपारै परवांण लेवै, खावै- पीवँ सूवै सै कुछ मिनखां रै गुड़ै री जात पण वढै नीं अपारै अठै घुंघटा रै झीणै पड़दै जोवती लुगायां उण तरै रा सुपना ई निरख सकै अर नीं जागतां वै वांरी ठौड़ झांपण री आफळ ई करै। कैड़ी ई कीं व्हौ, पण वा दुनियां ही न्यारी- निरवाळी, म्हैं जठै पूग खुदौखुद नैं पांतर उण बाळकी वाळी कथा री गळ्यां सोकड़ मनावतो गुमग्यौ। जिकी गळ्यां वा डावड़ी स्यात ई कदैई जीवती-जागती दोड़ी व्हैला, पण ज्विग री बखड़ी में ही वा, उणरी कथा-नायका।इण सारू वा बठै इज विचरण रीओस्याळी ही, जठै वौ डाकी फेरै।
असल जातरा अठै सूं इज सरू व्है। जठै बस चालै ही, जठै पूगै ही, पण म्हैं उणसूं हजारूं हजार कोस आंतरै अेक अजांण देस रै असेंधै नगर री सड़कां अणजाण्यां दोड़ै हौ। लिखारो आपरी कथा रै तांत्या सूं म्हारौ बाहुड़ी छांडै तौ दोय घड़ी नैठाव सूं सोचूं कै म्हारी किसी जातरा सांच है? अेक जीण में म्हैं रमियोड़ी-गुम्योड़ी हूं या जठै आ बस म्हनै दोड़ती पूगावण लियां जावै? फरक करणौ अणूंतौ झीणों अर आहंजौ काम नीं व्हैतां हांतर ई घणौ सोरौ ई व्है, तौ औ फरक करै कुण? म्हँ वठै हूं तो कळाप करूं। पण अेक बात वलै जे म्हँ वठै नीं हूं तौ कठै हूं? कांई अेक अदीठ देस-काल में जिको म्हारै जलम सूं घणौ पैली हौ? कांई उण में? छिणैक सोच रै इण नवै खुड़कै पजियां म्हैं माथौ निवाय उण पोथी सूं निकळयौ अर पाधरौ जठै जिण ठौड़ बस ही वठै पूगौ।
पण इण बात रौ कांई पतियारौ के म्हारै बस में पाछौ वलियां, दूजा जातरी ई सगला इण बस में पूगग्या व्है ! बात संध्या पत्तौ पड़े के धकली सीट रै डावै पसवाड़े बैठौ आसामी कनला वकील सूं पूछताछ करै के कांई उण रै दादा रै नांववाली जमीं रौ वौ हकदार बण सकै? वौ इण तरै पूछतौ हो जांण उण सूं पैलड़ी पीढी री कमायोड़ी इण देस री आजादी में उणरी पांती ही है कांई? पूछण रा ढंग सूं सुभट पतौं पड़े कै वौ अठै मौजूद व्हैय पूछे है। पण असल में वौ अबार ठेट आपरै गांव रा मोटका तळाव रै पेटै आयोड़ा आपरै कदीमी खेत री माठ माथला लिंबड़ा री छियां बेठौ, जमीं रा मालिकाना हक रै मायावी जग में हरण-फाळां भरै हौ। कोई आपरै ओफिस में हो। कोई आपरै गांव तौ कोई आपरै घरै हौ। कोई दांनौ आपरै कोलेज केंपस में क्यारी सूं गुलाब तोड़ किणी नै सूपै हौं। कनली सीट री बारी रै पाखती बैठौ आदमी तेली हो कै नीं आ बात तौ वौ खुद जांण कै जाणै उणरी जात-बिरादरी पण ठीक अबार वौ तेल में भेळ करण री नवी तरकीब रै सागै हौ। वौ बस में कद हो? थळी रौ वौ साफाधारी धोळा- धट्ट खत वाळौ आदमी सुगाळ में हौ जिकौ कदैई उपरै बाळपणै रह्यौ व्हैला। अबार उणरी सोच में पांणी ई पांणी हौ। पण पांणी बस में कठै हौ? धकली सीट सूं लारली तीजै लंबर वाळी सीट माथै बैठ्योड़ी डावड़ी आपरै फिल्मी हीरो री हेयर स्टाइल में ही बस में नीं। वकील साब अजखुद आपरी काळी बड़ी रै काळ सींमाड़े में भंवता च्यार हित्यावां रै इलजाम वाळा फरीक नै बरी करावण रा सोच में सरकारी वकील अर डागदर सूं जिरै करता हा, वै ई कचेड़ी में हा, बस में कठै? यूं व्हैण नै किस्या नव-दस लंबर सीट माथला दोनूं छोरा, गांव सूं हथीकी सागै वहीर व्हिया हा, पण अबार इण वगत दोनूं सागै कठै हा? जे वांनै कोई ठायौँ बूझै अबार तौ सावळ बतावता दोनूं सरमीज जावै। कुंवारा व्हैतां हांतर ई वां में सूं अेक कुंवारौ अबार नीं हौ। बस में तौ किणी रा फेरा व्हिया इज कोनी? बारै- तेरै रा आंक वाळी जोड़ा री सीट माथै जिको जोड़ौ बैठौ हौ, वां दोनूं री देहां अटै सागै ही, पण वांरा मन अबार कित्ता कांई आंतरै हा? वां रै बिचली भांय नै आ बस चावै ई खरी, तौ ई आज तौ वठा लग नीं इज पूग सकै!
कंडक्टर, जालोर जिलै रा गांव में आपरै जाव में रोझड़ा लारै दोड़ै हो। नीठ खात- बीज री तोजी बिठाय करसौ नीं मिलण रै कारण खेती घरै इज बावणी पड़ी, पण रोझां रौ बिगाड़ बस में बैठ्यों कीकर रोकीजै? बस रा धकला काच मांय कर सड़क कांनी झांकता उण मोर भींज्या मोठ्यार री आंख्यां धकै बस रा वेग सूं ई खाता-खाता रोझ मलाफै दीसै। जद इज उणरै बख परबारौ उणरै होठां सूं ‘हुस्ट हुस्ट’ रौ मळमळावणौ सुभट सुणीज्यौ। टिगस काटण री गरज सूं नीचै बैठी सवारी नै बतळावतां अेकर तौ उणरै मूंडा सूं निकळग्यौ-
“अरे, रोझड़ा धूं कठै उतरसी?”
अवचेव रौ इण गत अदबदरौ सवाल सुण सवारी नै झळकी आयगी। उण खरावतां पूछ्यौ-
“कांई कह्यौ? कांई भळे बोल तौ...?” “बीरा, उतरणौ कठै है मिजाज रैं फांटै के गांव में?” कंडक्टर आपरी बात संवारी अर मुळकतौ मुळकतौ डलेवर रै केबिन में गाडी रुकावण री गरज दरसावतौ बड़ग्यौ।
सवारी बड़बड़ावती रैयगी, “बडा - मिनखां नै गरीब-गुरबा रोझड़ा दीसै कांई वगत आयौ। पईसा रा पईसा देवौ अर ऊपर सूं आंरा फतवा सुणौ।” कनै बैठा बाबूजी मिळती मारी।
“अरे, रोझां नै रोझ इज निगै आवै। इण में किसी नुवादी बात है।” “दूजां री कमाई चरणियां मिनख रोझड़ा रै आगे इज तौ व्है।” कनली डोकरी फारगती कीवी।
अबार बस में मौजूद आं तीन-च्यार जणां नै बोलण री उरळाई लाधी। पछै तौ धकला दसेक मिनट तांई रोझ पुराण बांचीज्यौ। कांई रंग रा व्है? वांरी टांगां कित्ती डीगी व्है?
रोझ गायां री नसल रा है के नीं?... चरै उण सूं बैसी बिगाड़ करै। रोझ मारणौ पाप है क्यूंकै हिन्दी में उणरै नांव में गाय सबद आवै। पछै वां नै भगावण री किसी तरकीब है। अड़वा सूं रोझड़ा डरै कै नीं, जे डरै तौ कित्ताक दिन? रोझड़ी किता बेंत ब्यावै? रोझड़ी रै दोय थण इज व्है, पछै वा गाय किण विध व्ही? अेक दिन में अेक रोझ कित्तौ खेत चरै? रात रा रोझ...।
पाछा धकला दसेक मिनट थोड़ी ताल चड़ी-चप्प व्हैगी, अर फैर पाछा वै तीनूं- च्यारूं जणां बातड़ी विलायां खुद रै मांय बड़गया। बड़तां ई वै बस सूं बारै गिया परा को करण नै नीं व्है तौ बस रा ओकरस धरराटा में ऊंघ आवण लागे। पण झेरां खावतां थकां ई वै लोग बस में कठै व्है? किणी न किणी जंजाळ में पज जावै। कांई बस ई आवगी अेक सुपनौ है? कै पछै न्यारा-न्यारा इत्ता सुपना खुल्योड़ी बारियां मां कर मांय आयगा है? इण रौ कोई निस्तारौ काढ़ण सोचण लागौ। जे कठैई आंचा आंच री गफलत में किणी धकला रौ सुपनौ लारला री नींद में बड़जा तो कांई दीन व्है? सपना ई जातरा करै? जातरा में जातरा, जातरा में जातरा! किसी पैली पूरी व्है? कीकर पूरी व्है? इण रा खोज कुण काढै?
म्हैं ई सोचतौ-सोचतौ कायौ होय ‘ज्विग’ री पोथी रा पागोतिया उतरण लागौ। पाछौं ठेट वठै पूगौ जठा सूं थोड़ी ताल पैली आयो हौ। कथा-नायका कागद मांडती दांण आपरै मन नै कांदा रा छूतरा उतारण माफक पुड़त-दर-पुड़त खोलै ही। सगळी पुड़तां उघड्यां मांय कीं बचैला कै नीं इण घांणमथोळ में कद चूक्यौ कै जाच ई नीं पड़ी अर मन पाधरौ फरूकाबाद जाय पूगौ। म्हनै म्हारी आंख्यां सांम्ळी पोथी रा आखरां रै गलियारै अेक बंगलौ दीस्यौ। ‘ज्विग’ री कथा वाळा बंगला सूं अकदम न्यारौ। पण म्हें कद देख्यौ है इणनै। म्हैं तो अजतांणी दिल्ली सूं धकै ई नीं गियौ। लखायौ, जांणै सांप्रत वा बरसाळी रा थांबा रै टेकौ लेय ऊभी है। आंख्यां रोय-रोय राती व्हियोड़ी अर अजतांणी डबडब भर्योड़ी। पण आ नायका तौ कथा नायका सूं साव न्यारी। पाखती धणी ऊभौ घसळां करै अर टाबरिया पसवाड़े ऊभा बिलखै। उणा री आंख्यां रा पांणी में हिलती अेक छिब है, म्हारै उणियार हूबहू म्हारौ ई नाक-नक्स, रंग-रूप, डिगाई सगळी म्हारी! म्हें कथा री ओळ्यां बिचाळै हूं कै आ ओळयां रै परताप अठा सूं आंतरै किणी अजांण स्हैर फरूकाबाद में? पण बस तौ जोधांणै जावै। म्हानै ई लेयर जावै है। औ कांई अड्दू व्हियौ?
मन रा घोड़ा पायगां सूं छूटतां ई धकै पड़ै उण दिस दड़ा-छंट दौड़े। आ कैणावत कूड़ी। असल में औ मन रा रोझड़ा है जिका छूटा इज चरै, छूटा इज दौड़ै अर छूटा इज बिगाड़ करै। कोई मांणस कदैई आपरै हिवड़े रा निवास सूं आपनै गरमास पूगाई, आप उणरै पांण पांगरिया, कवि लिखारा बणग्या पछै इण विणास रा अमंगळ सूं अठै अबार कांई तल्लौ-मल्लौ? रोझड़ा तौ हरमेस, हां ऊपखाड़े सूं इज बड़े। म्हँ ई मन रै लगाम दीवी। अबै मंगळ-अमंगळ रौ ख्याल आवणौ ई खोटो, कठै न कठै थारा तप में खांमी है। औ जंजाळ दोय- च्यार मिनट कांई मन बिलमावण आयौ। नीं... नीं, आ सूगली तोजी तौ खुद म्हारै इज मन बैठाई है। ...कित्ता कांई रोझड़ा आपरी अयाल ऊंचाया हरेक जीव में चापळयौड़ा ताखड़ा तौड़े। परायै सुख में बख लागतां ई मूंडौ मारण उतावळा। औं रोझ नित्त-रोज पराई कमाई, पराई साखां माथै इज क्यूं ताचकै? खाली पेटा भराई, आपरी निरांत, आपरै सुख रै कारण? परतख नीं तो सुपना रै मिस, विचार करै मिस क्यूं अठी-उठी धंसे औ रोझ? रोझ है तौ साखां में बिगाड़ व्हैला अर साखां है तौ रोझड़ा ई आवैला। आं मांय सूं किसी बात सिरै? कांई रोझ विहूणी वनी, खेत-खळा कदैई व्हैला?
घणौ ई माथौ पचायौ, कीं उकरास नीं लाधौ। म्हें सीट माथै बैठौ-बैठौ परसेवा में घांण व्है जावूं। जांणै बळबळती लूवां रै झपाटै उन्हाळा री घा-दोपार कोई रोझ न्हाटतौ-न्हाटतौ हांण-फांण व्हेग्यौ व्है। म्हनै चांणचक ध्यांन आयौ म्हैं ई रोझ हूं। पछै तो बस में जिण कांनी निजर पड़ी, डलेवर सूं लगाय लारली चवांळीस लंबर वाळी सीट माथै बैठौ अकूकौ मिनख रोझ ही...।
आ बस रोझां सूं भरी है। बस भरी है तौ दुनियां रौ ई औ इज व्हैला तौ व्हैला, पण पछै आ जातरा कांई है? फगत रोझड़ां रौ म लाफणौ रोझड़ा रै कठै जावणौ व्है, इण खेत नै निवेड्यां धकला कांनी अर जे कठै खेत रा रूखाळा करसौ ऊभौ भूटकार चिमकावै तौ धकलै खेत लगौलग औ दोड़णौ जातरा कोनीं? ...आ भागमभाग है फगत ! बस कद जोधांणे पूग ढबी, कीं ठा नीं पड़ी। सगळा दूजा जातरूवां रै आगै म्हैं ई हळफळाय ऊभौ व्हियौ,नीचै उतर्यौ अर जोधांणै रा रोझड़ां बिचाळै भिलग्यौ।नवीं कांकड़ री सोध में। ज्विग री पीड़ ज्विग जाणे।