थांनै कांई ठा पड़ सकै, थे नसै में छो

सीता कोई भी हड़ सकैं, थे नसै में छो।

मिनखापणै रौ दिन कठै, है राकसां री रात,

भड़ किंवाड़! रावण बड़ सकै, थे नसै में छो।

दब्योड़ी, मिनकी रा कान, ऊंदरा कतरै,

बांनैं नीं पकड़ सकै, थे नसै में छो।

नागा अर बूचा, सबसूं कैईजै ऊंचा,

बां रै साम्हीं, कुण लड़ सकै थे नसै में छो।

कैंवण में आंवे, पता पतझड़ में झड़ै,

बसन्त में भी पान झड़ सकै, थे नसै में छो।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : अरविन्द चूरुवी ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण