सुरसत गणपत दे सुमत, करता सिव किरणाळ।

सुकव इता आराध स्वर, रूपग रचूं झमाळ॥

अमर सलावत मारियौ, अणियाळी उर पोय।

साहजहां अंबखास विच, जा कहियौ रंग जोय॥

जो कहियौ रंग जोय, अमर जद ईखिया।

उर हूंता ऊतार, अपपत्त धिख्खिया॥

सनमुख विढ़ण विचार, तेग नह साहिया।

उरजुण पूठै आय, गौड़ खग वाहिया॥

दिखण धरा भागौ दुगम, लड़ नागौ बल्लाल।

असी हजारां ऊपरै, त्रहीया जैत त्रंवाल॥

त्रहीया जैत त्रंबाळ, लंकाळ गरज्जिया।

दिखणी दळ गैजूह, साह बळ भंजिया॥

गरब सहजादां त्रहुं, तणा रण गाळिया।

रासै सूजै रहचि, बिरद उजवाळिया॥

मोहकम थाणें मेड़तै, ऊदै भेद उपाय।

दौड़ाणै जालोर दिस, मिल उरजन पिण मांय॥

मिल उरजण पिण मांय, मौहक्कम आंणिया।

अनड़ा पैठा अजिन, चकू पहचाणिया॥

कर जालोर मुकाम, दिसां चहूं पड़ दहळ।

डांणां चूका सींह, जहीं घीरियौ दूझळ॥

घस फौजां चढि़ घत्तिया चैरंग अण चालांह।

खळ केतां जरदां खंवां भळकंतां भालांह॥

भळकंतां भालांह पड़ै उपडांखिया।

ऊपड़ रज गैणांग अरक रथ टांकिया॥

कळह करेवा काज आज रा कोपिया।

गिर झंगर हो गरद मरद यम ओपिया॥

घूघर पाखर घमकती, सिंधुर काजळ सार।

विचित्र घड़ी आई वरण, धज लज घूंघट धार॥

धजलज घूंघट धार, भाला नथ झळक।

जड़ कांचू घड़ जरद, झिलक टीका झळक॥

धड़ घूमंती घाय, मीर अंग मोड़ती।

हाडा लाडा हूत, छेहड़ा जोड़ती॥

बेली अला नवाब रै इंद बेली आरांण।

पतसाई सूं पाधरै कर झल्ली केवांण॥

कर झल्ली केवांण जबां यम अक्खिया।

सजदा सैदां हूंत कदे नम किया॥

ऊंचा अत असमांन जमीं सक लेखियै।

दै जिना रहमांन सुत नां देखियै॥

नीची जूसर कर नहीं धमला ऊंची धार।

कळियौ तूं ईज काढसी भर रथ दिल्ली भार॥

भर रथ दिल्ली भार कळियौ तूं कडै।

है धर जूपण भार अमै मत औछड़ै॥

बांमी खंचण हार भांमी तो भुजां।

बळ कर धमळ निबाब निजामल धर लजां॥

धेंधीगर अत धात मद बहता असमांन।

थापळिया थूरण हथां पूतारै पिलवान॥

पूतारै पिलवांन गैघूंबै गज घड़ा।

सज भड़ सार छतीस जरद्दां जड़ी कड़ा॥

काळी कांठळ कहर बीज खग बळ किया।

खरा रह्या पग रोप कायर खळकिया॥

बळ बळ बीजूजळ बळक झळहळ आतस झाळ।

खार खंधाधर कज खहै रस लूधा रौदाळ॥

रस लूधा रौदाळ चकता काळ रुख।

मंडै अराबां मोहौर सराबां चैळ मुख॥

तूटी टंक अढारन दूजी धार है।

मुड़ै अपूठी मूठ बड़ी मार है॥

काळौ जिम छपियै कसण फिरियौ फुण खग फेर।

तिण वेळा सैदां तणा ढाहि किया दळ ढेर॥

ढाहि किया दळ ढेर सैदानां वज्जिया।

थया दिल्ली थंम विरुद भुजां तो छज्जिया॥

धाड़ निजामलमुल्क धाड़ मुगलां धड़ौ।

खाय दिलावर भीम गजण नै रिण खड़ौ॥

मरै सूरा मौत बिन कायर अमर कोय।

काची काया कारणै मत भूलौ जिन कोय॥

मत भूलौ जिन कोय काया काच सी।

राखी जतन रहै भवस जद भाजसी॥

सूर धरै विसबास रहसी रिण सुथिर।

कायर लांछण लाय मरेसी जाय धर॥

ओलै पौह वृत आपणा देतौ कज भाराथ।

सीस समापै सीलियौ सारौ हेकण साथ॥

सारौ हेकण साथ सीस दे सीलियौ।

सोहड़ां सांम सनाह विरद सांचै कियौ॥

राखीजै रजपूत राड़ दिन वासतै।

मर सिर दे रिण मांह सूर सज मतै॥

खत्री वंस खित रस लियै सेवै प्रजा सरब्ब।

मरणा देणा मारणा करड़ौ घणौ किसब्ब॥

करड़ौ घणौ किसब्ब भरण अर दियण रौ।

जुध अवसर जुड़ियांह खाग दन मन खरौ॥

सांच सील साहंस सत संग लेखिये।

प्रथी भुगतण हार परम अंस पेखिये॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य, कोश व छंदशास्त्र ,
  • सिरजक : सबळदान सांदू ,
  • संपादक : डॉ. नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
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